Stress Management in Hindi तनाव प्रबंधन क्या है? इसका कारण एवं उपाय सब कुछ जाने डिटेल से

             Stress Management in Hindi

तनावपूर्ण जीवन की घटनाएँ को लेकर काफी लोग परेसान रहते हैं इसके विभिन्न भागों को जानेंगे पूरे डिटेल के साथ की stress management in Hindi क्या होता है? इसका उपाय क्या है? और इसका होने मुख्य कारण क्या है? ये सारी जानकारी को हम मनोविज्ञान के वैज्ञानिकों के अनुभवों के आधार पर जानेंगे इस आर्टिकल में पूरी डिटेल्स के साथ बताया गया है। 

व्यक्ति के जीवन में तरह – तरह की घटनाएँ घटित होती हैं कुछ सुखद और कुछ दुखद। अतः व्यक्ति को इन परिस्थितियों के साथ पुनर्समायोजन (Readjustment) करने की आवश्यकता होती है। जब व्यक्ति ऐसी घटनाओं के प्रति उचित प्रकार से समायोजन नहीं कर पाता तो वे परिस्थितियाँ तनाव उत्पन्न करती हैं और व्यक्ति में दैहिक व सांवेगिक विकृतियाँ ( Emotional disorders ) उत्पन्न कर देती हैं।तनाव मानव जीवन की सबसे बड़ी समस्या है, आज कल हर कोई तनाव से परेसान रहा रहा है। आज की आर्टिकल में हम सब यही जानेंगे। 


इस क्षेत्र में होलम्स एवं राहे ( Holmes and Rahe 1967 ) stress management in Hindi का अध्ययन महत्वपूर्ण है उन्होंने जीवन की तनावपूर्ण घटनाओं के महत्व को मापने के लिए एक विशेष मापनी ( scale ) अर्थात् मात्रा उत्पादन ( Magnitude production ) की विधि को विकसित किया है जिसे सामाजिक पुनर्समायोजन रेटिंग मापनी ( Social Readjustment Rating Scale or SRRS ) कहा गया।

 इस मापन पर प्राप्तांक जितना अधिक होता है उनमें तनाव उतना ही अधिक होना समझा जाता है। और उनका सांवेगिक यानी (भय,क्रोध,चिन्ता,हर्ष,प्रसन्नता) एवं दैहिक (शरीर संबंधित) स्वास्थ्य खराब होने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है। अतः जीवन की महत्वपूर्ण घटना परिवर्तनों को तनाव ( Stress ) का प्रमुख कारण बताया गया है फिर भी निम्न कुछ तथ्य ऐसे हैं जिनमें उक्त सम्बन्ध पर आशंकाएँ होती हैं – 



1. तनाव के प्रभावों को कुछ सामान्य स्वास्थ्य आदत (Health habit ) 


जैसे — विशेष तरह का भोजन करने की आदत , 
सिगरेट पीने की आदत, शराब पीने की आदत से उत्पन्न प्रभावों से अलग करना कठिन है। व्यक्ति अपने जीवन की घटनाओं में हुए प्रमुख परिवर्तनों के साथ समायोजन करने में सम्भव है कि वह और अधिक शराब पाना शुरू कर दें या सिगरेट पीना प्रारम्भ कर दें । ऐसी परिस्थिति में उसमें उत्पन्न बीमारी या सांवेगिक एवं दैहिक • अवस्थाओं के कारण स्वास्थ्य आदत अधिक खराब हो जायेगी तथा जीवन की प्रमुख घटनाएँ कम होंगी। 

         stress management in Hindi
अगर जीवन की परिवर्तित घटना ही सिर्फ तनाव का कारण होती तो कोई भी घटना समान ढंग से सभी व्यक्तियों में तनाव उत्पन्न करती परन्तु वास्तविकता तो यह कोई भी घटना सभी व्यक्तियों को अलग – अलग तरह से प्रभावित करती है ।
 इस वैयक्तिक विभिन्नताओं के कारण ही घटना विशेष को तनाव का कारण मानना तर्कसंगत नहीं लगता है।  

जीवन घटना मापनी ( Life Scale Events ) के कुछ एकांश ऐसे हैं जिन्हें सांवेगिक एवं दैहिक अस्वस्थता का कारण माना जा सकता है । 



जीवन घटना मापनी की एक महत्वपूर्ण पूर्वकल्पना यह है कि परिवर्तन अपने आप में तनावपूर्ण ( Stressful) होता है परन्तु बाद में किये गये शोधों से यह स्पष्ट हुआ कि धनात्मक परिवर्तनों का सम्बन्ध खराब स्वास्थ्य से नहीं होता और कभी – कभी तो ऐसा होता है कि परिवर्तन न होने से ही व्यक्ति में तनाव होता है । इससे यह पता चलता है कि कोई भी जीवन घटना तनावपूर्ण होगा या नहीं , यह बहुत कुछ व्यक्ति के व्यक्तिगत इतिहास एवं वर्तमान जीवन परिस्थिति पर निर्भर करता है। 


2. दिन – प्रतिदिन की उलझन ( Daily Hassles )

 जिन्दगी की बड़ी एवं महत्वपूर्ण घटना तो निश्चित रूप से तनाव के स्रोत हैं परन्तु दिन प्रतिदिन की छोटी – छोटी उलझनों से भी तनाव होता पाया गया है । ऐसी उलझनें चूँकि व्यक्ति के जीवन में अक्सर होती हैं , इसलिए तनाव उत्पन्न करने में इनका महत्व कम नहीं है।stress management in Hindi इन उलझनों को निम्न छः भागों में बाँटा जा सकता है 

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पर्यावरणीय उलझन ( Environmental Hassles ) — इसमें आवाज, शोर – गुल, अपराध, आदि आते हैं ।

 

 घरेलू उलझन ( Household Hassles ) – इसमें भोजन बनाना , बर्तना धोना , घर की सफाई , कपड़ा या अन्य सामानों को खरीदना आदि से सम्बन्धित कारक आते हैं। 


आन्तरिक भाव से सम्बद्ध उलझन ( Inner Concern Hassles ) – इसमें अकेले होने का भाव , किसी से मनमुटाव या झगड़ा हो जाने का भाव आदि आते हैं।
 
समयाभाव से उत्पन्न उलझन ( Hassles due to Time ) – इसमें बहुत सारे कामों को एक समय के भीतर पूरा करने के उत्तरदायित्वों को निभाने आदि कारकों को रखा गया है ।

कार्य उलझन ( Work Hassles ) – कार्य से असन्तुष्टि , पदोन्नति के अवसर का न होना तथा किसी भी समय कार्य से हटाये जाने की सम्भावना आदि को रखा गया 



3.प्रेरकों का संघर्ष ( Conflict of Motives )
 जब अभिप्रेरकों के बीच संघर्ष होता है , तो इससे व्यक्ति में तनाव ( Stress ) उत्पन्न होता है ऐसी परिस्थिति में जिस अभिप्रेरक की तुष्टि नहीं होती है , उससे व्यक्ति में कुण्ठा उत्पन्न होती है जो तनाव का प्रमुख स्रोत है। 1930 में कुर्ट लेविन (Kurt Lewin)stress management in Hindi ने दो विरोधी झुकावों के रूप में संघर्ष का वर्णन किया है— उपागम ( Approach ) तथा परिहार ( Avoidance ) जब व्यक्ति को दो वांछनीय विकल्पों के बीच चुनाव करना आवश्यक हो
जाता है तो इसे उपागम – उपागम संघर्ष ( Approach – approach conflict ) कहा जाता है । 


4.कार्य से उत्पन्न तनाव (Stress Produced by Work) stress management in Hindi

 व्यक्ति जिस कार्य को करता है उससे सम्बन्धित कुछ कारक व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करते हैं ; जैसे – कम समय में बहुत सारा कार्य किसी कर्मचारी में तनाव उत्पन्न करेगा और कार्य – स्थल का मौलिक वातावरण ( Physical environment ) ठीक न होने पर वह कार्य असन्तुष्टि ( Job dissatisfaction ) का भी अनुभव करेगा जो उसमें तनाव की स्थिति पैदा करेगा। 

इनमें भूमिका संघर्ष ( Role conflict ) तथा निष्पादन मूल्यांकन ( Performance appraisal ) प्रधान है।
 जब किसी व्यक्ति से उसके पद के अनुसार विभिन्न कार्यों के पूर्ण होने की हैं तो उसमें भूमिका संघर्ष ( Role conflict ) उत्पन्न होता है जो तनाव को पैदा करता है। 

उसी प्रकार यदि कर्मचारी के निष्पादन का मूल्यांकन करने की विधि उचित है तो उसमें तनाव उत्पन्न नहीं होता परन्तु यदि वे समझते हैं कि विधि अनुचित है तो उनमें तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।  जब व्यक्ति पर तनाव तीव्र होता है और वह स्वयं को इस स्थिति से नहीं निकाल पाता है तो एक विशेष अवस्था जिसे ‘ बर्नआउट ‘ (Burnout ) कहते हैं, 

 इसमें कर्मचारी काफी निराश, असन्तुष्ट कार्य पर अक्षमता तथा मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर दिखते हैं। बर्नआउट के अन्तिम चरण में व्यक्ति कार्य करने में असमर्थ रहता है। राईस (Rice 1987) के अनुसार, बर्नआउट कार्य तनाव का लक्षण नहीं है बल्कि अप्रबन्धित कार्य तनाव ( Unmanaged work stress ) का परिणाम है।


 5.पर्यावरणीय स्त्रोत (Envionmental Sources) stress management in Hindi
 कुछ पर्यावरणी कारक ऐसे होते हैं जो व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करते हैं।

 जैसे— भूकम्प, आगजनी, तीव्र आँधी, तूफान आदि। 



कास्ल (Kasl , 1990 ) के अनुसार

ऐसे स्वाभाविक पर्यावरणीय कारकों का अध्ययन तो उस समय नहीं किया जा सकता है जिस समय इनकी प्रबलता होती है। 
परन्तु बाद में व्यक्तियों की अनुभूति के आधार पर यह अंदाज लगाया जाता है कि ऐसी स्वाभाविक घटनाएँ व्यक्ति में काफी तनाव उत्पन्न करती हैं। 

इसके अतिरिक्त कुछ पर्यावरणीय कारक ऐसे हैं जो मनुष्यों द्वारा निर्मित हैं और व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करते हैं। 

जैसे— 
शोरगुल प्रदूषण (Noise pollution) 

अणु परीक्षण (Nuclear test) 

अत : यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति में तनाव (Stress) कई कारणों से उत्पन्न होता है । यदि हम तनाव को कम करने के उपाय पर सोचते हैं तो हमें इन कारकों का भी ध्यान रखना होगा। 



तनाव के प्रकार ( Types of Stress in hindi) stress management in Hindi 

Types of stress


तनाव मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- 

( 1 ) शारीरिक तनाव ( Physiological Stress )

( 2 ) मानसिक तनाव ( Mental Stress )


1. शारीरिक तनाव ( Physiological Stress in Hindi ) stress management in Hindi

जब व्यक्ति तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों के बीच लम्बे समय तक रहता है तो ये परिस्थितियाँ तंत्रिका तन्त्र के कई भागों को प्रभावित करती हैं जिससे व्यक्ति में शारीरिक तनाव उत्पन्न होने लगता है। 

जैसे— पेट की गड़बड़ी , हृदय गति का असामान्य होना , श्वसन गति में परिवर्तन आदि।


 2. मानसिक तनाव ( Mental Stress in Hindi ) 

 जब तनाव की परिस्थितियों या उद्दीपकों से व्यक्ति के मानसिक कार्यों में एक तरह का विघटन या क्षुब्धता ( Disruption ) पायी जाती है तो इसे मानसिक तनाव कहते हैं। 

जैसे — चिन्ता, क्रोध, आक्रामकता, विषाद आदि के लक्षण व्यक्ति में दिखाई देते हैं।



 अतः तनाव चाहे शारीरिक हो या मानसिक व्यक्ति में दो तरह की अनुक्रियाएँ करते हैं—
 
1.  दैहिक प्रतिक्रियाएँ ( Physiological Reactions)

2. मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाएँ ( Psychological Reactions)


 1. दैहिक प्रतिक्रियाएँ ( Physiological Reactions) stress management in Hindi
 तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों के प्रति या उद्दीपकों के प्रति व्यक्ति जो दैहिक प्रतिक्रियाएँ करता है उन्हें दो भागों में बाँटा गया है 


  • आपातकालीन अनुक्रियाएँ (Emergency Responses) 
तनाव उत्पन्न करने वाले उद्दीपक के प्रति व्यक्ति के शरीर में कुछ ऐसी अनुक्रियाएँ होती हैं जिसे आपातकालीन अनुक्रियाएँ ( Emergency responses ) कहा जाता है। 

 


ऐसी अनुक्रियाओं के माध्यम से शरीर में यकृत (Liver) अतिरिक्त मात्रा में चीनी का उत्सर्जन करने लगता है ताकि शरीर की माँसपेशियों को अधिक से अधिक शक्ति मिल पाये। 


शरीर में कुछ हारमोन्स ऐसे निकलने लगते हैं जो चर्बी तथा प्रोटीन को चीनी में बदल देते हैं जिससे भी शारीरिक कार्य के लिए पर्याप्त ऊर्जा व्यक्ति को मिलने लगती है। लार तथा श्लेष्मा ( Mucus ) की मात्रा में काफी कमी आ जाती है ताकि फेफड़ों को अधिक से अधिक वायु प्रवेश करने के रास्ते में कहीं कोई रुकावट न आये।

इन्डोरिफन्स (Endorphins) जो एक प्रकार का स्वाभाविक दर्दनाशक है। की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तथा शरीर के सतही क्षेत्रों में पायी जाने वाली रक्त नलिकाएँ थोड़ी संकुचित हो जाती हैं। 
जिसके परिणामस्वरूप तनावपूर्ण परिस्थिति से निबटने में यदि शरीर में कहीं कुछ कट – फट जाता है तो कम मात्रा में रक्त व्यक्ति के शरीर से निकलता है। 


शरीर का प्लीहा (Spleen) अधिक मात्रा में रक्त लाल कण का उत्सर्जन करते हैं ताकि अधिक से अधिक ऑक्सीजन शरीर के अंगों को मिल सकें।
इतना ही नहीं हड्डी मज्जा ( Bone marrow ) से अधिक श्वेत रक्त कण का उत्सर्जन होने लगता है ताकि शरीर किसी प्रकार के सम्भावित संक्रमण (Infection) से उचित प्रकार से निबट सके।


उक्त सभी प्रकार की आपातकालीन अनुक्रियाओं का उद्देश्य मात्र एक ही होता है तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थिति के साथ ठीक ढंग से निबटना तथा उसके साथ उपयुक्त समायोजन (Adjustment ) करना। stress management in Hindi ही होता हैं। 

 

ये सभी दैहिक अनुक्रियाएँ स्वायत तंत्रिका तन्त्र (Autononic nervous system) 
तथा अन्तःस्रावी ग्रन्थि ( Endocrine gland ) तथा विशेषकर एड्रीनल ग्रन्थि तथा पीयूष ग्रन्थि ( Pituitary gland ) की मदद से नियमित एवं नियन्त्रित होती है। 


कैनन ( Cannon , 1920 ) ने इन अनुक्रियाओं को भिड़ो या भागो अनुक्रिया (Fight or flight response) कहा। 

सेली ( Selye , 1979 ) ने इसे चेतावनी प्रतिक्रिया ( Alarm response ) कहा क्योंकि ये अनुक्रियाएँ व्यक्ति को परिस्थिति से भिड़ जाने या भाग जाने के लिए चेतावनी देती हैं या तैयार करती हैं।
GAS के संप्रत्यय का प्रतिपादन सेली ( Selye , 1979 ) द्वारा किया गया । 

  •  सामान्य अनुकूलन संलक्षण ( General Adaptation Syndrome . GAS ) सेली ने तनावपूर्ण परिस्थिति में होने पर पशुओं द्वारा दिखाये जाने वाले दैहिक परिवर्तनों वर्णन किया है और यह भी मत है कि इस तरह का शारीरिक परिवर्तन मनुष्यों में भी होता है ।



 GAS में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों की व्याख्या तीन अवस्थाओं में बाँटकर किया गया। 

1. चेतावनी प्रतिक्रिया की अवस्था ( Stage of alarm reaction )

2. प्रतिशोध की अवस्था ( Stage of resistance )

 3. समापन की अवस्था ( Stage of exhaustion) 


 1. चेतावनी प्रतिक्रिया की अवस्था ( Stage of alarm reaction ) stress management in Hindi

जब व्यक्ति तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थिति या घटना जिसे आसेधक ( Stressor ) कहा जाता है , से घिर जाता है और उससे प्रभावित होता है तो उसमें सबसे पहले जो शारीरिक परिवर्तन होते हैं , उसे चेतावनी प्रतिक्रिया (Alarm reaction) कहते हैं । 

इस अवस्था में व्यक्ति का शरीर अपने आपको आसेधक के प्रति तात्कालिक अनुक्रिया ( Immediate response ) करने के लिए तत्पर रहता है। 


इस अवस्था की दो उपअवस्थाएँ ( Substages ) होती हैं। 

  1.   आघात अवस्था (Stock phase) 
  2.  प्रतिआघात अवस्था (Countershock phase) 

1. आघात अवस्था में अवरोधक से पहली बार सामना होने से एक तरह का शारीरिक आघात व्यक्ति को लगता है जिसमें शारीरिक तापक्रम तथा रक्तचाप गिर जाता है , हृदय गति कम हो जाती है तथा माँसपेशियाँ सुस्त हो जाती हैं ।


इस अवस्था के तुरन्त बाद प्रतिआघात अवस्था उत्पन्न होती है जिसमें शरीर अपने रक्षा प्रक्रमों को बढ़ा देता है जिससे आसेधकों ( Stressors ) से निबटने की प्रतिशोध क्षमता बढ़ने लगती है । 

2. प्रतिशोध की अवस्था ( Stage of resistance ) – stress management in Hindi अगर व्यक्ति के सामने आसेधकों की मौजूदगी बनी रहती है तो GAS की दूसरी अवस्था शुरू होती है जहाँ शरीर आसेधकों ( Stressors ) की निरन्तर मौजूदगी से उत्पन्न प्रभाव को अवरुद्ध करता है। 

इस अवस्था में शरीर के कुछ हारमोन्स निकलते हैं जिनसे प्रतिरोध की मात्रा में वृद्धि हो जाती है अर्थात् शरीर इन हारमोन्स के सहारे आसेधकों के प्रभाव से स्वयं को बचाता है । 

अगर इस अवस्था में व्यक्ति के सामने कोई नया आसेधक ( Stressor ) आता है तो इस आसेधक के प्रति व्यक्ति की प्रतिरोध शक्ति में काफी कमी आ जाती है ।



 ( 3 ) समापन की अवस्था ( Stage of exhaustion ) – GAS की तीसरी अवस्था मौलिक आसेधकों ( Original stressors ) तथा नये आसेधकों ( New stressors ) दोनों के प्रति अनुक्रिया करने की क्षमता में काफी कमी आ जाती है और प्राणी में शिथिलन बढ़ जाता है वह बीमार हो जाता है । इस स्थिति में व्यक्ति की मृत्यु तक की सम्भावना काफी बढ़ जाती

 
( 2 ) मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाएँ ( Psychological Reactions ) तनाव के कारण व्यक्ति के मानसिक कार्यों में एक प्रकार का विघटन पाया जाता है। 

जिसे .. मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है

 1. संज्ञानात्मक विकृति ( Cognitive Impairment) – तनाव से व्यक्ति के संज्ञानात्मक कार्य (cognitive functioning) में एक तरह की असामान्यता आ जाती है। वह अपने चिन्तन को तार्किक रूप से संगठित नहीं कर पाता है। क्युकि चिंतन में चिंता की भूमिका बढ़ जाती है। 
तनाव से उत्पन्न संज्ञानात्मक विकृति के कारण व्यक्ति समस्या के समाधान के वैकल्पिक साधनों ( Alternative means) का प्रत्यक्षण नहीं कर पाता तथा अपने व्यवहार में दृढ़ता ( Rigidity ) दिखाता है।


 2. सांवेगिक अनुक्रियाएँ ( Emotional Reactions ) – तनाव की अवस्था में व्यक्ति तरह – तरह की सांवेगिक अनुक्रियाएँ विशेषकर ऋणात्मक सांवेगिक अनुक्रियाएँ (Negative emotional responses ) करता है।

 जो इस प्रकार है…. 

(i) चिन्ता ( Anxiety ) – जब व्यक्ति तनाव की अवस्था में होता है तो सबसे पहले चिन्ता ही सांवेगिक अनुक्रिया होती है , जो मुख्यतः दो प्रकार की होती है। 

  • सामान्य चिन्ता

  • स्नायुविकृत चिन्ता

सामान्य चिन्ता (Normal Anxiety) — यह चिन्ता व्यक्ति को तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थिति के साथ समायोजन करने में व्यक्ति की मदद करती है। 


स्नायुविकृत चिन्ता (Neurotic Anxiety) – इस प्रकार की चिन्ता में व्यक्ति तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थिति से इतना डर जाता है कि वह स्वयं को बेसहारा समझने लगता है और उसकी परिस्थिति से निबटने की क्षमता समाप्त हो जाती है ।

 (ii) क्रोध एवं आक्रामकता ( Anger and Aggression) – तनाव उत्पन्न करने वाले उद्दीपकों के प्रति पहले प्राणी में क्रोध उत्पन्न होता है और यदि ऐसा उद्दीपक प्राणी के सामने अधिक समय तक बने रहे तो वे उनके प्रति आक्रमकतापूर्ण व्यवहार भी करने लगता है।



 (iii) भावशून्यता तथा विषाद (Empathy and Depression) – जब व्यक्ति के सामने तनावपूर्ण परिस्थिति बनी रहती है और वह उससे निबटने में असहाय होता है। 
तो वह उस स्थिति के प्रति भावशून्यता या उदासीनता विकसित कर लेता है जो बाद में व्यक्ति में विषादी प्रवृत्ति ( Depressive tendency ) उत्पन्न कर देती है। 



तनाव को नियन्त्रित करने की तकनीकें व विधियाँ (Methods and Techniques to Control Stress in Hindi) 

व्यक्ति दिन – प्रतिदिन की जिन्दगी में होने वाले तनावों को दूर करने के लिए तरह – तरह के उपायों को अपनाता है । परन्तु ऐसे उपाय हमेशा कारगर साबित नहीं हो पाते। 
जिनके कई कारण हैं और इन कारणों में सबसे प्रमुख कारण
प्रतिबल या तनाव की गम्भीरता या उसकी नवीनता हैं।

ऐसी परिस्थितियों से निबटने के लिए स्वास्थ्य मनोवैज्ञानिकों ( Health Psychologists ) ने प्रतिबल प्रबन्धन ( Stress management ) की कुछ प्रविधियों ( Techniques ) पर बल दिया है । 


प्रतिबल प्रबन्धन का अर्थ ( Meaning of Stress Management in hindi) 


प्रतिबल प्रबन्धन से तात्पर्य एक ऐसे कार्यक्रम से होता है जिसमें लोगों को तनाव के स्रोत से अवगत कराते हुए उनसे निबटने के आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीकों के बारे में शिक्षा दी जाती है। इतना ही नहीं , ऐसे कार्यक्रम में तनाव को कम करने के कौशलों का भी अभ्यास करवाया जाता है।
जिनका उपयोग करके वह अपने तनाव को कम कर सकता है अर्थात् इस प्रविधि में व्यक्ति को कुछ विशेष व्यवहारात्मक कौशल ( Behavioural skills) stress management in Hindi को सिखाया जाता है । 

तनाव प्रबन्धन के कई तरीके हैं जिनमें मूलतः तीन अवस्थाएँ सम्मिलित होती हैं—

 1.  पहली अवस्था में तनाव प्रबन्धन में सम्मिलित होने वाले व्यक्ति यह सीखते हैं कि तनाव क्या होता है ?

2. दूसरी अवस्था में वे तनाव को दूर या कम करने के कौशलों को सीखते हैं तथा उनका इस कार्य में अभ्यास भी कराया जाता है ।

 3.  अन्तिम अवस्था में लक्षित तनावपूर्ण परिस्थितियों (Targeted Stressful Situations ) में वे तनाव प्रबन्धन प्रविधियों का अभ्यास करते हैं तथा उनकी प्रभावशीलता को मॉनीटर करते हैं



 बायोफीडबैक ( Biofeedback ) stress management in Hindi– सन् 1970 में तनाव को कम करने के लिए एक नयी प्रविधि विकसित हुई जिसे बायोफीडबैक ( Biofeedback ) कहा गया । यह एक ऐसी प्रविधि है जिसके माध्यम से तनाव के दैहिक पहलुओं ( Physiological aspects ) को मॉनीटर एवं नियन्त्रित किया जाता है । इसमें व्यक्ति को किसी विशेष आन्तरिक अंग के कार्यों के बारे में पुनर्निवेशन (Feedback) दिया जाता है। 
जो सामान्यतः व्यक्ति के चेतन नियन्त्रण से बाहर होता है और व्यक्ति को उसे पहचान के नियन्त्रित करना पड़ता है।

बायोफीडबैक का उपयोग न केवल सामान्य तनाव को कम करने में बल्कि उच्च रक्तचाप , चिरकालिक दर्द , माँसपेशीय संकुचन , सिरदर्द ( Muscles – contraction head aches ) आदि के उपचार में भी किया जाता है। 
परन्तु यह प्रविधि अधिक खर्चीली होने के कारण लोकप्रिय नहीं हो पायी।


तनाव विश्रान्ति या तनावमुक्ति प्रविधि (Stress Relaxation Techniques) 

कई तरह की विश्रान्ति या तनावमुक्ति प्रविधियाँ ( Relaxation techniques ) उपलब्ध हैं जिनसे व्यक्ति तनाव कम करने में सफलतापूर्वक सहयोग लेता है। 
जब व्यक्ति विश्रान्ति की अवस्था में होता है , तो व्यक्ति के शरीर में उत्तेजना ( Arousal ) कम होता है जिसका अर्थ है कि व्यक्ति तनाव के प्रति प्रतिक्रिया करने के प्रति कम उन्मुखता दिखाता है। विश्रान्ति प्रविधि में व्यक्ति अपने शरीर को निम्न उत्तेजना के सुखद अवस्था में ले जाना सीखता है तथा तनाव से साहचर्चित असामान्य तनाव की अवस्था को कम करना भी सीख लेता है । 

तनाव विश्रान्ति की निम्न प्रविधियाँ इस प्रकार हैं (Following are the techniques of stress relaxation)

 (a) गहरी साँस लेना ( Deep Breathing ) – यह विश्रान्ति प्रविधि का ही दूसरा प्रारूप है। इसे नियन्त्रित श्वसन ( Controlled breathing ) कहते हैं। चूँकि विश्रान्ति की अवस्था गहरे लम्बे श्वसन ( breaths ) से सम्बद्ध होती है , इसलिए इस श्वसन पैटर्न का उपयोग करके हम व्यक्ति में जान – बूझकर विश्रान्ति उत्पन्न कर सकते हैं।

 पहले व्यक्ति एक लम्बी गहरी • साँस लेता है जिसमें मुँह के माध्यम से व्यक्ति के फेफड़े में हवा भर जाती है। इस तरह से गहरी साँस जो कम से कम 10 सेकेण्ड तक का होता है, के बाद व्यक्ति फिर छोटी साँस लेता है। इस प्रक्रिया को बार – बार दोहराने से तनाव उत्पन्न दर्द काफी कम हो जाता है। 



 (b) प्रगतिशील विश्रान्ति (Projective Relaxation) — ऐवरली ( Everly , 1989 ) अनुसार , विश्रान्ति प्रविधि का प्रारूप जिसमें शरीर की विभिन्न माँसपेशियों को शिथिल करने का अभ्यास किया जाता है , प्रगतिशील विश्रान्ति ( Projective relaxation ) कहलाता है।
 यहाँ यह पूर्वकल्पना होती है stress management in Hindi कि तनाव का सम्बन्ध माँसपेशीय तनाव से होता है। अत : माँसपेशीय तनाव को कम करके भी तनाव व चिन्ता के भाव को कम किया जा सकता है।

 प्रगतिशील विश्रान्ति में व्यक्ति क्रमबद्ध रूप से शरीर के कुछ माँसपेशियों को विशेषकर शरीर के निचले हिस्से की माँसपेशियों से प्रारम्भ होकर चेहरे की माँसपेशियों ( Facial muscles ) को शिथिल ( Relax ) तब तक करता है , जब तक कि पूर्ण शरीर विश्रान्ति की अवस्था में न आ जाये । इस क्रिया का सतत अभ्यास करने से व्यक्ति में शान्ति का भाव उत्पन्न होता है तथा फिर वह एक कम तनावपूर्ण मनोवृत्ति विकसित कर लेता है।



 (c) ध्यान ( Meditation ) – मनन ( Meditation ) एक तरीका है जिसके माध्यम को चेतना की अवस्था में परिवर्तन लाया जाता है । जिसमें व्यक्ति का बाह्य वातावरण से सम्पर्क

तथा उसके प्रति अचेतन में कमी आ जाती है । ऑर्नस्टीन ( Ornstein , 1972 ) के ” मनन चेतना के सक्रिय प्रारूप से अपने आप को मोड़ लेने तथा दैनिक जिन्दगी के प्रवाह मे थोड़े समय के लिए अपने आप को जान – बूझकर अलग करने की प्रक्रिया है ताकि शान्ति । ग्रहणशीलता के समकालीन प्रारूप में प्रवेश किया जा सके।

ध्यान में चेतना की जो परिवर्तित अवस्था की प्राप्ति होती है, वह कुछ विशेष अभ्यास नियन्त्रित एवं नियमित करने की कोशिश करता है। अपने ध्यान को किसी बिन्दु पर केन्द्रित तथा धर्मविधि ( Rituals ) के माध्यम से प्राप्त की जाती है। इसमें व्यक्ति अपनी साँस को करने का प्रयास करता है  बाह्य उद्दीपकों पर से ध्यान हटा लेता है।

मन में किसी विशेष प्रतीक या घटना की प्रतिमा रखता है तथा विशेष यौगिक मुद्रा में शरीर को लगभग 15 मिनट तक रखता है जिससे व्यक्ति में एक रहस्यात्मक अवस्था उत्पन्न हो जाती है जिसमें व्यक्ति अत्यधिक शिथिलन ( Relaxed) का अनुभव करता है तथा वह बाह्य वातावरण से अपने आप को अलग कर पाता है ।
व्यक्ति एक परिवर्तित चेतना (Altered consiousness) का अनुभव करता है।


 ध्यान की दो सामान्य प्रविधियाँ (techniques ) हैं stress management in Hindi

1. खुला मनन ( Opening – up Meditation )

 2. एकाग्रचित मनन ( Concentrative Meditation) 

  3. अन्तर्ज्ञान मनन ( Transcendental Meditation) 



1. खुला मनन ( Opening – up Meditation ) – इसमें व्यक्ति नयी अनुभूतियों को प्राप्त करने के लिए अपने मस्तिष्क को उत्तेजित करने की कोशिश करता है । 

2. एकाग्रचित मनन ( Concentrative Meditation ) – इसमें व्यक्ति किसी वस्तु , विचार या शब्द पर ध्यान केन्द्रित करके अपनी चेतना को परिवर्तित करने की कोशिश करता।


 मनन की कई विधियाँ ( Metods ) हैं, जिसमें से कुछ प्रमुख हैं।  stress management in Hindi

 (a) योग ( Yoga ) – योग , मनन की ऐसी विधि है जो दैहिक मुद्राओं तथा श्वसन अभ्यासों पर आधारित होता है । योग से तात्पर्य विश्वास तथा अभ्यास के ऐसे तन्त्र हैं जिनका लक्षण वैयक्तिक आत्मन ( Individual self ) का सार्वजनिक आत्मन ( Universal self ) के साथ संयुक्ति की प्राप्ति है। 

योग के कई प्रकार हैं और उन सभी प्रकारों में इस संयुक्ति (Union) के लक्षण पर पहुँचने की अपनी – अपनी अलग – अलग प्रक्रियाएँ (Processes)  हैं।
 मनन में योग का एक प्रकार जिसे राजयोग (Raja Yoga) कहा जाता है।
 का उपयोग अधिक किया जाता है। जिसमें आठ तरह की विभिन्न प्रक्रियाएँ।


जैसे — आत्म – नियन्त्रण , विशेष दैहिक मुद्रा बनाना , श्वसन गति को नियन्त्रित व नियमित करना, किसी वस्तु व घटना पर ध्यान केन्द्रित करना, अपनी एकाग्रता को किसी आत्म – विस्मृति की अवस्था में पूर्णतः विलयन करना आदि सम्मिलित हैं ।


(i) रुचि ( Hobby ) – stress management in Hindi जब व्यक्ति किसी कारणवश ( शारीरिक या मानसिक तनाव का अनुभव करता है तो इस तनाव को कम करने के लिए उस कार्य की ओर उन्मुख हो जाता है जो उसे आराम या सुख देते हैं अर्थात् उन कार्यों को करने लगता है जिसमें उसकी रुचि होती है।

 जैसे — संगीत सुनना , फिल्म देखना , खेल – खेलना आदि। अपने मनपसन्द कार्यों को करके व्यक्ति अपने आपको तनाव की परिस्थिति से दूर करने का प्रयास करता है परन्तु यह प्रविधि बहुत लाभकारी नहीं होती अर्थात् चिरकालिक नहीं होती है इसमें मानव कुछ समय के लिए ही तनाव से मुक्ति पाता है। जब पूर्णतः समस्या का समाधान हो जाता है तभी तनाव की भी पूर्णतः समाप्ति होती है।



(ii)  स्व – सुझाव (Self – suggestion) stress management in Hindi —– तनाव को कम करने के लिए अनेक प्रविधियों के उपयोग करने के साथ – साथ अनेक प्रमुख बातों का भी ध्यान रखा जाये तो बहुत हद तक तनाव को दूर किया जा सकता है—

 1. पौष्टिक भोजन करें तथा समय पर करें। 


2. समय पर नियमित व्यायाम आयु के अनुसार करें।


 3. कार्यों का विभाजन उचित प्रकार से करें।   


  4. कार्यों को करने के लिए समय प्रबन्धन पर ध्यान दें।


 5. आस – पास के लोगों व वातावरण के साथ उचित सामंजस्य बनाये रखें।

 6. तनाव की परिस्थिति से दूर हटने के लिए अपने मनपसन्द कार्यों को प्राथमिकता दें।   


 7. बच्चों को असन्तोषजनक परिस्थितियों का सामना करने और उनसे उपयुक्त समायोजन करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। 

 8. बालकों को समूह के सदस्यों के रूप में विभिन्न परिस्थितियों का सामना करने के अवसर दिये जाने चाहिए।

  9. बच्चों के पाठ्यक्रम में तनावमुक्ति व तनाव प्रबन्धन से सम्बन्धित उचित पाठ्य सामग्री को स्थान दिया जाना चाहिए।

 10. तनाव प्रबन्धन की विभिन्न प्रविधियों के उपयोग से सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी दी जानी चाहिए अर्थात् तकनीकों के अनुचित उपयोग से होने वाली हानियों के विषय में भी बताया जाना चाहिए।


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