Sheyar Market Kya Hota Hai

 शेयर मार्केट क्या होता है  Sheyar Market Kya Hota Hai  सम्पूर्ण जानकारी 

शेयर बजार या स्टॉक मार्केट एक ऐसा बजार है जहां पर आप किसी कम्पनी के खरीद बिक्री में सूचीबद्ध तरीका से उसमे हिस्सेदारी अपना बना सकते है।  यहां पर जो भी कंपनियां रहती है वह सारे शेयर बजार के (NSE) नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और(BSE) बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड रहती है।

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किसी भी कम्पनी के हिस्सेदारी लेने के लिए आपको सबसे पहले ब्रोकर (दलाल) से डीमैट अकाउंट खुलवाना पड़ेगा यह बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है शेयर मार्केट में शेयर खरीदने और बेचने के लिए।

यदि आप यह नहीं जानते है कि ब्रोकर क्या होता है? और यह कैसे काम करता है तो आप इसपर क्लिक कर सकते है। ब्रोकर क्या होता है?

Sheyar market kya hota hai Sheyar market kya hota hai

शेयर मार्केट में कुछ पैसे लगाकर आप किसी कंपनी में हिस्सेदारी बना सकते है। यहां पर आप बहुत छोटी रकम के साथ भी शेयर बाजर मे इंवेस्ट कर सकते है। जरूरी नहीं है कि आप बहुत ज्यादा पैसा लगाकर ही शेयर बाजर मे इनवेस्ट कर सकते है। बहुत से ऐसे लोग है जो चाहते है कि हम शेयर मार्केट सा लाखो लाख रुपया कमाये लेकिन मार्केट में प्रवेश करने से पहले आपको कुछ मूल्य बातों पर ध्यान देना चाहिए।

बहुत सारी ऐसी कंपनी शेयर मार्केट में लिस्टेड है जिसका शेयर प्राइस Price वैल्यू बहुत कम रहाता है, लेकिन ध्यान देना जरूरी है कि आप किस प्रकार के कंपनी मे पैसा लगा रहे है। कोई भी कंपनी हो पैसा लगाने या शेयर खरीदने से पहले उसको अपने अस्तर से एनालिसिस कर लेना चाहिए।

किसी के कहने और देखने के मात्र से ही पैसा इनवेस्ट नहीं करना चाहिए। कंपनी का ग्रोथ रेट, हाई वैल्यू, लो वैल्यु कंपनी का मार्केट कितना बड़ा है, कंपनी मे खुद का इनवेस्ट है या नहीं बहुत से ऐसी फैक्ट है जिसको आपको समझना पड़ेगा। बिना सोचे समझे पैसा नहीं लगाना चाहिए।

शेयर मार्केट ऐसा जगह होता है जहा पर कोई कितना भी इसके बारे मे जानता हो लेकिन थोड़ी से चूक के चलते उसका सारा पैसा डूब सकता है। हर दिन आपको यहां पर सीखने की जरूरत होती है।

शुरुआती दिनों में आप नय है तो आपको यह ध्यान देना चाहिए कि कम से कम इनवेस्ट करे, लालच के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए नहीं तो आप यहां पर तुरंत अपना सारे पैसे को खो सकते है।

शेयर मार्केट में पैसा लगाने का बहुत सारे ऑप्शन मौजूद रहाता है। लेकिन कुछ ही ऐसे ऑप्शन है जिसमें आपको शुरुआती दिनों में इनवेस्ट Invest करना चाहिए। जिससे कि आपके प्रॉफिट बुक कर पाए। नहीं तो थोड़ी सी चूक आपके बजट को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

शेयर मार्केट में विभिन्न तरीके से पैसा लगा सकते है।

treding in hindi

इंट्राडे ट्रेडिंग, डिलेवरी ट्रेडिंग, स्विंग ट्रेडिंग

 

इंट्राडे ट्रेडिंग

यह शेयर बाजार का एक ऐसा ऑप्शन होता है जहां पर आप एक दिन के लिए इनवेस्ट का सकते है। इंट्राडे ट्रेडिंग मे शेयर का भाव ज्यादा होता है तो आपको एक दिन में ही फायदा होगा और यदि भाव नीचे गिरता है तो आपको नुकसान भी ज्यादा होगा। यहां पर आपको एक ही दिन मे शेयर को बेचना पड़ता है।

इंट्राडे ट्रेडिंग मे आप 1000 हज़ार लगाकर 10000 भी कमा सकते है और पूरा पैसा भी आपका खत्म हो सकता है।इसमे बहुत ज्यादा रिस्क होता है। ये नया इनवेस्टर के लिए नहीं है, इसमे इनवेस्ट करने से पहले अच्छी तरह से सोच विचार लेना चाहिए।

 

डिलेवरी ट्रेडिंग

डिलेवरी ट्रेडिंग: मे आप जो भी शेयर खरीदते है उसको आप होल्ड करके महीनों या कई सालो तक अपने पोर्टफोलियो में रख सकते है चाहे तो आप इसको एक दिन में ही बेच सकते हैं। यह सबसे अच्छा विकल्प है शेयर मार्केट में इनवेस्ट करने का, अच्छी तरह से देख और एनालिसिस करके के इनवेस्ट करने पर ज्यादा नुकसान होने की उम्मीद है नहीं रहता है। इसमे लंबी अवधि के लिए इनवेस्ट करना अच्छा रहता है।

 

स्विंग ट्रेडिंग 

स्विंग ट्रेडिंग मे आपक कुछ दिन या कुछ हफ्तों मे ही शेयर से लाभ बना सकते है यहा पर शेयर को खरीदने के बाद कुछ दिनों या कई हफ्तों शेयर का भाव बढने का प्रतीक्षा कर सकते है जैसे ही शेयर का भाव बढ़ता है, तो आप उन्हें बेच सकते हैं और यदि भाव नीचे गिरने लगता है तो आप होल्ड कर सकते है।

यदि आप उच्च कीमत पर शेयर को बेचते है तो आपको 10 से लेकर 100% का लाभ मिलता है। मुनाफा इस बात पर निर्भर करता है कि आप शेयर का चुनाव किस प्रकार से किया है।

 

हम सब यह जान गए कि शेयर बजार क्या होता है लेकिन शेयर बजार मे किस प्रकार से प्रवेश करना होता है। इसके लिए सबसे पहले क्या करना पड़ता है? वह अब हम सब देखेंगे। तो आइये देखते है कि डीमैट खाता क्या होता है?

डीमैट खाता क्या होता है? Demat khata kya hota hai 

डीमैट अकाउंट किसी बैंक अकाउंट की तरह ही होता है, यह अकाउंट पूर्ण रूप से इलेक्ट्रॉनिक रहता है। इसमे आप अपना शेयर सर्टिफ़िकेट, सिक्युरिटी को आसानी से रख सकते हैं। शेयर बाजार में खरीदे गए शेयर, म्युचुअल फंड, बांड्स, गवर्नमेंट सिक्यूरिटी, ATF जैसे इन्वेस्टमेंट को बड़ी आसानी से डीमैट अकाउंट में रखा जाता है। बैंक अकाउंट में जिस प्रकार अकाउंट नंबर रहता है उसी प्रकार आपको डीमैट अकाउंट मे भी नंबर मिलता है। डीमैट अकाउंट में अपने शेयर को होने इच्छा अनुसार होल्ड कर सकते है।

 

आज के समय में किसी भी प्रकार का काम के लिए कोई ऑफलाइन फॉर्म नहीं मिलता है। इसी प्रकार जब आप कोई भी शेयर खरीदते है या उसमे आप हिस्सेदारी लेते है तो यह सारे डॉक्यूमेंट आपका डीमैट अकाउंट में इलेक्ट्रानिक् रूप में सेव हो जाता है। जिसे आप घर बैठे आराम से शेयर मार्केट में काम कर सकते है। खरीदे गए शेयर को आप बेच सकते हो या आप और भी किसी कंपनियां के शेयर खरीद सकते है।

डीमैट अकाउंट में सारे लेखा जोखा रहता है कि आप कितने शेयर खरीदे है और कितने बेचे है। ये सारे डाटा इसके अन्दर सेव हो जाता है आप चाहे तो डीमैट अकाउंट के अंदर किसी दूसरे बैंक अकाउंट से पैसे को एड् भी कर सकते है। जो कि यह आपको शेयर खरीदे में मदद करता है।

मान लीजिए कि आप शेयर बाजार मे किसी कम्पनी का शेयर खरीदना चाहते है। तो इसके लिए आप जिस कंपनी का शेयर खरिदिये गा तो उसके लिए आपको एक सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ेगा। फिर जब आप उस शेयर को बेचीऐ गा या फिर और शेयर खरीदीऐ गा तो उसके लिए आपको फिर सर्टिफ़िकेट बनवाने पड़ेगा।यानी जितनी बार आप शेयर खरीद बिक्री कीजिए गा तो आपको उतनी ही बार सर्टिफिकेट बनवाना पड़ेगा। 1996 को यह लागू हुआ, पहले यह सिस्टम काग़ज़ी होता था। जिससे बहुत ही परेशानी होता था। लेकिन अब इलेक्ट्रॉनिक हो गया है जिससे आप जितनी बार खरीद और बिक्री कीजिए गा ये सारे रिकार्ड आपके डीमैट अकाउंट में सेव हो जाएंगे।

 

Demat Account Opening in Hindi

जब आप डीमैट अकाउंट के बारे में जानकारी प्राप्त कर लिए तो आइये जानते है कि डीमैट अकाउंट कैसे खोला जाता है। Demat Accaunt ka Matlab kya Hai

आप अपने डीमैट अकाउंट को SCDL यानी सेंट्रल डिपॉजिट सर्विसेज लिमिटेड के साथ या NSDL नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिट लिमिटेड के साथ भी खोल सकते है।

ये दोनों कंपनी स्वयं और इन्वेस्टर्स के बीच में मीडीयेटर के तौर पर भी काम करती है। ये डिपोजिटरी प्रतिभागी  DP एजेंट को नियुक्त करती है। आप कोई भी DP बैंक के साथ डीमैट अकाउंट खोल सकते हैं।

उदाहरण के लिए HDFC बैंक एक DP बैंक है। फाइनेंसियल भी DP है। और स्मार्ट ब्रोकर भी एक DP है।और भी बहुत सारे ब्रोकर DP है।

जैसे… Zerodha, Angleone, 5paisa.com, upstox इत्यादि।

य़ह जान लीजिये कि जिस प्रकार एक बैंक में अकाउंट में आपका पैसा रहता है ठीक उसी तरह से आपके डीमैट अकाउंट में पैसा रहता है। यहां पर आपका अकाउंट का इलेक्ट्रॉनिक फ्रॉम  में रखा जाता है।

डीमैट अकाउंट को  आप  मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप और कम्प्यूटर के साथ इन्टरनेट को जोड़ कर आसानी से एक्सेस कर सकते है। इसको एक्सेस करने के लिए एक यूनिक लॉगिन आईडी और पासवर्ड होता है। जिससे आप लॉगिन कर सके।

नोट:-  आपको यह ध्यान जररू देना चाहिए की  एक दे अधिक डीमैट अकाउंट को एक ही  डीपी के साथ न जोड़े। कयोकि एक पैन कार्ड को कई सारे डीमैट अकाउंट के साथ जोड़ा जा सकत है।

 

डीमैट अकाउंट का विवरण 

आप सुनिश्चित जरूर करे की डीमैट अकाउंट खुलने के बाद आपने अपने डीपी से निम्न विवरण प्राप्त किया।

 

  • डीमैट अकाउंट नंबर Daimate Accaunt Numbre: सीडीएलएस के अनुसार बेनिफिशियरी आईडी के रूप में जाना जाता है।

 

  • डीपी आईडी DP ID: यह आईडी डिपॉजिट करने वाले प्रतिभागी को दी जाती है। जो आपके एक डीमैट अकाउंट का हिस्सा है।

 

  • पीओए नंबर POA Number: यह पावर ऑफ़ Ataurni Agreement का हिस्सा है। जंहा पर एक इन्वेस्टर दिए गए सारे निर्देश के अनुसार स्टॉक ब्रोकर को अपने अकाउंट को चलाने का अनुमति देता है।

 

  • ध्यान रखे:- ऑनलाइन अकाउंट को एक्सेस करने के लिए आपको डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट पर एक विशेष प्रकार की यूनिक आईडी और पासवर्ड भी मिलेगा।

 

डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट Demat and Trending Accaunt kya hota hai

डीमैट अकाउंट और ट्रडिंग अकाउंट यह दोनों एक ही साथ रहता है। शेयर बाजार शेयर खरीदने और बेचने के लिए जरूरीर होता है। कोई भी डीमैट अकाउंट खोलने वाले बैंक में सेविंग, डीमैट और ट्रेडिंग यह तीनो को जोड़ा जाता है।

बहुत सारे लोगो को यह कन्फूजन हो जाते है की ट्रेडिंग और डीमैट अकाउंट एक जैसे नहीं है। शेयर खरीदने और बेचने के लिए आपको एक ट्रेडिंग अकाउंट खोलना पड़ता है। बहुत सारे ऐसे बैंक और ब्रोकर है जो ऑनलाइन अकाउंट खोलने की सुबिधा प्रदान करने की पेशकश करते है। जिससे की इन्वेस्टर को शेयर मार्केट  में भाग लेना अब आसान हो गया है।

डीमैट अकाउंट के प्रकार types of Demat Account in Hindi 

आप सभी यह जान गए की डीमैट अकाउंट क्या होता है? एवं इसका परिभाषा क्या है? तथा कैसे खुलता है। तो आइये आगे हम सब यह भी देख लेते है की डीमैट अकाउंट कितने प्रकार के होते है? 

  • रेगुलर डीमैट अकाउंट Regular Demat Accaunt : यह अकाउंट उन भारतीय नागरिको के लिए है जो भारत में रहते है।
  • रिपेट्रिएबल डीमैट अकाउंट Repatriable Demat Accaunt: इस प्रकार का डीमैट अकाउंट प्रवासी भारतीयों (NRI) के लिए होता है। जिससे फंड को विदेश ट्रांसफर करने में सक्क्षम बनाता है। परन्तु इस प्रकार की बैंक अकाउंट को एनआरआई (NRI) बैंक अकाउंट से लिंक करने की जरुरत होती है। 
  • नॉन रिपेट्रिएबल डीमैट अकाउंट Non Repatriable Demat Accaunt: यह अकाउंट एनआरआई (NRI) के लिए होता है। परन्तु इस प्रकार के डीमैट अकाउंट से भी विदेश में फंड स्ट्रान्स्फर करना संभव नहीं होता है। फंड को ट्रांसफर करने के लिए इसे भी एनआरआई बैंक के लिंक करना पड़ेगा।  

Sheyar market in hindi

स्टॉक एक्सचेन्ज के अन्तर्गत ‘सूचकांक’ क्या है ? 

सूचकांक बाजार के रुख का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । इससे यह ज्ञात होता है कि बाजार में शेयर मूल्यों में कितनी गिरावट आयी या कितनी तेजी आयी । पर यह शेयर मूल्यों का औसत नहीं है ।

शेयर मूल्यों में वृद्धि के समय यह उसी अनुपात में ऊपर चढ़ता है , जबकि शेयर मूल्यों में गिरावट के बाद इसमें गिरावट आती है । कभी – कभी ऐसा भी होता है कि विस्तृत शेयर धारकों वाले एक शेयर के मूल्यों में मामूली बढ़त से यह ज्यादा प्रभावित होता है , जबकि कभी शेयर धारकों वाले शेयरों के मूल्यों में भारी तेजी के बाद भी ज्यादा प्रभावित नहीं होता ।

संवेदनशील सूचकांक ( BSE ) 30 शेयरों का होता है , जबकि राष्ट्रीय सूचकांक ( NSE ) 50 शेयरों का होता है ।

 

स्टॉक एक्सचेन्ज किसे कहते हैं ( Stock Exchange in Hindi ) तथा इसके क्या कार्य हैं ?

स्टॉक एक्सचेन्ज वास्तव में वह जगह या बाजार है जहाँ प्रतिभूतियों के खरीददार व विक्रेता अपने एजेण्टों के द्वारा शेयर व ” सिक्योरिटी ” का लेन – देन करते हैं । इसे ‘ स्टॉक मार्केट ‘ Stock Market भी कहा जाता हैं।

प्रतिभूतियों से आशय इक्विटी शेयर , पूर्वाधिकार शेयर , ऋण पत्र व सरकार द्वारा निर्गमित बॉण्ड से है । यह बाजार सभी विक्रेताओं व क्रेताओं को संगठित करता है । स्टॉक एक्सचेन्ज में शेयरों का व्यापार केवल सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में ही होता है ।

भारत में इस समय तेइस मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेन्ज हैं – मुम्बई , कोलकाता , दिल्ली , चेन्नई , अहमदाबाद , इन्दौर , कोचीन , बंगलौर, हैदराबाद , कानपुर , लुधियाना , गोहाटी , पुणे , मंगलौर , पटना , जयपुर , बड़ौदा , भुवनेश्वर , राजकोट तथा कोयम्बटूर ।

मुम्बई में तीन स्टॉक एक्सचेन्ज स्थित हैं BSE, NSE, OTC हैं। अन्य सामान्य बाजारों की तरह इस बाजार में आप स्वयं शेयर नहीं खरीद सकते । इसके लिए आपको लाइसेन्स प्राप्त शेयर दलाल से सम्पर्क करना पड़ेगा जिसे अन्य व्यक्ति के लिए शेयर खरीदने का अधिकार प्राप्त है।

प्रत्येक स्टॉक एक्सचेन्ज में पंजीकृत दलाल सदस्यों की संख्या सीमित होती है । सभी स्टॉक एक्सचेन्जों में नये सदस्यों को सम्मिलित करने के नियम समान होते हैं । दलालों के लिए कमीशन की दर बँधी होती है , जिसे ” ब्रोकरेज ” ( दलाली ) कहते हैं । ये दर शेयर एक्सचेन्ज द्वारा तय की जाती है । चूँकि यहाँ पर व्यापार ” ऑक्शन ” द्वारा होता है अतः आम आदमी को यह जानने की आवश्यकता नहीं है कि दाम क्या है?

क्योंकि ये दर तो स्वयं पब्लिक तय करती है । स्टॉक एक्सचेन्ज पर उद्धरित शेयरों के मूल्यों का विवरण दैनिक वित्तीय व आर्थिक समाचार पत्रों में प्रकाशित होता है । इस वजह से इसमें किसी प्रकार की बेईमानी नहीं होती है । स्टॉक एक्सचेन्ज को शेयर मार्केट भी कहा जाता है क्योंकि शेयर व स्टॉक का समान अर्थ है। ‘ स्टॉक ‘ शब्द शेयरों के लिए अमेरिका में प्रयुक्त होता है । स्टॉक एक्सचेन्ज में कार्य प्रतिदिन सोमवार से शुक्रवार 9.15 से 3.30 सायं तक होता है।

 

 

स्टॉक मार्केट में शेयरों को खरीदने का उपयुक्त समय क्या है ?

शेयर मार्केट में शेयर खरीदने से पहले Sheyar Market Kya Hota Hai यह जान लेना चाहिए की शेयर को कब खरीदने पर ज्यादा दे ज्यादा मुनाफा मिलेगा।

कम्पनी के बारे में अधिक से अधिक सूचनाएँ एकत्रित करके उसके शेयर खरीदने का निर्णय लिया जा सकता है लेकिन जब किसी कम्पनी के शेयरों के दामों में भारी उतार – चढ़ाव आते रहते हैं तो उनके शेयरों को खरीदने या बेचने का निर्णय लेना अत्यन्त कठिन है।

अल्प अवधि में आने वाले उतार – चढ़ाव में शेयरों को खरीदने के लिये मनोवैज्ञानिक व व्यक्तिगत विवेक का प्रयोग करना पड़ता है। शेयरों के दामों में एक वर्ष में तीव्रता से उतार – चढ़ाव आते हैं । इसलिए शेयर तभी खरीदना चाहिए जब उसका बाजार मूल्य उस वर्ष में अपने सबसे कम मूल्य के आस – पास हो । यह जानने के लिये उक्त शेयर के पिछले वर्षों में न्यूनतम व अधिकतम मूल्यों की तुलना करते हैं।

पिछले वर्ष के अधिकतम मूल्य पर या उससे अधिक मूल्य पर शेयर नहीं खरीदना चाहिए। जब शेयरों के मूल्य में अधिक उतार – चढ़ाव न हों तो पिछले वर्ष न्यूनतम मूल्य पर या उसके लगभग मूल्य पर शेयर खरीदना लाभप्रद रहेगा। चढ़ते हुए शेयर बाजार में किसी शेयर को उसके पिछले वर्ष के औसत मूल्य के आस – पास के मूल्य पर खरीदना लाभप्रद रहेगा ।

शेयर  के पिछले वर्ष के औसत मूल्य के 10 % से अधिक मूल्य पर शेयर खरीदना लाभदायक नहीं रहेगा । गिरते हुए भावों में शेयर को तब तक नहीं खरीदना चाहिए जब तक शेयर के न्यूनतम मूल्य स्थिर न हो जाएँ।

अधिकांश लोग जब किसी शेयर को खरीद रहे हों तो उसे न खरीदें। शेयरों के प्रचार होने से पहले ही खरीदें या फिर प्रचार समाप्त होने पर शेयर के मूल्य गिरने के बाद ही खरीदें । किसी भी कम्पनी के शेयर उस कम्पनी के लेखा – वर्ष के मध्य खरीदना श्रेयस्कर है।

उदाहरण के लिए , किसी कम्पनी की वार्षिक लेखाबन्दी 31 मार्च को होती है तो उसके शेयरों को सितम्बर – अक्टूबर के महीने में खरीदने का उचित समय है!

क्योंकि वर्ष के मध्य तक लाभांश इत्यादि का वितरण हो जाता है और निवेशकर्त्ताओं को उस कम्पनी में अधिक रुचि नहीं रहती है और उसके शेयरों के मूल्य बाजार में कम होते हैं।

किसी कम्पनी के विस्तार कार्यक्रम के घोषित होने से पूर्व उसके शेयरों के मूल्यों में तेजी से वृद्धि होती है । ऐसी कम्पनी के शेयर उसके विस्तार के कार्यक्रम के घोषित होने के कम से कम एक माह पूर्व ही खरीद लेने चाहिए।

इसी प्रकार कम्पनी के किसी नये प्रोजेक्ट के शुरू करने की घोषणा से पहले ही उसके शेयर खरीदना लाभप्रद रहेगा । कम्पनी के कारोबार की प्रतियोगी कम्पनियों के परिणामों से भी कम्पनी के उसके शेयरों के मूल्य पर प्रभाव पड़ता है। यदि प्रतियोगी कम्पनियाँ अच्छा लाभ अर्जित कर रही हैं तो वह कम्पनी भी अवश्य लाभ प्राप्त करेगी।

 

शेयर खरीदते समय एक निवेशकर्त्ता को किन – किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?

 

शेयर बाजारों का भविष्य काफी उज्ज्वल दिखाई देता है । निवेशकर्त्ताओं में शेयर बाजारों के प्रति जागरूकता बढ़ गई है । फिर भी , शेयरों में निवेशकर्त्ता इस बात का ध्यान रखें कि शेयर बाजार परिवर्तनशील है। इसलिए निवेशकर्त्ताओं को अत्यन्त सावधानीपूर्वक विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिए।

 

शेयर बाजार में नुकसान से बचने के लिए टिप्स (Tips to avoid losses in the stock market)

1. केवल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध शेयर ही खरीदें क्योंकि जो शेयर स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध नहीं होते हैं वे सुरक्षित निवेश नहीं माने जाते हैं  स्टॉक एक्सचेंज ऐसे शेयरों के धारकों को कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करता है, न ही एक्सचेंज के पंजीकृत सदस्य दलाल ही उनका लेन – देन करते हैं। ऐसे असूचीबद्ध शेयरों को बाजार मूल्य भी नहीं ज्ञात किया जा सकता है। जो शेयर स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध (Listed) होते हैं, उनका वर्तमान मूल्य दैनिक अखबारों में दिया जाता है। असूचीबद्ध शेयरों का वर्तमान मूल्य दैनिक अखबारों में नहीं दिया जाता है। इस प्रकार निवेशकर्त्ता को केवल उन्हीं शेयरों में निवेश करना चाहिए जो दैनिक समाचार पत्रों में सूचीबद्ध हैं।

2. केवल सक्रिय ( Active ) शेयर ही खरीदने चाहिए। जिस कम्पनी के शेयरों का लेन – देन प्रतिदिन स्टॉक एक्सचेन्ज में किया जाता है इन्हें सक्रिय (Active or momentum) शेयर कहा जाता है , जबकि निष्क्रिय ( Inactive ) शेयरों का लेन – देन यदा – कदा ही होता है। ऐसे शेयरों का वर्तमान मूल्य स्टॉक एक्सचेन्ज द्वारा नियमित रूप से नहीं दिया जाता है।

जिन शेयरों का बाजार भाव दैनिक समाचार पत्रों में प्रतिदिन प्रकाशित होता है वे सक्रिय शेयर होते हैं । कुछ समाचार – पत्र , जैसे— “ फाइनेन्शियल टाइम्स ” ( Financial Times ) या ‘ इकोनोमिक टाइम्स ‘ (Economic Times) में तो शेयरों के बाजार मूल्य ही नहीं बल्कि वह तिथि भी प्रकाशित करते हैं जिस पर वे शेयर अन्तिम बार खरीदे या बेचे गये हैं।

निष्क्रिय शेयरों को खरीदने में निवेशकर्त्ता को हानि हो सकती है क्योंकि ऐसे शेयरों के खरीददार नहीं मिलते हैं । कुछ कम्पनियों का कारोबार ठीक नहीं होता है और उनका भविष्य भी उज्ज्वल नहीं होता है उन कम्पनियों के शेयर निष्क्रिय हो जाते हैं । ऐसे शेयरों को बेचना बड़ा कठिन होता है तथा इनका बाजार मूल्य भी इनके अंकित मूल्य से नीचा होता है।

शेयर बाजार में उतार – चढ़ाव शीघ्र होते हैं । आज किसी कम्पनी का शेयर सक्रिय है वह कुछ समय बाद निष्क्रिय हो सकता है। इसी प्रकार निष्क्रिय शेयर , सक्रिय हो सकते हैं । ऐसी स्थिति में निवेशकर्ता को सावधानीपूर्वक कम्पनी के शेयरों को खरीदते समय उसका पूर्ण विश्लेषण करना चाहिए जिससे उसके द्वारा किया . गया निवेश सुरक्षित व लाभपूर्ण हो।

3. कम्पनी के शेयर धारकों की संख्या अधिक होनी चाहिए। जिन कम्पनियों के शेयर धारक कम होते हैं उस कम्पनी के शेयरों का स्टॉक एक्सचेन्ज में कम लेन – देन होता है और कम खरीदार होने के कारण उनका बाजार मूल्य भी कम निश्चित होता है। ऐसे शेयरों के बाजार मूल्यों में उतार – चढ़ाव भी शीघ्रता से होता है । इसलिए ऐसे शेयरों को तेजी में खरीदना कठिन होता है, साथ ही इनके भाव यदि गिरते हैं तो गिरते ही जाते हैं।

ऐसी स्थिति में इन्हें बेचना भी कठिन हो जाता है। इन शेयरों को खरीदते समय निवेशकर्त्ता का पूर्ण ज्ञाता व सतर्क होना आवश्यक है। साधारणतया किसी कम्पनी के विस्तृत होने के लिए उसमें शेयर धारकों की संख्या कम से कम 4000 होनी चाहिए। 4000 से कम शेयर धारकों वाली कम्पनी के शेयर खरीदना जोखिमपूर्ण है।

4. तेजी के दौर में ऐसी कम्पनी शेयरों को चुनना चाहिए जिसके द्वारा जारी डिबेन्चर शीघ्र ही शेयरों में परिवर्तित न होने वाले हों। सामान्यतः ऐसे शेयर चुनने चाहिए जिनके भाव समाचार पत्र में कम से कम सप्ताह में एक बार प्रकाशित होते हों । जिन शेयरों का नियमित रूप में भाव नहीं आता उनमें तब तक इन्वेस्टमेंट नहीं करना चाहिए जब तक कि या तो उनके कामकाज में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ हो या निकट भविष्य में उनकी खरीद – बेच आसानी से की जाने की आशा है। अतएव यदि आपको कोई शेयर महँगे भाव पर भी मिलता है परन्तु उसे आसानी से खरीदा – बेचा जा सकता है वह शेयर उस शेयर से बेहतर है जिसमें खरीद – बेच हेतु काफी परेशानी का सामना करना पड़े।

5. कभी – कभी जानबूझकर ट्रान्सफर डीड पर गलत हस्ताक्षर करके शेयर बेच दिये जाते हैं , जो कम्पनी भेजने पर रद्द हो जाते हैं , अतः ऐसी स्थिति में क्रेता लाभांश , राइट एवं बोनस आदि से वंचित रह जाता है जो विक्रेता को ही मिलते हैं अतः शेयर परिचित व्यक्ति से खरीदने चाहिए।

6. शेयर हमेशा परिचित से ही खरीदने चाहिए और शेयर बेचने वाले के नाम में ही हों । यह भी आवश्यक है।

7. शेयर खरीद कर उन्हें कम्पनी की किताबों में तुरन्त अपना नाम दर्ज कराने हेतु भेज देना चाहिए जिससे हमें उस शेयर पर प्राप्त होने वाला लाभांश , राइट बोनस आदि मिल जाये।

8. शेयरों का भुगतान हमेशा चेक , ड्राफ्ट से करना चाहिए , ताकि अनावश्यक विवाद होने पर बचा जा सके।

9. शेयर क्रय करते समय कोई रसीद नहीं प्राप्त होती है। अतः सादे कागज पर रसीद बनवा लेनी चाहिए।

 

शेयर में निवेश करने के लिए उपयुक्त अवसर क्या है ?  

शेयर बाजार में धन निवेश करने के ऐसे उपयुक्त अवसर कम ही आते हैं , जबकि निवेशकर्त्ता को अपने निवेश पर पूर्ण रूप से अत्यधिक लाभ अर्जित करने में सफलता मिले ।Sheyar Market Kya Hota Hai  ऐसे अवसरों का आकलन करना अत्यन्त कठिन है परन्तु एक कुशल व अनुभवी निवेशकर्त्ता निम्न बातों को ध्यान में रखकर ऐसे अवसरों को ढूँढ़कर उनका लाभ उठाते हैं

1. जब किसी कम्पनी को पिछले कई वर्षों से हानि हो रही है तो उसके शेयर काफी कम कीमत पर सूचीबद्ध किये जाते हैं । कभी – कभी तो ऐसी किसी कम्पनी का 10 रुपये का शेयर आधे से भी कम मूल्य ( 5 रु ० से भी कम ) पर गिर जाता है । यदि आप यह अनुभव करें कि ऐसी कोई कम्पनी लाभ अर्जित करने वाली है या किसी वर्ष में लाभ कमाती है तो उसके शेयर के मूल्य अचानक तेजी से बढ़ते हैं जो कम से कम शेयर के अंकित मूल्य ( Face value ) तक पहुँच जाते हैं । इस प्रकार के शेयर कम कीमत पर ही खरीद लेने चाहिए । लेकिन निवेश करने से पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ऐसा परिवर्तन कम्पनी में दीर्घ अवधि में हो रहा है ।

2.  किसी एक कम्पनी का दूसरी कम्पनी में विलीनीकरण या विलय होने ( Merger ) की स्थिति में एक कम्पनी , जो लाभ में चल रही है , दूसरी कम्पनी जो हानि में चल रही है , को विलय कर लेती है । ऐसी स्थिति में दोनों ही कम्पनियों के शेयर धारक लाभान्वित होते हैं और दोनों कम्पनियों के शेयरों के दाम बाजार में बढ़ जाते हैं । कम्पनियों के शेयरों में धन निवेश करना अत्यन्त लाभप्रद रहता।

3. कभी – कभी किसी कम्पनी का प्रबन्ध – तंत्र बदल दिया जाता है जिससे कम्पनी नये प्रबन्धकों के द्वारा संचालित की जाती है और यदि नये प्रबन्धक कुशल व बुद्धिमान होते हैं तो कम्पनी उन्नति करती है तथा उसमें शेयरों के भाव बाजार में बढ़ने लगते हैं । ऐसी कम्पनियों के शेयर खरीदना भी लाभप्रद है । ऐसी स्थिति में एक कम्पनी , व्यापारिक घराना या कम्पनियों का समूह किसी कम्पनी के शेयर पूँजी का अधिकांश भाग खरीद लेती है और इस प्रकार उस कम्पनी के पुराने प्रबन्धकों को हटाकर नये प्रबन्धक नियुक्त कर देती है । इस प्रकार दोनों कम्पनियों के शेयरों में लेन – देन बाजार में अधिक मात्रा में होने से उनके भाव बढ़ने लगते हैं।

4. कम्पनियाँ अपने उत्पादन को उच्च स्तर का बनाने के लिए नयी तकनीक विकसित करती हैं या आयातित करती है ; उदाहरण के लिए – ओटोमोबाइल उद्योग में कार्यरत कम्पनियाँ , जैसे – हीरो होण्डा , प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स , महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा ने नयी तकनीक का प्रयोग करके अपने उत्पादन के स्तर में वृद्धि करके लाभ कमाया जिससे इनके शेयरों में आशातीत वृद्धि हुई । इसी प्रकार कुछ दवा कम्पनियों ने भी अच्छा लाभ अर्जित किया। ऐसी कम्पनियों के शेयरों में निवेश करना भी लाभप्रद माना जाता है।

5. सरकार कुछ कम्पनियों के उत्पादन की कीमतों पर नियन्त्रण रखती है । यदि कम्पनी के उत्पादन के ऊपर से सरकारी नियन्त्रण हट जाता है और उसके उत्पादन का मूल्य बाजार में कम्पनी द्वारा स्वयं निर्धारित किया जाता है तो ऐसी कम्पनियों को लाभ की सम्भावना बढ़ जाती है और इनके शेयरों की कीमत भी बाजार में बढ़ जाती है। TISCOACC इसके अच्छे उदाहरण हैं । निवेशकर्त्ताओं को ऐसी कम्पनियों के शेयरों में निवेश करने के अवसर को खोना नहीं चाहिए।

 

6. शेयर बाजार में मंदी के समय अधिकांश कम्पनियों के शेयर उनके आन्तरिक मूल्य ( Intrinsic price ) से भी कम भाव पर सूचीबद्ध होते हैं। जिन कम्पनियों के दामों में तीव्र दर से गिरावट आती है , बाद में उनके मूल्यों में वृद्धि होती है । इस प्रकार अनुभवी निवेशकर्त्ता ऐसे शेयरों को मन्दी में कम दामों में खरीदकर अपने निवेश पर अत्यधिक लाभ कमाते हैं।

7. शेयर बाजार में तेजी आने से अधिकांश कम्पनी के शेयरों की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि होती जाती है । ऐसी स्थिति में शेयरों में धन निवेश करना बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य नहीं है । तेजी के समय सदैव शेयर बचना ही श्रेयस्कर है।

8. निवेशकर्त्ता को सदैव ” विपरीत विचार ” के सिद्धान्त का पालन करना चाहिए। इस सिद्धान्त के अन्तर्गत यदि अधिकांश निवेशकर्त्ता , जो कार्य करने का प्रयत्न करें, उसके बिल्कुल विपरीत कार्य करने में ही बुद्धिमानी है। क्योंकि शेयर बाजार में शेयरों के मूल्यों के उतार – चढ़ाव निवेशकर्त्ताओं के विचारों के विपरीत होते . हैं परन्तु समान विचार रखने वाले निवेशकर्त्ताओं की संख्या अधिक होनी चाहिए।

उदाहरण के लिए यदि कुछ निवेशकर्त्ताओं का अनुमान है कि किसी कम्पनी के शेयरों के मूल्य गिरेंगे तो वे उन शेयरों को बेचना आरम्भ कर देती हैं और यह गिरावट अन्य निवेशकर्त्ताओं में भी मूल्य के गिरने की आशंका पैदा कर देती है । जिससे अधिकांश निवेशकर्त्ताओं का अनुमान एक जैसा हो जाता है और उस कम्पनी के शेयरों की भारी बिकवाली होती है।

शेयरों के मूल्य अपने निम्नतम मूल्य पर आ जाते हैं और शेयरों के मूल्य आगे नहीं गिरते हैं , जबकि सभी निवेशकर्त्ताओं के विचार में उक्त शेयरों के मूल्यों में गिरावट आनी चाहिए। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि अब बाजार में शेयर बेचने वालों की संख्या कम रह जाती है । बाजार में अब केवल खरीदारों का वर्चस्व कायम हो जाता है और शेयरों की खरीददारी के कारण उनके मूल्यों में शनैः – शनैः वृद्धि होती जाती है। यदि कोई निवेशकर्ता विपरीत विचार के सिद्धान्त का अनुसरण करके उक्त शेयरों को खरीदना आरम्भ कर देता है तो उसे अधिक लाभ होने की सम्भावना रहती है।

इसी प्रकार यदि अधिकांश निवेशकर्त्ताओं का अनुमान किसी कम्पनी के शेयरों में वृद्धि होने के बारे में है तो उन शेयरों को ” बेचना ही हितकर है।

उदाहरण के लिए  एक कम्पनी क ख ग लि ० के शेयरों का भाव 50 रु ० से 55 रु ० तक है। निवेशकर्त्ताओं में अधिकांशतः सभी का अनुमान है कि इस शेयर के मूल्य निकट भविष्य में 85 रु ० तक जायेंगे और इन शेयरों की खरीदारी अधिक होगी और उनके मूल्य 70 रु ० तक बढ़ जायेंगे और इस मूल्य पर भाव स्थिर हो जायेंगे। क्योंकि प्रत्येक निवेशकर्त्ता इससे अधिक भाव पर खरीदने को तैयार नहीं है क्योंकि 60 रु ० प्रति शेयर के भाव पर खरीदकर ही वह 85 रु ० के भाव में बेचकर कम से कम 25 % लाभ कमा पायेगा।

इस प्रकार इस कम्पनी के शेयरों के दाम 60 रु ० से अधिक नहीं जायेंगे , जबकि अधिकांश निवेशकर्त्ता यही विचार रखते हैं कि इस शेयर के मूल्य 85 रु ० से ऊपर ही जायेंगे । विपरीत विचार के सिद्धान्त पर कार्य करने वाले निवेशकर्त्ता ने यही शेयर 50 रु ० के भाव में खरीदे और 60 रु ० के भाव में बेच दिये और अल्प समय में ही समुचित लाभ अर्जित कर लिया।

 

इसके लिए कुछ सावधानियाँ बरतना आवश्यक है। 

  • जब उसे उस समय के अत्यधिक मूल्य से कम ही बेचें।
  • उसके अधिक बढ़ने की प्रतीक्षा न करें।
  • जिस व्यक्ति को शेयर बेचें तो उसे भी कुछ लाभ अर्जित करने का अवसर दें। इसलिए सर्वाधिक मूल्य से थोड़ा कम मूल्य पर ही शेयर बेचें।
  • जब दूसरे निवेशकर्त्ता बेचें तो आप खरीदें और जब दूसरे निवेशकर्त्ता खरीदें तो आप बेचें। यही अधिक लाभ अर्जित रखने का सर्वोत्तम तरीका है।
  • यदि किसी कम्पनी के शेयरों में तीव्र वृद्धि हो तो तीव्र वृद्धि के तरुन्त बाद उन शेयरों को बेच दें क्योंकि तेजी से वृद्धि के बाद ही शेयरों के मूल्य तेजी तब आपको अपने शेयरों को अधिक मूल्य पर नहीं बेचने से हानि हो सकती है ।
  • निवेशकर्त्ता को शेयरों से भावनात्मक सम्बन्ध स्थापित करना उनके हित में नहीं है । कभी – कभी ऐसा देखा गया है कि ब्लू चिप्स कम्पनियों के शेयरों को कई व्यक्ति कई पीढ़ियों तक सम्भाले रखते हैं । उनकी दृष्टि में ये अत्यन्त मूल्यवान सम्पत्ति माने जाते हैं और उनका उत्तराधिकार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता रहता है। ऐसे व्यक्ति शेयर बाजार की गतिविधियों से हुए मूल्यों में उतार – चढ़ाव के लाभ से वंचित रह जाते हैं।
  •  कभी – कभी लोग शेयरों में किये निवेश से उत्पन्न लाभ में से अपनी निवेश की गई मूल धनराशि को जब तक वसूल नहीं कर लेते हैं तब तक शेयरों को बेचने का साहस नहीं करते हैं, जबकि निवेशित मूल धनराशि को पुनः प्राप्त करने में कई वर्षों तक का समय लग सकता है।
  • पूँजी – प्राप्ति या वृद्धि पर सरकार द्वारा लगाया कर भी कई व्यक्तियों को शेयर बेचने से रोकता है। निवेशकर्त्ता को उचित समय पर शेयर बेच देने चाहिए व पूँजी-वृद्धि पर कर चुकाकर पुनः अच्छे व लाभप्रद शेयरों में निवेश करना चाहिए ।
  • शेयर बेचते समय शेयर के P/E अनुपात की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि किसी कम्पनी के शेयर का P/E अनुपात में अचानक अविश्वसनीय रूप से वृद्धि हो जाये तो उसके शेयरों को बेचने से अधिक लाभ हो सकता है।
  • यदि आपने अपने निवेश पर 100 से 200 % लाभ अर्जित कर लिया है तो उन शेयरों को तुरन्त बेच दें। यदि आप समझते हैं कि इन शेयरों के मूल्य में और अधिक वृद्धि होगी तो उन्हें आप कुछ समय बाद पुनः खरीद लें । हो सकता है आपको उनसे भी अधिक लाभ अन्य कम्पनियों के शेयरों में खरीदने में दिखाई दे तो आप उन्हें खरीद सकते हैं।
  • जब भी आप कोई शेयर खरीदें तो किसी उद्देश्य से खरीदें । यह उद्देश्य आपके विश्लेषण और भविष्य में शेयर निवेश में पूँजी वृद्धि की दर से निश्चित होता है।
  • जब भी आप पूर्व – निश्चित उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं तो शेयरों को बेचना ही श्रेयस्कर है।
  • यदि आपके अनुमान के विपरीत किसी कम्पनी के शेयरों में निवेश करने में आपको कुछ कम ही हानि होती है तो शेयरों को तुरन्त बेच दें, क्योंकि शेयरों के मूल्य में 10 % का उतार – चढ़ाव महत्त्वपूर्ण नहीं है।

यदि शेयरों के मूल्य अधिक गिर जाते हैं तो आपकी हानि का प्रतिशत बढ़ता जायेगा और इस बड़ी हानि को पूरा करना असम्भव है।

Stock market in Hindi

शेयर क्या है ? ( Share in Hindi )

शेयर ( Share ) से आशय अधिकतर साधारण शेयर या इक्विटी ( समता ) अंश से होता है । शेयर के धारक को कम्पनी के स्वामित्व में उसके द्वारा खरीदे गये शेयरों के अनुपात में भागीदारी प्राप्त होती है। शेयर धारक को कम्पनी की अंश पूँजी ( Share Capital ) में एक निश्चित राशि पर अधिकार प्राप्त होता है।

उदाहरण के लिए  एक कम्पनी क ख ग लि ० 10,000 शेयर निर्गमित जारी करती है और किसी व्यक्ति को उक्त कम्पनी के 100 शेयर आवंटित किये गये हैं तो कम्पनी के स्वामित्व में उसकी 1 % की भागीदारी है।

प्रत्येक कम्पनी अपनी पूँजी को समान और निश्चित मूल्य के शेयरों में विभाजित करती है। प्रत्येक शेयर का निश्चित मूल्य ही उसका अंकित मूल्य ( Face Value) कहलाता है।

लेकिन शेयर बाजार (Stock Market in Hindi) में इनके मूल्यों में , कम्पनी की आर्थिक स्थिति के अनुसार , वृद्धि या कमी हो सकती है। फेस वैल्यू – 1 , 2 , 5 , 10 , 100 .

 

बोनस शेयर (Bonus Share) किसे कहते हैं ?

जब किसी कम्पनी का व्यापार सुचारु रूप से चलता है और उसके लाभों की बड़ी राशि कोष के रूप में एकत्रित हो जाती है तो कम्पनी बोनस शेयर जारी करके इस अतिरिक्त लाभांश को अपनी पूँजी में परिवर्तित करा लेती है । यह बोनस शेयर कम्पनी द्वारा जारी इक्विटी या प्रीफरेंस शेयरों के शेयर धारकों को उनके पास शेयरों की संख्या के अनुपात में निर्गमित किये जाते हैं।

 

पूर्वाधिकार शेयर (Preference Share) क्या हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं ?

पूर्वाधिकार शेयर व्यवसाय के दौरान लाभांश के भुगतान एवं कम्पनी के बन्द होने पर शेष पूँजी के पुनर्भुगतान की स्थिति में साधारण शेयरों के ऊपर अधिकार रखते हैं। कम्पनी के लाभों में सर्वप्रथम इसी श्रेणी के शेयर धारकों को लाभांश प्राप्त करने का अधिकार है। इन्हें लाभांश देने के पश्चात् जो शेष लाभांश रह जाता है वह अन्य श्रेणी के शेयरों में वितरित किया जाता।

इन शेयरों पर भुगतान किये जाने वाले लाभांश की दर पहले से ही निश्चित होती है और उसी के अनुरूप इन शेयरों पर वितरण होता है। इसलिए इन शेयरों के धारक इक्विटी शेयर के धारकों से कम जोखिम उठाते हैं।

 

 शेयरों को निम्न श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

  •  असंचयी पूर्वाधिकार शेयर ( Non – Cumulative Preference Sharesin Hindi) – कभी – कभी कम्पनी को किसी वर्ष में यदि कोई लाभ नहीं होता है और कम्पनी इन शेयरों को निश्चित लाभांश देने की स्थिति में नहीं हो तो ऐसे शेयरों के धारक आगामी वर्षों में पिछले वर्ष हेतु , जिसमें उन्हें लाभ नहीं प्राप्त हुआ , लाभांश की माँग नहीं कर सकते

 

  • संचयी पूर्वाधिकार शेयर ( Cumulative Preference Shares ) – इस श्रेणी के पूर्वाधिकार शेयरों पर भी अन्य श्रेणियों के शेयरों की अपेक्षा पहले लाभांश प्राप्त करने का अधिकार होता है परन्तु किसी वर्ष कम्पनी को पर्याप्त लाभ न होने के कारण इन्हें लाभांश न मिले तो उस वर्ष के लिये लाभांश प्राप्त करने का उनका अधिकार समाप्त नहीं हो जाता है बल्कि आगामी वर्षों में जब कभी कम्पनी को पर्याप्त लाभ हो तो उसमें से सबसे पहले इन शेयरों को अपने लाभांशों की बकाया राशि प्राप्त करने का अधिकार होता है।

इस प्रकार जब तक कम्पनी इन शेयरों को बकाया लाभांश का भुगतान नहीं कर देती है तब तक इक्विटी शेयर धारकों को कोई लाभांश नहीं मिलता है। इस प्रकार ऐसे शेयर दोहरे रूप से सुरक्षित हैं । एक ओर तो इन्हें एक निश्चित दर से लाभांश मिलता है ; दूसरी ओर कम्पनी की हानि होने की दशा में इनके लाभांश का अधिकार समाप्त होने की बजाय संचित हो जाता है।

 

  • विमोचनशील पूर्वाधिकार शेयर ( Redeemable Preference Shares ) — साधारणतः कोई भी कम्पनी अपने शेयर धारकों को शेयर पूँजी नहीं लौटा सकती है जब तक कम्पनी बन्द न हो लेकिन कम्पनी ऐसे पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन कर सकती है जिनकी धनराशि एक निश्चित अवधि के बाद लौटा दी जाती है। ऐसे शेयरों को विमोचनशील शेयर कहते हैं।

 

बोनस शेयर (Bonus Sheyar )

से निवेशकर्ता को क्या लाभ हैं ? बोनस शेयर , कम्पनी द्वारा , केवल अपने शेयर धारकों को ही निर्गमित किये जाते हैं। ये शेयर वर्तमान में शेयर धारकों के पास शेयरों के अनुपात में निर्गमित किये जाते हैं। यह केवल कम्पनी की लेखा – पुस्तकों में प्रविष्टि करने पर ही जारी हो जाते हैं। जब किसी कम्पनी के संचय अधिक हो जाते हैं तो वह अपने संचय के एक निश्चित भाग को बोनस शेयर के रूप में अपने शेयर धारकों में बाँट देती है।

क्योंकि य कम्पनी अधिक लाभांश प्रदान करती है तो कम्पनी अपने उपभोक्ताओं की दृष्टि में अत्यधिक लाभ कमाने की श्रेणी में आ जाती है और उसके लाभों पर सरकार द्वारा अंकुश लगाया जा सकता है। इस प्रकार कम्पनी लाभांश न घोषित करके अपने शेयर धारकों को बोनस शेयर जारी करती है।

वास्तव में शेयर धारकों को बोनस शेयर से अधिक लाभ शीघ्र नहीं मिल पाता है ; उदाहरण के लिए , एक कम्पनी क ख ग लि ० अपने शेयर धारकों को 1 : 2 के अनुपात में बोनस शेयर जारी करती है। कम्पनी की मूल इक्विटी पूँजी 20 करोड़ है और 2 करोड़ शेयर प्रत्येक 10 रु ० मूल्य के हैं। बोनस शेयर जारी करने से कम्पनी की पूँजी 30 करोड़ हो जायेगी और शेयरों की संख्या 3 करोड़ हो जायेगी और कम्पनी का संचय 10 करोड़ रुपये कम हो जायेगा।

इस प्रकार जिस शेयर धारक के पास 2 शेयर थे अब उसके पास तीन शेयर हो जायेंगे । इस प्रकार शेयर धारक को अब दो की अपेक्षा तीन शेयरों पर लाभांश मिलेगा और उसके लाभांश की राशि बढ़ जायेगी । परन्तु यदि कम्पनी बोनस शेयर जारी करने की अपेक्षा यदि लाभांश प्रत्येक शेयर पर डेढ़ गुना कर देती तो भी शेयर धारक को अपने दो शेयरों पर उतना ही लाभांश मिलता।

इस प्रकार बोनस सहित तीन शेयरों की बाजार में कीमत बोनस शेयर के जारी करने के पूर्व दो शेयरों की कीमत के बराबर होगी । क्योंकि शेयरों के दो – तिहाई मूल्य के बराबर उसके बोनस शेयर जारी होने के बाद शेयरों का मूल्य होगा । वास्तव में शेयर के मूल्य में एक – तिहाई की कमी आती है जिससे बोनस शेयर कारोबार जारी करने के बाद तीन शेयरों का मूल्य बोनस इश्यू या जारी करने से पहले दो शेयरों के मूल्य से अधिक होती है।

इस प्रकार बोनस शेयर जारी करने से कम्पनी के शेयर धारकों को कोई अतिरिक्त लाभ साधारण अवस्थाओं में नहीं मिल पाता ।

 

ब्लू चिप्स शेयर क्या हैं ? 

उन कम्पनियों के शेयर ब्लू चिप्स ( Blue Chips ) शेयर कहलाते हैं जो निवेशकर्त्ता को अधिक लाभ प्रदान करते हैं तथा उनमें निवेश सुरक्षित व अच्छा माना जाता है। ऐसी कम्पनियाँ ख्याति प्राप्त व आकार में बड़ी , कुशल प्रबन्धकों व संचालकों द्वारा संचालित, तकनीक में विकसित तथा विकासोन्मुख होती हैं ।ये कम्पनियाँ शेयर धारकों को अधिक लाभांश देती हैं।

 

बोनस शेयर पर पूँजी वृद्धि किस प्रकार है ?

किसी भी कम्पनी के शेयर धारकों को उस कम्पनी के द्वारा बोनस शेयर जारी करने से लाभ होता है और उनका कम्पनी में विश्वास भी बढ़ता है। ऐसी स्थिति में कम्पनी के शेयरों के मूल्यों में भी वृद्धि हो जाती है।

अनुपात में जारी किये जाते हैं और इनका राइट शेयर हैं। ये शेयर वर्तमान शेयर धारकों को कम्पनी शेयर कम्पनी द्वारा निर्धारित मूल्य पर वर्तमान के आधार पर जारी किये जाते हैं। द्वारा उनके द्वारा खरीदे शेयरों की संख्या के बोनस शेयर एक प्रकार के मूल्य उनसे नहीं लिया जाता है।

जबकि राइट शेयर धारकों को उनके शेयरों के अनुपात शेयर धारकों में बोनस शेयरों के प्रति लगाव प्रकार से होता है । कभी – कभी शेयर धारकों में यह भावना घर कर जाती है कि उन्हें बिना कुछ दिये कुछ प्राप्त हो रहा है । दूसरी ओर सैद्धान्तिक व विवेकपूर्ण तरीके से विचार किया जाय तो कम्पनी अपनी शेयर पूँजी को सदैव बढ़ाना चाहती है और अपने संचय में से बोनस शेयर जारी करती है।

बोनस शेयर जारी करना कम्पनी की वृद्धि व भविष्य में अच्छे परिणामों की ओर संकेत देता है। बोनस शेयर जारी करने से शेयर धारकों को अधिक लाभांश भी मिलता है। इस कारण भी शेयर धारक बोनस शेयर लेना अधिक लाभप्रद समझते हैं।

बोनस शेयर जारी करने के बाद कम्पनी के शेयरों के मूल्यों में सामान्यतः उस अनुपात में गिरावट नहीं आती है जिस अनुपात में बोनस शेयर जारी किये गये हैं। बोनस शेयरों पर पूँजी वृद्धि कर की गणना भी शेयर धारकों को लाभ देती है। आयकर अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे बोनस शेयर के मूल्य की गणना की जा सके।

बोनस शेयर पर औसत मूल्य की गणना का तरीका लागू होता है। मूल शेयरों की पूँजी वृद्धि के लिए मूल शेयरों को प्राप्त करने की लागत व उसमें अतिरिक्त व्यय जैसे हस्तान्तरण व्यय आदि जोड़े जाते हैं। इसलिए निवेशकर्त्ताओं को एक ही साथ मूल शेयर व बोनस शेयरों को नहीं बेचना चाहिए। उन्हें अलग – अलग बेचना चाहिए । इस प्रकार कर में भी बचत हो सकती है।

 

वोलेटाइल शेयर (Volatile Share) क्या होते हैं ?

जिन शेयरों की कीमत में अधिक उतार व चढ़ाव होते रहते हैं उन्हें वोलेटाइल शेयर ( Volatile Share ) कहते हैं। इनके अधिकतम तथा निम्नतम मूल्य में काफी अन्तर होता है। इनकी कीमतों में परिवर्तन को निम्न प्रकार आँक सकते हैं निम्नतम मूल्य परिवर्तनशीलता % = अधिकतम मूल्य निम्नतम मूल्य Highest Price- Lowest Price Lowest Price x 100 Volatility % = इन शेयरों में निवेश से शीघ्र व अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

 

आज के पोस्ट में आपने सीखा की शेयर मार्केट क्या होता है? (Sheyar Market Kya Hota Hai) और यह कैसे काम करता है। शेयर मार्केट से सम्बंधित और भी आप जानकारी पाना चाहते है तो आप हमें फ्लो कर ले शेयर मार्केट से सम्बंधित और भी जानकारी उपलब्ध होता रहेगा जिससे आप सभी को ज्यादा ज्यादा से फ़ायदा मिलेगा 

 

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