आधुनिक शिक्षा का परिभाषा
विद्या वह है जो मनुष्य को अज्ञान से मुक्त कराती है, उसे अन्धकार से निकालकर प्रकाश दिखाती है। वह मनुष्य के नेत्रों के सम्मुख छाई धुन्ध को साफ कर उन्हें जीवन को उसके सम्पूर्ण रूप में देखने की प्रेरणा देती है। जो विद्या ऐसा नहीं करती, वह वास्तविक अर्थों में विद्या नहीं।
Aadhunik siksha par nibandh
आधुनिक शिक्षा प्रणाली की प्रमुख विशेषता क्या है? यदि इस वाक्य का उतर जानना है तो सबसे पहले हमे आधुनिक शिक्षा को समझना पड़ेगा।
शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार की विद्या का अध्ययन कर उन दुर्गुणों से मुक्ति पाना है जो जीवन को अन्धकारमय बनाये हुए हैं। अब हमें यह देखना है कि आधुनिक शिक्षा प्राचीन ऋषियों के इन आदर्शों को प्राप्त करवाने में कहाँ तक सहायक सिद्ध हुई है। कौन नहीं जानता कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमारे देश के लिए घातक सिद्ध हुई है? इसका उद्देश्य है, पेट भरने के लिए क्लर्क, वकील एवं डॉक्टर आदि उत्पन्न करना।
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भारत में आधुनिक शिक्षा कौन लाया?
लार्ड मैकाले ने भारतवासियों को ईसाई मजहब के साँचे में ढालने के लिए और दफ्तरों में अंग्रेजी पढ़े लिखे क्लर्क पैदा करने के लिए इस शिक्षा को प्रचलित किया था। तब से लेकर आज तक शिक्षा का वही उद्देश्य बराबर चला आ रहा है। आज की शिक्षा हममें इन गुणों का समावेश नहीं करती जो शिक्षा का लक्ष्य है। जो शिक्षा केवल एक निम्न कोटि के आधार पर आरम्भ की गयी हो, उससे देश के उद्धार की आशा करना निराशा मात्र है।
आज के नवयुवक अपना बहुमूल्य समय देकर तथा अपने माता – पिता की गाढ़ी कमाई का हजारों रुपया व्यय करके जिस शिक्षा को प्राप्त करते हैं, वह उनके जीवन में किस काम आती है? वर्तमान शिक्षा की यह अधोगति देखकर ही महात्मा गाँधी ने वर्धा शिक्षा योजना का सूत्रपात किया। श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर भी आधुनिक शिक्षा पद्धति के घोर विरोधी थे। उन्होंने शान्ति निकेतन की प्रतिष्ठा करके शिक्षा सम्बन्धी अपनी मान्यताओं को मूर्त रूप प्रदान किया।
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा है और वह भाषा इतनी अवैज्ञानिक है कि उसके सीखने में पर्याप्त समय लग जाता है। फिर भी उससे अपने देशवासियों को कुछ भी लाभ नहीं होता। शिक्षा समाप्ति पर युवकों को किसी कार्यालय में कार्य करने के अतिरिक्त अपनी जीविका के लिए कोई अन्य मार्ग नहीं दीखता।
कार्यालय में थोड़े वेतन से कार्य न चलता देखकर हमारे नवयुवक घूँस तथा चोरी की शरण लेते हैं। आधुनिक शिक्षा में लड़के – लड़कियों के स्वास्थ्य की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया जाता। परीक्षाओं को सबसे अधिक महत्त्व दिया जाता है जिसका परिणाम यह होता है कि विद्यार्थी रात दिन पुस्तकें रटते हैं और परीक्षा में उत्तीर्ण होकर अपने जीवन को सफल समझते हैं।
जयप्रकाश जी के शब्दों में देश का राजनैतिक चेहरा तो बदल गया परन्तु छात्र समस्या वैसी ही है। वर्तमान शिक्षा में विद्यार्थियों के चरित्र विकास के लिए कोई स्थान नहीं है विकास होना तो दूर रहा , उल्टे उसमें चरित्रहीनता आ जाती है। लड़के और लड़कियाँ फैशन के गुलाम होते जा रहे हैं। बीड़ी, सिगरेट, चाय एवं पान आदि का सेवन करने में गर्व समझते हैं।
विद्यार्थियों में धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा का कोई प्राविधान नहीं रखा जाता। आजकल विश्वविद्यालयों के स्नातक अपनी शिक्षा को समाप्त कर लेने के उपरान्त अपने को समाज के अयोग्य और स्वयं के जीवन को असफल पाते हैं। वर्तमान शिक्षा से वे ही लोग लाभ उठा सकते हैं जो अमीर हैं। प्रायः देखा जाता है कि बच्चे की पढ़ाई में सैकड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं।
आधुनिक शिक्षा इसलिए भी आदर्शरहित है कि उसका उद्देश्य केवल उदर पूर्ति करना है। मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में- “अब नौकरी के लिए विद्या पढ़ी जाती यहाँ” वर्तमान शिक्षा ही ऐसी है कि इससे नागरिकता के भावों का विकास नहीं होता है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत क्रियात्मक शिक्षा को पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिलता, इसलिए देश में कृषि तथा अन्य उद्योगों की दयनीय दशा है।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली
आधुनिक शिक्षा पर निबंध
Aadhunik siksha par nibandh
वर्तमान शिक्षा प्रणाली के जहाँ हमने अवगुणों को देखा , वहाँ अब हमें देखना है कि इस आधुनिक शिक्षा में गुणों का कहाँ तक समावेश है? वर्तमान शिक्षा प्रणाली में एक बहुत बड़ा गुण यह है कि इससे बालक – बालिकाओं में देश – प्रेम जाग्रत हुआ है। पाश्चात्य साहित्य ने स्वतन्त्रता के प्रति एक नया भाव उत्पन्न कर दिया है ।
वर्तमान शिक्षा पद्धति ने ही हमारे देश में महात्मा गाँधी, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, पण्डित गोविन्दबल्लभ पन्त, श्री लालबहादुर शास्त्री आदि उच्चकोटि के देशभक्त पैदा किये जिन पर हमें देश को गर्व है। प्रचलित शिक्षा – प्रणाली की दूसरी विशेषता यह है कि इसके पढ़ने से मानसिक विकास में अच्छी सहायता मिलती है। हर एक कक्षा के विद्यार्थियों को अनेक विषयों की अनिवार्य शिक्षा दी जाती है।
विविध विषयों को दिन रात पढ़ते रहने से छात्रों का ज्ञान – कोष खूब बढ़ जाता है तथा इस प्रकार उनका बौद्धिक स्तर अधिक उन्नत हो जाता है। Aadhunik siksha par nibandh हमें ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो हमें मानसिक दासता से मुक्ति दे सके। हम मातृ – भाषा में ही शिक्षा दिये जाने के पक्ष में हैं। शिक्षा का सर्वसाधारण तक प्रसार होना चाहिए तथा शिक्षितों व अशिक्षितों के बीच की खाई भी पट जानी चाहिये।
हमारी शिक्षा इतनी सस्ती होगी कि प्रत्येक नवयुवक को उच्च शिक्षा सरलता से सुलभ हो। पाश्चात्य साहित्य की शिक्षा के साथ – साथ भारतीय साहित्य पर विशेष बल दिया जाये। शिक्षा क्षेत्र कभी भी सीमित न हो। परीक्षा लेने की वर्तमान प्रणाली का बहिष्कार हो। अस्तु: जब तक हमारी शिक्षा का स्वरूप परिवर्तित नहीं होता है तब तक हम शिक्षा के वास्तविक महत्त्व से परिचित नहीं हो सकते और न ही देश का कभी कल्याण कर सकते हैं।
आज भारत स्वतन्त्र है। देश के विकास के लिए आज की इस दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के स्थान पर एक नवीन शिक्षा पद्धति को अपनाना हितकर होगा। हम आशा करते हैं कि हमारी राष्ट्रीय सरकार हर सम्भव उपायों द्वारा शिक्षा की वर्तमान प्रणाली के स्थान पर एक सर्वमान्य शिक्षा प्रणाली का सूत्रपात करेगी।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने सन् 1937 से बेसिक शिक्षा का श्रीगणेश किया। लेकिन यह योजना व्यवहार जगत की न होकर भावना लोक तक सीमित रह गई। भारत सरकार ने सन् 1952 में ‘मुदालियर माध्यमिक आयोग’ का गठन किया। लेकिन इसकी संस्तुतियों (सिफारिशों) को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया।
प्राइमरी एवं माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा तक तो कुछ सन्तोष किया जा सकता है लेकिन जहाँ तक विश्वविद्यालयों की शिक्षा का प्रश्न है वह थोथी सिद्ध हो रही है। विश्वविद्यालय की शिक्षा में सुधार हेतु में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई है लेकिन इसके कोई प्रभावकारी परिणाम नहीं हैं।
हमारे देश में शिक्षा पर केवल बजट का चार प्रतिशत ही खर्च किया है जोकि बहुत कम है। यह परमावश्यक है कि अपने देश में राष्ट्रीय शिक्षा – पद्धति का गठन तथा आयोजन करें। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो कि मानव के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करने में समर्थ हो। वही शिक्षा उत्तम तथा श्रेष्ठ ठहराई जायेगी जो मानव को कर्त्तव्यनिष्ठ, न्यायप्रिय, परिश्रमी, बुद्धिमान एवं उत्तम नागरिक बनने में सहायक हो।
निष्कर्ष
आज हम सब ये Aadhunik siksha par nibandh एवं आधुनिक शिक्षा का परिभाषा क्या है और उससे कितना लाभ, हानी है यदि मानव को अपने जीवन को उन्नत, सरस तथा मधुर बनाना है तो शिक्षा के सुधार का उत्तरदायित्व अपने कन्धों पर सम्हालना होगा। तभी भारत की फूलबगिया में कोयलें निम्न तराना गायेंगी