Women’s Education in Hindi

           Women’s Education in Hindi 

 

 प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्त्रियों को जीवन के हर क्षेत्र में सहभागी होना आवश्यक है। संविधान में उसे हर क्षेत्र में बराबरी का दर्जा दिया गया है। इसलिए राजनैतिक , सामाजिक , धार्मिक , सांस्कृतिक और आर्थिक सभी दृष्टि से स्त्री शिक्षा का महत्व बहुत अधिक है । जो समाज स्त्री शिक्षा या उसके अधिकारों की उपेक्षा करता है वह समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता है ।

 

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Woman’s Education

 

नेपोलियन ने कहा— 

“तुम मुझे सुशिक्षित माताएँ दो मैं एक सुशिक्षित राष्ट्र का निर्माण कर दूँगा” जो किसी भी राष्ट्र में नारी शिक्षा के महत्व को उजागर करता है।

 

 प्रजातन्त्र की सफलता योग्य नेतृत्व पर आधारित है । योग्य व्यक्ति ही नेतृत्व के लिए चुने जायें इसके लिए मतदान में जनता द्वारा सही व्यक्ति को मतदान देना आवश्यक है । जनता में आधी जनता अर्थात् स्त्री को पुरुष के समान योग्य और सुशिक्षित होने की आवश्यकता है । एक सुशिक्षित नारी ही व्यक्तिगत , परिवार , समाज और राष्ट्र की समस्याओं का उचित हल निकाल सकती है । स्त्री सामाजिक सुधार की आधारशिला है । वह परिवार का सृजन करने वाली होती है । बच्चे की प्रथम शिक्षिका माँ है। यदि अशिक्षित परिवार पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। नारी समाज की शक्ति है वह देश की संस्कृति, धर्म, साहित्य, कला आदि का स्तम्भ है। एक शिक्षित स्त्री शिक्षा का मूल्य समझती है वह अपने बच्चे की रुचि, क्षमता एवं प्रवृत्ति के आधार पर उसका विकास करने में सहायक होती है । आज नारी कई क्षेत्रों में पुरुष से आगे निकल गई है अर्थात् स्त्रियाँ राष्ट्र की मेरुदण्ड हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने स्त्री शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि स्त्री शिक्षा के बिना लोग शिक्षित नहीं हो सकते। लिंग की समानता स्थापित करके ही राष्ट्र का विकास किया जा सकता है और शिक्षा इसका सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। 

 

भारत में स्त्री शिक्षा (Women’s Education in India) 

 

स्वतन्त्रता के बाद स्त्रियों को पुरुषों के समान स्तर पर लाने के लिए आवश्यक सामाजिक , आर्थिक और कानूनी परिवर्तन किये गये । भारतीय संविधान में स्त्री और पुरुष दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं , साथ में स्त्रियों के स्तर को उठाने के लिए उनको कई क्षेत्रों पर विशेष सुविधाएँ भी दी गयी हैं। 

 

 1947 के बाद स्त्री शिक्षा की प्रगति तीव्र गति से हुई है और उनकी सामाजिक स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन आये हैं । स्त्रियों के प्रति समाज का दृष्टिकोण समानता का हो रहा है।

 

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (1) , 16  (1) , 16  (2) के अनुसार किसी भी नागरिक से लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जायेगा । धारा 15 के अनुसार राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म , जाति , लिंग , जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा । नारियों की साक्षरता का स्तर भी तीव्रता से बढ़ा है । स्वतन्त्रता के उपरान्त स्त्री शिक्षा के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए अनेक समितियों एवं आयोगों का गठन किया गया जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं—Women’s Education in Hindi 

 

 

 (1) राधाकृष्णन कमीशन ( 1948-49 ) – महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान देने के उद्देश्य से राधाकृष्णन कमीशन ने निम्न सुझाव दिये हैं—जिसमें Woman’s Education in Hindi के बारे में बताया गया है। 

 

 (1) नारी को सुगृहणी और सुमाता बनने की शिक्षा दी जाए। 

 

(2) स्त्रियों के लिए शिक्षा सुविधाओं का विस्तार किया जाए।

 

 (3) अध्यापिकाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।

 (4 ) ऐसा पाठ्यक्रम बनाया जाए जो बालिकाओं को समाज में समान स्थान दिला सके।

 

 (2) (1958) – महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान देने के उद्देश्य से दुर्गाबाई देशमुख की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी जिसका उद्देश्य स्त्री शिक्षा की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए सुझाव देना था। इसे दुर्गाबाई देशमुख समिति भी कहा जाता है। समिति ने 1959 में अपना प्रतिवेदन भारत सरकार के सम्मुख प्रस्तुत किया 

 

( 1 ) भारत सरकार को कुछ समय तक स्त्री शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है साथ ही स्त्रियों के लिए अलग से प्रशासनिक व्यवस्था भी की जानी चाहिए। 

 

 (2) भारत सरकार को समस्त राज्यों के लिए स्त्री शिक्षा के विस्तार की नीति निर्धारित करनी चाहिए तथा इस नीति के क्रियान्वयन के लिए राज्यों को आवश्यक धनराशि प्रदान की जानी चाहिए । 

 

(3) ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा के प्रसार के लिए विशेष प्रयास किये जाने चाहिए । 

 

(4) पुरुषों तथा स्त्रियों की शिक्षा में विद्यमान अन्तर को यथाशीघ्र समाप्त करने के प्रयास किये जाने चाहिए। 

 

(5) स्त्री शिक्षा की समस्याओं पर विचार करने के लिए राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद नामक पृथक इकाई का गठन किया जाना चाहिए ।

 

 (6) स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु राज्यों में लड़कियों तथा महिलाओं की शिक्षा की राज्य परिषदें ( Council for Education for Girl and Women ) गठित की जानी चाहिए । 

 

दुर्गाबाई देशमुख समिति के सुझाव को स्वीकार करते हुए केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय ने सन् 1965 में राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद (National Council of Women’s Education) का गठन किया। Women’s Education 

in Hindi 

इस परिषद का मुख्य कार्य लड़कियों तथा महिलाओं की शिक्षा मे सम्बन्धित समस्याओं के निराकरण हेतु एवं स्त्री शिक्षा के प्रसार एवं उसमें सुधार हेतु नीतियों , कार्यक्रमों व प्राथमिकताओं से सम्बन्धित सुझाव देना है । यह परिषद समय – समय पर स्त्री शिक्षा की प्रगति का मूल्यांकन करके भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है । स्त्री शिक्षा की समस्याओं पर विचार करने के लिए परिषद समय – समय पर सर्वेक्षण , विचार गोष्ठियाँ तथा अनुसन्धान कार्यक्रमों के आयोजन की व्यवस्था भी करती है ।

 

राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद में विद्यालय स्तर पर बालक – बालिकाओं के पाठ्यक्रम में अन्तर होने

अथवा नहीं होने की महत्वपूर्ण समस्या पर विचार करने के लिए श्रीमती हंसा मेहता समिति का गठन किया गया । इस समिति ने विद्यालय स्तर पर बालक – बालिकाओं के पाठ्यक्रम में अन्तर न होने का सुझाव दिया । अतः शिक्षा का सम्बन्ध व्यक्तिगत क्षमताओं , रुचियों से होना चाहिए न कि लिंग भेद से । में 

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(3) कोठारी आयोग ( Kothari Commission ) – सन् 1964 में डॉ . कोठारी की अध्यक्षता में गठित शिक्षा आयोग, जिसने अपना प्रतिवेदन 1966 में प्रस्तुत किया, ने मानव संसाधन के विकास, परिवारों की उन्नति तथा बालकों के चरित्र निर्माण में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की शिक्षा को अधिक महत्वपूर्ण स्वीकारा है और महिला शिक्षा के सभी पक्षों पर अपने विचार व्यक्त किये हैं

 

 (1) बालिकाओं की शिक्षा के लिए अधिकाधिक प्रयास किये जायें । 

 

(2) बालिकाओं को अध्ययन हेतु बालकों के विद्यालय भेजने हेतु जनमत तैयार किया जाये। 

 

(3) उच्च प्राथमिक स्तर पर बालिकाओं के लिए अलग विद्यालय खोले जायें । 

 

(4) बालिकाओं के लिए निःशुल्क छात्रावासों तथा छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाये।

 

 (5) बालिकाओं के लिए व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education ) और अल्पकालीन शिक्षा (Part Time Education) की व्यवस्था की जाये।

 

 (6) बालिकाओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाये।

 

(7) नारी शिक्षा के लिए अनुसन्धान इकाइयों (Research Unit) की स्थापना की जाये।

 

(8) स्त्री शिक्षा के मार्ग की बाधाओं को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाये जायें। 

 

(9) स्त्री शिक्षा के संचालन के लिए केन्द्र तथा राज्य स्तर पर प्रशासनिक तन्त्र का गठन किया जाये। 

 

(4) राष्ट्रीय शिक्षा नीति ( 1986 ) – सन् 1986 में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्त्रियों की शिक्षा में व्यापक परिवर्तन लाने की संकल्पना की गयी । इस नीति में शिक्षा से सम्बन्धित प्रमुख रूप से निम्न बातों को सम्मिलित किया गया Women’s Education in Hindi जो इस प्रकार से है। 

 

 

(1) विभिन्न पाठ्यक्रमों के अंग के रूप में स्त्री अध्ययनों (Women’s Studies ) को बढ़ावा दिया जाये।

 

 (2) शिक्षा संस्थाओं को स्त्री विकास ( Women Development) के कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये। 

 

(3) स्त्रि की प्राथमिक शिक्षा के मार्ग में आने वाली बाधाओं के निराकरण सम्बन्धित प्रयासों को प्राथमिकता दी जाये।

 

 (4) विभिन्न स्तरों पर व्यावसायिक , तकनीकी तथा वृत्तिक शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी पर विशेष बल दिया जाये।

 

 (5) यौन विभेद न करने की नीति को बढ़ावा दिया जाये। 

 

 

(5) प्रो . राममूर्ति समिति ( 1991 ) – इस समिति ने बालिका शिक्षा के निम्न सुझाव दिये

 

 (1) अध्यापिकाओं की अधिक से अधिक नियुक्ति की जाये।

 

 (2) विद्यालय में पोषण , स्वास्थ्य तथा बाल विकास का समावेश किया जाये।

 

(3) विभिन्न स्तरों पर महिला अनुसन्धान केन्द्रों की स्थापना की जाये।

 

 (4) महिला शिक्षा के लिए अलग से धन का प्रावधान किया जाये। 

 

(5) छात्रवृत्तियों तथा मुफ्त पाठ्य पुस्तकों का वितरण एवं अन्य प्रोत्साहन अधिक से अधिक दिये जायें।

 

  महिला समाख्या ( 1989 ) -महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बनाने की दृष्टि से 1989 में एक महिला समाख्या योजना प्रारम्भ की गयी और इसे शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया गया । महिला समाख्या का अर्थ है— शिक्षा द्वारा महिला को समानता देना । यह कार्यक्रम आठ राज्यों के 51 जिलों में चलाया जा रहा है । ये आठ राज्य हैं– असम , आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश बालिकाओं की शिक्षा को अधिक • प्रोत्साहित करने के लिए बोर्डिंग और हास्टल की सुविधाएँ भी बढ़ायी जा रही हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर वर्ग की बालिकाओं की पढ़ाई के लिए स्वैच्छिक संस्थाओं को आर्थिक सहायता भी दी जा रही है । 

 

इसके अतिरिक्त महिलाओं की शिक्षाWomen’s Education in Hindi 

एवं विकास के लिए सरकार द्वारा किये गये अन्य प्रयास इस प्रकार हैं। 

 

(1) स्त्री शिक्षा के विकास हेतु सरकार द्वारा पारित कानूनों तथा वैवाहिक जीवन में मधुरता एवं समरसता बनाये रखने के लिए 1955 में बना हिन्दू विवाह अधिनियम और 1952 में बना विशेष विवाह अधिनियम मुख्य है जिसमें अन्तर्जातीय विवाह को वैध घोषित किया गया तथा वर और कन्या विवाह की न्यूनतम आयु 21 व 18 वर्ष रखी गयी । 

 

(2) 1990 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम पारित किया गया जिसके अन्तर्गत महिलाओं को कानूनी सुरक्षा प्रदान की जाने की बात कही गयी । आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए जब योजनाएँ बनें तो उनमें महिलाओं की भागीदारी हो। 

 

(3) सन् 1983 में आपराधिक दण्ड संहिता अधिनियम तथा महिला का अश्लील प्रस्तुतीकरण विरोध कानून 1986 में बनाया गया जिसे अब तेजी से लागू करने की आवश्यकता है। 

 

उपर्युक्त विचारों से स्पष्ट है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार ने स्त्रियों की शिक्षा व्यवस्था में बहुत सुधार किया है , उनकी सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति पहले से बहुत सुदृढ़ और सम्मानजनक हुई है । आज भारतवर्ष में स्त्रियों को पुरुषों की अधिकार प्राप्त हैं । पुरुषों की भाँति समान

 

  भारत में स्त्री शिक्षा की समस्याएँ (Problems of Women’s Education in India) Women’s Education in Hindi 

 

आज स्वतन्त्र भारत में स्त्रियों की स्थिति और शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं । इसके बावजूद स्त्री शिक्षा की स्थिति को सन्तोषप्रद स्वीकार नहीं किया जा सकता । स्त्री शिक्षा के विकास के लिए जो राजकीय तथा व्यक्तिगत प्रयास किये गये हैं उनमें और प्रगति एवं सुधार की आवश्यकता है । इसके लिए आवश्यक है कि स्त्री शिक्षा के मार्ग में आने वाली समस्याओं को समझा जाए और उनके निराकरण के लिए समाधान खोजे जाएँ जिससे स्त्री शिक्षा सहज व सुलभ बन सके । स्त्री शिक्षा के मार्ग में आने वाली बाधाओं का शीघ्र ही निराकरण करने की आवश्यकता है। 

 

हमारे देश में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों , अन्धविश्वासों, अशिक्षा , सरकारी योजनाओं का शिथिल कार्यान्वयन, आर्थिक कठिनाइयाँ , अध्यापिकाओं एवं विद्यालयों का अभाव ,अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या तथा दोषपूर्ण प्रशासन आदि अनेक ऐसी जटिल समस्याएँ हैं जो कि स्त्री शिक्षा के मार्ग में बाधक हैं । स्त्री शिक्षा की स्थिति तथा शिक्षा में प्रगति के लिए अनेक आयोगों और समितियों ने समय – समय पर अपने सुझाव दिये । विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में भी स्त्रियों की शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न कार्यक्रमों का निर्माण एवं क्रियान्वयन किया गया है परन्तु इन सब प्रयासों को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता । आज वैश्वीकरण के दौर में राष्ट्र को आगे लाने के लिए स्त्री का योगदान नितान्त आवश्यक है । इसके लिए Women’s Education in Hindi 

स्त्री शिक्षा के विकास पर और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है. जिससे शिक्षा के क्षेत्र में लिंग के आधार पर समानता स्थापित हो सके । 

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