ऋषि का आविर्भाव
जादू सा क्या चला दिया, अमृत सा क्या पिला दिया।
धन्य है दयानन्द, तूने हमें जगा दिया।
भारतवर्ष में प्राचीन वैदिक धर्म का हास हो चला था। उसमें अनेक आडम्बरों का समावेश हो गया था। जनता पर ईसाई धर्म का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। विदेशी सभ्यता के सम्पर्क में आकर भारतीय नवयुवक अपनी संस्कृति से बहुत दूर होते चले जा रहे थे। ऐसे समय में भारत के नेताओं ने
हिन्दू धर्म में सुधार करने का भरसक प्रयत्न किया। maharshi dayanand saraswati in hindi राजा राममोहन राय और महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने ब्रह्म समाज की स्थापना की। परन्तु महर्षि दयानन्द इनसे और आगे बढ़े और उन्होंने वैदिक धर्म का वास्तविक रूप भारतीय जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया।
जन्म और बाल्यावस्था maharshi dayanand saraswati in hindi
महर्षि दयानन्द का बचपन का नाम मूलशंकर था । उनका जन्म सन् 1824 ई ० में गुजरात में टँकारा नगर में हुआ था। उनके पिता का नाम किशन जी था । वे एक धर्म प्रिय व्यक्ति थे। अतः बालक मूलशंकर का पालन पोषण धार्मिक वातावरण में हुआ।
पिता ने पुत्र को अपने कुल की परम्परा के अनुसार ही शिक्षा दिलाई । छोटी अवस्था में ही बालक ने पढ़ना आरम्भ कर दिया । घर पर ही उसने बहुत से मंत्र और श्लोक कण्ठाग्र कर लिए। कुशाग्र बुद्धि होने के कारण बालक दयानन्द विद्याध्ययन में दिन – प्रति – दिन उन्नति करते गये।
परिवार का वातावरण धार्मिक होने के कारण बालक मूलशंकर ने भी धार्मिक कार्यों में पूर्णरूपेण भाग लेना प्रारम्भ कर दिया । किन्तु इसी शिक्षा के लिए उनका जीवन इस संसार में नहीं था। वास्तव में उन्हें तो एक महान् सुधारक के रूप में विधाता ने इस संसार में भेजा था।
शिवरात्रि का व्रत था । बालक मूलशंकर ने भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उपवास किया । धर्म में अपार श्रद्धा और प्रेम तो उनके हृदय में पहले ही से विद्यमान था। अपने ऐसे ही भक्ति से परिपूर्ण हृदय के साथ वह मन्दिर गये और रात्रि जागरण का निश्चय कर शिवजी की पूजा पर बैठ गये।
शिवजी की मूर्ति के निकट फल और मिठाइयों का ढेर लगा हुआ था। चूहों ने उन वस्तुओं में से चोरी प्रारम्भ कर दी। बस यहीं से मूलशंकर के मन में शंका उत्पन्न हो गई और वह विचारने लगे कि जो भगवान अपने ऊपर से चूहे को नहीं उठा सकता , वह हमारी रक्षा क्या कर सकता है ? पुत्र ने पिता से तुरन्त ही अपनी शंका के समाधान हेतु अनेक प्रश्न किये किन्तु बालक को संतोषजनक उत्तर नहीं मिल सका। यही घटना उनके जीवन में एक महान् परिवर्तन का मूल कारण बन गई।
वे सच्चे शिव की खोज के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन को अर्पित करने को तैयार हो गये । इसी बीच उनकी बहिन और चाचा की मृत्यु हो गई , किन्तु उनके मन में थोड़ा – सा भी कष्ट नहीं हुआ। इस दुख को सहन करने की उनमें अपार क्षमता जाग उठी । वह उस महान् उच्च मानसिक स्तर पर पहुँच चुके थे जहाँ पहुँचकर मनुष्य को सांसारिक मोह – माया कष्ट नहीं दे पाते । उनका जीवन चिन्तन का जीवन बन गया था । इसी घटना ने बालक मूलशंकर को महर्षि दयानन्द बनने को प्रेरित किया।
बोध ज्ञान की प्राप्ति maharshi dayanand saraswati in hindi
वह अपनी यौवनावस्था को प्राप्त कर चुके थे। उनको सांसारिक भोग – विलास से घृणा थी । उनके जीवन का उद्देश्य अब केवल यही रह गया । था कि किसी प्रकार मृत्यु को जीता जाये। जब परिवार के अन्य व्यक्तियों ने संसार की वस्तुओं के प्रति उनकी यह विरक्ति देखी तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ । प्रत्येक माँ – बाप यही चाहते हैं कि उनकी सन्तान यौवनावस्था प्राप्त कर सांसारिक सुखों को भोगे।
अपने पुत्र की गृहस्थ जीवन के प्रति उदासीनता कोई भी माँ – बाप सहन नहीं कर सकते । इसी आशा में कदाचित् विवाह होने के उपरान्त मूलशंकर की प्रवृत्ति बदल सकेगी। घर वालों ने उनके विवाह की सम्पूर्ण तैयारियाँ कर दीं , किन्तु मूलशंकर इस मायाजाल में कब फँसने वाले थे।
वह एक दिन चुपचाप महात्मा बुद्ध की तरह घर छोड़कर चले गये और अनेक महात्माओं के साथ भ्रमण करते हुए उन्होंने अन्त में संन्यास की दीक्षा ग्रहण कर ली , किन्तु उन्हें कोई सच्चा गुरु नहीं मिला था। उन्हें तो सच्चे शिव को बतलाने वाले गुरु की आवश्यकता थी।
जब मनुष्य संसार में किसी कार्य को पूरा करने में तन, मन और धन तक अर्पण करने को तैयार हो जाता है तब ईश्वर की ओर से कोई – कोई सहायक उसको मिल ही जाता है। मूलशंकर के हृदय में सच्चे गुरु को प्राप्त करने की उत्कृष्ट अभिलाषा जाग्रत हो चुकी थी। उसे प्राप्त करने के लिए वह बहुत व्याकुल थे। तभी उन्हें गुरु बिरजानन्द मिले। मथुरा में उनके ज्ञान का उदय हुआ।
गुरु ने अनेक ग्रन्थों का अध्ययन कर स्वामी दयानन्द को ऋषि बनाने का भरसक प्रयत्न किया। अन्त में गुरु ने अपने योग्य शिष्य से संसार का उद्धार करने की गुरु – दक्षिणा माँगी। उस महान् गुरु को महान् दक्षिणा भी चाहिए थी, जो केवल त्यागी भक्त के ही द्वारा सम्भव थी। शिष्य भी सच्चा गुरु – भक्त था । उसने गुरु की आज्ञा मानकर संसार के उपकार के लिए अपने जीवन को अर्पण कर दिया।
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संसार से विपरित और संन्यास maharshi dayanand saraswati in hindi
जब ऋषि दयानन्द अपने इस कार्य में संलग्न हुए तो उन्होंने सम्पूर्ण वैदिक ग्रन्थों का मंथन कर उनका सार ग्रहण किया और इस प्रकार प्राप्त सार तत्वों को आधार मानकर उन्होंने हिन्दू धर्म में सुधार करने का निश्चय कर लिया। उन्होंने प्रचलित सम्पूर्ण अन्धविश्वास , आडम्बरों और रूढ़ियों की आलोचना की । हिन्दू – जनता अनेक देवी – देवताओं को पूजती है , जिसका स्वामी जी ने घोर विरोध किया। उन्होंने लोगों को बतलाया कि वैदिक – धर्म केवल एक ही ईश्वर की सत्ता को मानता है।
उन्होंने यज्ञ और हवन आदि पर जोर दिया तथा धार्मिक वातावरण में एक अपूर्व क्रान्ति उपस्थित कर दी। इस प्रकार महर्षि दयानन्द ने हिन्दू धर्म के सच्चे स्वरूप को जनता के सामने रखकर बहुत से हिन्दुओं को ईसाई और मुसलमान बनने से बचा लिया।
संसार का हित साधना
ऋषि दयानन्द ने वेदों के भाष्य किये और’ सत्यार्थ प्रकाश ‘ नामक एक महान् ग्रन्थ लिखकर वैदिक धर्म की व्याख्या की । उन्होंने अपनी प्रखर बुद्धि द्वारा वेदों का सच्चा स्वरूप संसार के सामने प्रस्तुत कर धार्मिक क्षेत्र में नवीन जाग्रति का शंखनाद किया। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की और सामाजिक दोषों का पूर्ण रूपेण विरोध किया । बाल – विवाह तथा अनमेल विवाह के प्रति उन्होंने रोष प्रकट किया।
विधवाओं की दशा सुधारने का प्रयत्न किया। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने महान् कार्य किया और बहुत से गुरुकुलों और कॉलेजों की स्थापना की। उन्होंने अछूतों के उद्धार के लिए भी खूब प्रचार किया। आपने लोगों के हृदय में देश – प्रेम की भावना को भरपूर जगाया । विदेशी शासन की बेड़ियों को तोड़ने के लिए उन्होंने जनता के हृदय में राष्ट्रीय भावना कूट – कूट कर भर दी।
महर्षि दयानन्द ने सम्पूर्ण हिन्दू जाति पर एक महान् उपकार किया। उन्होंने कोई नया सम्प्रदाय नहीं चलाया बल्कि प्राचीन वैदिक धर्म को सच्चा व्यावहारिक रूप देने का प्रयत्न किया। वास्तव में जब तक हिन्दू और हिन्दू धर्म इस संसार में विद्यमान है तब तक महर्षि दयानन्द का नाम एक समाज सुधारक के रूप में अमर तथा चिरस्मरणीय रहेगा।
दयानन्द ने हिन्दू जनता को एक नया मार्ग तथा जीने का एक नया सम्बल प्रदान किया है । देश को नई रोशनी दी है । अंधविश्वासों का खण्डन करके नवीन जीवन का सूत्रपात किया है।
Conclusion
आज हम सब ने सीख (maharshi dayanand saraswati in hindi) महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने किस तरह हिन्दू धर्म की बढ़ावा देने और अंधविश्वास को खत्म करने के लिए जोर दिए। उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन काल मे अच्छे अच्छे गुरुकुल, कॉलेज और पाठशालाओं की निर्माण कराए। हमे इनसे सीख लेनी चाहिए। और जात पात धर्म भेद भाव को नहीं मानना चाहिए। इस तरह की और भी महान पुरुषों के जीवनी के बारे में आप जानने चाहते है तो आप हमारे पेज पर पर विजिट करते रहिए ऐसे ही इंट्रेस्टिंग और ज्ञानवर्धन जानकारी आपके लिए आते रहेंगे। धन्यवाद