विधालय में वार्षिकोत्सव की तैयारियां
हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव प्रतिवर्ष फरवरी मास में बड़ी सजधज तथा धूम – धाम के साथ मनाया जाता है। गत वर्ष का वार्षिकोत्सद हमारे विद्यालय का 77 वाँ वार्षिकोत्सव था। वार्षिकोत्सव के अवसर पर मैं 9 वीं कक्षा का विद्यार्थी था। विद्यालय की प्रबन्धकारिणी सभा ने एक संयोजक समिति का निर्माण किया, जिसने वार्षिकोत्सव का कार्यक्रम 15, 16 और 17 को निर्धारित किया।
लगभग 20-25 दिन पहले घोषित कर दिया गया कि प्रतियोगिता में भाग लेने वाले छात्र प्रतियोगिता के लिए तैयारियाँ करें। अब क्या था! कोई कबड्डी खेल रहा था, तो कोई लम्बी कूद में व्यस्त था। कहीं छात्र – विवाद प्रतियोगिता के लिए भरसक प्रयत्न कर रहे थे तो कंहीं कविता – कानन में रमण करने के लिए छात्रों का जी लालायित हो रहा था। इस प्रकार सभी अपने – अपने कार्य में व्यस्त थे।
चारों ओर प्रतियोगिता की गूँज व्याप्त थी। एक ओर प्रतियोगिताओं की गूँज कानों में आती थी, दूसरी ओर विद्यालय के कौने – कौने की सफाई हो रही थी। Essay On School Annual Day Function In Hindi में हमारे कॉलेज के कुछ विद्यार्थी इसमें अधिक आनन्द ले रहे थे। वह कॉलेज के प्रत्येक कमरे को स्वच्छ कर रहे थे, कहीं दीवारों पर सिद्धान्त वाक्य लिखे जा रहे थे।
जिस प्रकार दीपावली आने से पूर्व नगर के सभी घर स्वच्छ किये जाते हैं तथा भाँति – भाँति के चित्र चित्रित कर उन्हें और भी सुन्दर रूप प्रदान कर दिया जाता है, उसी प्रकार हमारे कॉलेज का प्रत्येक कमरा स्वच्छ किया गया, उसकी दीवारों पर सुन्दर – सुन्दर अक्षरों में अनेक प्रकार के सिद्धान्त वाक्य विद्यार्थियों को आदर्श सिखलाने के लिए लिखे गये थे। कतिपय अध्यापक भी इस कार्य में अपना योग प्रदान कर रहे थे।
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पहले दिन खेल-कूद की प्रतियोगिताएं
वार्षिकोत्सव के प्रथम दिन 15 फरवरी को सभी छात्र कॉलेज की पोशाक खाकी नेकर और नीली कमीज पहन कर लगभग 8 बजे बड़ी प्रसन्नता के साथ विद्यालय के क्रीड़ा स्थल पर पहुँचे। हमारे कॉलेज के प्रधानाचार्य और अन्य अध्यापक भी वहाँ पहुँच गये। साढ़े आठ बजे सबसे पहले 100 मीटर 400 मीटर तथा 1 मील की दौड़ , लम्बी कूद तथा ऊँची कूद क्रमशः प्रारम्भ हुई। इसके बाद बॉलीबॉल , फुटबॉल, कबड्डी , हॉकी आदि के मैच प्रारम्भ हुए।
दूसरी ओर छोटी कक्षाओं के विद्यार्थियों की अमरूद दौड़ , चम्मच की दौड़, कुर्सी की दौड़ , तीन टाँग की दौड़ , आँख पर पट्टी बाँधकर दौड़ें हो रही थीं। अपने साथी के जीतने पर छात्र बड़ी प्रसन्नता के साथ तालियाँ बजा रहे थे – मानों इस प्रकार उसे प्रोत्साहित कर रहे थे। इसके बाद सभी विद्यार्थी बड़ी खुशी के साथ अपने – अपने घर गये। तीन बजे वे फिर उसी स्थान पर इकट्ठे हो गये। जब कुश्तियाँ आरम्भ हुईं। कुश्तियों को सभी विद्यार्थी और नगरवासी बड़ी उत्सुकता से देख रहे।
इसके बाद साइकिल दौड़ , रस्साकसी , रुकावट की दौड़ , गोला फेंकना आदि खेल हुए। इनमें से सबको रस्साकसी में अधिक आनन्द आया। रस्सा तीन बार खींचा गया। एक टीम में मैं भी था। अन्त में हमारी टीम की विजय हुई और हमारी टीम के खिलाड़ियों के नाम लिख लिये गये। अन्य खेलों में जो छात्र प्रथम और द्वितीय थे उनके भी नाम लिखे गये । इस प्रकार आज का कार्यक्रम समाप्त हुआ। सभी खुशी – खुशी अपने घर लौटे।
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दूसरे दिन वाद विवाद, निबंध और कविता सम्बंधी विधालय में वार्षिकोत्सव पर निबंध प्रतियोगिताएं
वार्षिकोत्सव के दूसरे दिन 16 फरवरी का कार्यक्रम बड़ा ही महत्त्वपूर्ण और आकर्षक था। प्रातःकाल साढ़े आठ बजे वाद – विवाद प्रतियोगिता हुई। विषय था- देश की उन्नति कृषि की अपेक्षा विज्ञान से हो सकती है। इसमें दोनों पक्षों के विद्यार्थियों ने बड़ी ही उमंग के साथ भाग लिया। अपने भाषणों में उन्होंने बड़े ही तर्कपूर्ण ढंग से अपने – अपने पक्ष का समर्थन किया। श्रोतागण मन्त्र – मुग्ध होकर विद्यार्थियों के भाषणों को सुन रहे थे। युवा छात्र उमंग तथा उत्साह से पूरित होकर बड़ी रोचक तथा सरल शैली में अपने विषय का प्रतिपादन कर रहे थे।
अन्त में निर्णायक महोदयों की ओर से दो कुशल वक्ताओं को प्रथम और द्वितीय पुरस्कार घोषित किये गये। ये दो कुशल वक्ता थे रजनीकान्त तथा रमेशचन्द्र। इसके पश्चात् कॉलेज प्रधानाचार्य के आदेशानुसार हम दोपहर बाद तीन बजे निबन्ध और कविता सम्बन्धी प्रतियोगिता के लिए उपस्थित हुए . निबन्ध का विषय था- ” स्वदेश – प्रेम “। इस विषय पर विद्यार्थियों ने लेख लिखे थे तथा योग्य विद्यार्थियों ने पुरस्कार प्राप्त किये। इसके पश्चात् कवि सम्मेलन आरम्भ हुआ।
पं ० हरिशंकर शर्मा कविरत्न इस आयोजन के सभापति थे। अनेक कविगण भी पधारे थे जिन्होंने कविता पाठ से सभा को रस में डुबो – सा दिया था। अन्त में लगभग 7 बजे सभी लोग कवियों की कविताओं की चर्चा करते हुए अपने घर लौटे।
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तीसरे दिन प्रधानाध्यापक द्वारा विद्यालय की रिपोर्ट सुनना, पुरस्कार वितरण, सभापति का भाषण, नाटक आदि का प्रदर्शन।
दार्षिकोत्सव का अन्तिम कार्यक्रम 17 फरवरी को सम्पन्न हुआ। उस दिन सभी विद्यार्थियों में अपूर्व उल्लास भरा था। वे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे , क्योंकि वह पुरस्कार वितरण का दिन था। आज के दिन कॉलेज को भली प्रकार से सजाया गया था। विज्ञान , कला और भूगोल के भवनों में विशेष प्रकार की सजावट की गयी थी। अनेक स्थानों पर तिरंगे झण्डे पवन में लहरा रहे थे। मंच के ऊपर आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द जी का विशाल तैल चित्र सुशोभित था।
उत्सव 4 बजे होने वाला था। विद्यार्थी तो तीन बजे ही आ गये थे। 3½ बजे से आमन्त्रित व्यक्ति आने लगे थे। उनको यथास्थान बैठाने के लिए बालचर नियुक्त थे। एक कमरे में साइकिल स्टेण्ड था । सभापति , श्री आचार्य की कार 3-55 पर आयी। उनको द्वार पर एन ० सी ० सी ० के विद्यार्थियों ने गार्ड ऑफ आनर दिया। पुष्पमाला से सभापति जी को सुशोभित करने के बाद पाँच लड़कों द्वारा राष्ट्रीय गान ‘ से आज का कार्यक्रम आरम्भ किया।
प्रारम्भ में विद्यार्थियों ने कुछ हिन्दी तथा अंग्रेजी की कविताओं का मधुर स्वर से गायन किया। दो – एक हिन्दी – अंग्रेजी में व्याख्यान हुए। सबसे प्रमुख विद्यार्थियों द्वारा आयोजित एक एकांकी नाटक था जिसका विषय था- भारत की मूल समस्याएँ। ‘ हमारे यहाँ की यह विशेषता रहती है कि हर वर्ष अपने यहाँ लिखा नाटक ही खेला जाता है। इन सबको देखकर सभापति जी बड़े प्रसन्न हुए। तदन्तर हमारे कॉलेज के प्रबन्धक ने वार्षिक रिपोर्ट पढ़कर सुनाई । इसमें कॉलेज की पढ़ाई में प्रगति एवं वर्ष भर के आय – व्यय तथा परीक्षाफल का विवरण था।
कॉलेज में वैदिक धर्म का भी विद्यार्थियों को ज्ञान कराया जाता है – यह भी उन्होंने बताया। – तत्पश्चात् पारितोषिक – वितरण का कार्य आरम्भ हुआ । प्रतियोगिताओं के विजेताओं के अतिरिक्त उन छात्रों को भी पुरस्कार दिया गया, जो पिछली कक्षाओं में प्रथम रहे थे। उसके पश्चात् सभापति जी ने विज्ञान, कला और भूगोल के भवनों का भली प्रकार से अवलोकन किया। इस प्रकार आज के कार्यक्रम समाप्त होने पर मिष्ठान्न प्राप्त कर सभी विद्यार्थी खुशी – खुशी अपने घर पहुँचे।
उपसंहार
इस प्रकार हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। वास्तव में इस प्रकार के उत्सव बड़े ही उपयोगी हैं । इनसे विद्यार्थियों में नवजीवन का संचार होता है। पुरस्कार पाये हुए विद्यार्थियों को अपने कार्य में विशेष उत्साह मिलता है। यही कारण है कि प्रत्येक विद्यालय में इसी प्रकार के वार्षिकोत्सव मनाये जाते हैं। वार्षिकोत्सव विद्यालयों की प्रगति के मानदण्ड हैं। छात्रों के उत्साह के साधन हैं, प्रसन्नता तथा उमंग के स्रोत हैं