हैल्लो दोस्तों आज के आर्टिकल में हम सब जानेंगे की “स्वतंत्र भारत में नारी का स्थान” क्या है? और औरत पर निबंध कैसे लिखा जाता है? woman essay (essay on the place of women in independent india in hindi) यदि हम प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता पर विहंगम दृष्टिपात करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि हमारे समाज में दावों से ही उच्च स्थान प्रदान किया गया है।
हमारे देश में नारी केवल मात्र विलास का साधन ही नहीं अपितु ने समय-समय पर अपने अद्भुत पराक्रम से विश्व को आश्चर्य में डाल दिया है। उन्होंने सामाजिक एवं राजनीति के क्षेत्र में भी पुरुषों के कन्धे से कन्धा मिलाकर पदस्थापित किया है। ऐसा है भारतीय नारी का स्वरूप एवं अपने इस संदर्भ को अक्षरुण बनाए रखने के लिए भारतीय नारी आज भी कटिबद्ध है।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने एक स्थान पर अपनी काव्य में भारतीय नारी को अबला देशोक्ति कहा है। परन्तु जहाँ एक ओर हमारे कवियों ने नारी को अबला देशावासी सम्बोधित किया है, वहाँ दूसरी तरफ नारियों की अद्भुत वीरता का वर्णन करके उनके ‘अबला’ पर्याय को मिथ्या सिद्ध कर दिया है ” बहुत सी मर्दानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी। ” वीरता ही नहीं भारतीय आध्यात्मिकता की नज़र – जगाती प्रतिमा है।
ईश्वराधना एवं करार उनकी अपूर्व भक्ति भावना के परिचायक रहे हैं एवं इसमें शामिल ईश्वर भक्ति के प्रति एकनिष्ठता के लक्षण भी दृष्टिगोचर होते हैं – “मेरे तो गिरधर गोपाल, कोई। ” दूसरा न भारतवर्ष सीता, सावित्री, गार्गी तथा लक्ष्मीबाई जैसे आदर्श मारियों का देश है। भारत ने समय – समय पर कई नारी रत्नों को जन्म दिया है।
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भारतीय नारी ने अपना त्याग, तपस्या बलिदान एवं आत्म-त्याग द्वारा जो गौरवमय नौकरशाही स्थापित है, वह निश्चय ही महान है। जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। यही महान वाक्य प्राचीन काल से लेकर आज तक नारी का महत्व निर्धारित करता है। नारी ने पुरुष को बहिन और पत्नी के रूप में जो प्रेम प्रदान किया है वही उसके जीवन की प्रेरणा है। अँग्रेजी लेखक का कथन सत्य है कि जो हाथ पालना झुलाता है, वही संसार पर शासन करता है। अति प्राचीन काल में नारी को पुरुष के समकक्ष स्थान प्राप्त हुआ था। वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के बराबर था, यज्ञों में पुरुषों के साथ खड़ा वेदमन्त्रों का पाठ करता था।
भगवान राम को भी यज्ञ के समय सीता की स्वर्ण प्रतिमा बनी रहना चाहिए थी। राजा दशरथ के साथ कैकेयी स्वयं युद्ध के मैदान में जाती थी। शंकराचार्य और मण्डन मिश्र के शास्त्रार्थ का निर्णय मण्डन मिश्र की पत्नी ने ही किया था। पौराणिक काल में गार्गी ने धर्म और दर्शन पर याज्ञवल्क्य से महत्वपूर्ण शास्त्रार्थ किया था। उस समय नारी को अपने पति का अधिकार प्राप्त था। इसलिए यह स्पष्ट हो जाता है कि नारी उस समय अपने भविष्य का निर्माण करने की पूर्ण क्षमता रखती थी।
ध्यान के आना – नारी का सम्मान और आदर्श बनना क्षीण होना। विशेष रूप से मुस्लिम युग में भारतीय नारी का अधिकार दयनीय और शोचनीय हो गया उसे पर्दे के पीछे घर की चारदीवारी में बंद कर दिया गया, उसकी स्वतन्त्रता का अपहरण कर लिया गया। उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा नष्ट कर दी गई। उसे शिक्षा के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया। समाज में उसकी कोई अहमियत ही नहीं रह गई। वह केवल भोग विलास का ही साधन रह गया, वह सब प्रकार से पुरुष की दासी बन गया।
पति की मृत्यु हो जाने पर उसे बलपूर्वक सती कर दिया गया। इस प्रकार मध्य काल नारी के पतन का युग था। तुलसीदास जी ने भी – “धोल, गँवार, शूद्र पशु नारी ये सब ताड़न के अधिकारी देश नागरी के प्रति कोई विशेष महत्वपूर्ण सहानुभूति नहीं दिखाई देती। इसके विपरीत वे नारी के प्रति रोष प्रकट हुए। अंग्रेजी कवि शेखों ने ‘दुर्बलता को ही नारी कहा है। और नीत्शे ने “नारी को ईश्वर की दूसरी गलती बताई है। “कबीर ने भी नारी की बड़ी भर्त्सना की है,” नारी की झाँई परत अन्ध होत भुजंग । “इस जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नारी का अपमान किया गया और वह देवी के पवित्र आसन से हटकर केवल दासी बन गई।
भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति पर निबंध current status of women in india essay in hindi , woman essay
आधुनिक काल में सभ्यता के विकास के साथ नारी के जीवन में एक नई शुरुआत आई। पाश्चात्य सभ्यता के संपर्क में आने वाले भारतीय नेताओं ने नारी की स्थिति सुधारने के लिए प्रयास किया। सती की प्रथा का अंत हो गया। पर्दा प्रथा का विरोध हुआ। महिला – पुरुष की आवश्यकता के अनुभव की शुरुआत होने लगी और देश में महिला के जागरण का सूत्रपात हुआ। गाँधी के नेतृत्व में राक्षसों ने स्वतन्त्रता संग्राम में पूरा-पूरा सहयोग दिया, पुरुषों के समान कारावास में उन्होंने भी दुःख उठाये।
पुलिस की लाठियाँ और गोलियाँ बे । भारतीय स्वतन्त्रता के देशों का माहौल आज भी पूरी तरह से परिवर्तित हो गया है। आज वह समय आ गया है कि हम नारी को उसका उचित अधिकार प्रदान करें। स्त्रियाँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अवसर दिए जाने पर कार्य करने में अधिक से अधिक कुशल हैं या पुरुष। विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में नारियाँ पुरुषों से आगे निकल गई हैं। श्रीमती इंदिरा गांधी , श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित , सुचेता कृपलानी , अरुणा आसफाली आदि इस युग की महिला – रत्न हैं , उनकी योग्यता पर देश को गौरव और अभिमान है।
स्वतन्त्र भारत के संविधान में नारी को पुरुष के समान स्थान दिया गया। आधुनिक युग की नारी का उत्कर्ष युग है। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्रों में भी नारी की स्थिति को सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं। हिन्दू संहिता बिल और अन्य समानता कानूनों को नारी के आर्थिक स्तरों द्वारा ऊंचा किया जा रहा है। नए कानून के अनुसार नारी को विशेष अवस्थाओं में उसके पति को त्यागने का अधिकार प्राप्त हो गया है और उसे अपने पिता के अधिकार में भाग लेने का अधिकार दिया जा रहा है।
छोटी उम्र में विवाह निरन्तर कम होते जा रहे हैं। विधवा विवाह का प्रचार भी बढ़ रहा है। यहाँ पर ध्यान देना आवश्यक है कि गाँवों में जो नारी की दुर्दशा है उसे सुधारने की दिशा में हम ध्यान दें। ग्रामीण नारी के उत्थान के बिना संपूर्ण नारी जागरण अधूरा ही । आधुनिक नारी को अपनी उन्नति और विकास पर ध्यान देना है, वहाँ उसे यह भी ध्यान रखना होगा कि वह भारतीय नारी है। त्याग और तपस्या की पृष्ठभूमि है। उसका पाश्चात्य रंग में रंग जाना भारतीय बैंकर के खिलाफ है, तभी भारतीय नारी आधुनिक आदर्श गृहिणी के उच्च पद पर आसीन हो जोर देते हैं।
आज भारत स्वतन्त्र है तथा स्वतन्त्र भारत में स्त्री शिक्षा के लिए बड़े-बड़े विद्यालयों का आयोजन किया जा रहा है। उनके पाठ्यक्रम में गृह विज्ञान ,शरीर – विज्ञान एवं गृह – परिचर्या आदि विषयों को स्थान दिया जा रहा है। वे घर की चारदीवारी से निकलकर समाज सेवा के क्षेत्रों में अटके हुए हैं। स्वतन्त्रता संग्राम में भी पुरुषों के साथ वे शानदार भूमिका निर्वाह की है। महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की निम्नलिखित पद के लिए उनके स्तन में दुग्ध अनिवार्य है लेकिन आंखों में जल के स्थान पर धीरता, वीरता एवं के शोले भडक रहे हैं “” अबला जीवन है!
निष्कर्ष
निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि (essay on the place of women in independent india in hindi) स्वतन्त्र राष्ट्र भारत की स्त्रियाँ अपने मन – मानस में नया उमंग, चेतन नया और नए जागरण के सपने संजोये हुए हैं। वह दिन अब दूर नहीं है, जब वे जन-जीवन के हर क्षेत्र में जारी करेंगे और नारी के प्रति श्रद्धा के रूप में उसकी ध्वनि हृदय से फूटती रहेगी “नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नाग पग तल में। पीयूष स्रोत सी बहा करो , जीवन के सुन्दर फ्लैट में।