आज हम सब जानने की कोशिश करेंगे कि आपदा से होने वाले नुकसान हमारे लिए कितना पीड़ादायक होता है। सबकुछ खत्म हो जाता है एका एक आँखों के सामने। और हम सब चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते हैं। प्राकृत के सामने हम सब विवश और लाचार बनकर अपने ऊपर हो रहे घटनाक्रम को देखते रहते हैं। इस प्रकार के होने वाले आपदा के द्वारा नुकसान को कम करने के लिए आपदा प्रबंधन के तरफ से बहुत सारे कार्य किए जाते है ताकि लोगों को प्राकृतिक घटना से होने वाली जान माल की नुकशान कम से हो सके आज हम सब इसी विषय पर बात करेंगे यानी आपदा प्रबंधन के बारे में तो चलिए जानते है….
आपदा प्रबन्धन (Disaster Management in hindi)
संकल्पना (Concept) – पर्यावरण को बढ़ते विकास की अंधी प्रवृत्ति असन्तुलित कर रही है और इसी का नतीजा है कि बाढ़, चक्रवात, भूस्खलन, आग लगने की घटनाएँ बढ़ने लगी हैं। इस तरह के प्रकोपों की नियमितता और इनसे उत्पन्न स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को रोकने तथा कम करने के लिए उपयुक्त उपाय करने तथा उनमें लगातार सुधार की जरूरत है। प्राकृतिक आपदाओं से हानि को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने पिछले दशक (1990-1999) को अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा- न्यूनीकरण दशक के रूप में मनाया।
भारत सरकार के प्राकृतिक आपदा सम्बन्धी वर्तमान मन्त्रालय ने अन्तर्राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दशक के पूरा होने के पश्चात् हर साल 29 अक्टूबर का दिन राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। 1999 में इसी दिन उड़ीसा में महाविनाशकारी चक्रवात आया था। राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस के आयोजन का लक्ष्य जनता में प्राकृतिक आपदाओं और उनके कुप्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना तथा उन्हें इनसे निपटने के लिए तैयार रखकर हानि को कम से कम करना था। जीवन तथा सम्पत्ति के लिए सक्षम धमकी के रूप में संकट को परिभाषित किया गया है। जोखिम संकट आने की आशंका है और आपदा संकट का साक्षात्कार है।
आकरेंट (Okrent 1980) के अनुसार, ” संकट प्राकृतिक और मानवजनित घटनाएँ हैं जो जीवन और धन को नुकसान पहुँचाने के लिए अचानक तथा तेजी से घटित होती हैं।”
इन घटनाओं की भविष्यवाणी प्रायः नहीं की जा सकती।
आपदा संकटों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है।Disaster Management in Hindi
A प्राकृतिक (Netural)
(a) अन्त : जात ( Endogenous )
भूकम्पीय (Seismic)
(i) भूकम्प (Earthquakes)
(ii) भूस्खलन ( Land slide ), समुद्री तूफान (Cyclone)
B बहिर्जात (Exogenous)
(1) वायुमण्डलीय संकट (Atmospheric hazards)
(i) ऊष्म कटिबंधीय चक्रवात बाढ़ (Tropical cyclories)
(ii) ग्रीष्मकालीन तूफान (Summer storms)
(iii) शीतकालीन तूफान (Winter storms)
(iv) तापमान चरम (Temperature extremes)
(v) तुषार / पाला संकट (Frost hazard)
(vi) जंगल की आग (Wild fire)
(vii) कार्यकीय (Physiological)
(2) व्यापक हलचल (Exogenous)
(i) शैलपात (Rock falls) एवं भूस्खलन(Land slides)
(ii) हिम स्खलन (Snow avalanche) समुद्री तूफान (Cyclone)
(3) जलीय संकट (Hydrological hazard)
(i) अकाल (famine)
(ii) बाढ़ (Flood)
(iii) सूखा (Drought)
(iv) सुनामी (Tsunami)
C मानव जनित (Anthropogenic)
(a) तकनीकी (Technological)
(1) भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal gas tragedy)
(2) चेरनोबिल (Chernobyl) दुर्घटना। निसन्देह मृत्यु जैसा संकट जीवन का ही हैं। हम प्रतिदिन व्यक्तिगत जोखिम में हैं चाहे’ वह शरीर का हो, सम्पत्ति का या परिवेशी पर्यावरण का। अतः यह जरूरी है कि हम संकटों के अधिप्रभावों का मूल्यांकन करें और उन्हें श्रेणीबद्ध करें। प्रत्यक्ष प्रभाव वे हैं जो घटना के शीघ्र वाद होते हैं; यथा— मृत्यु एवं सम्पत्ति की हानि, अप्रत्यक्ष प्रभाव ज्यादा बाद में प्रकट होते हैं और कभी-कभी संकट से सम्बन्धित घटना को उनसे तारतम्य बिठाना (सम्बन्ध जोड़ना) कठिन हो जाता है।
सुनिश्चित (विश्वसनीय) प्रभाव वे होते हैं जिन्हें विश्वसनीय वित्तीय/आर्थिक मूल्यों; जैसे— क्षतिग्रस्त सम्पत्ति को प्रतिस्थापन से सम्बन्धित किया जा सके’ अविश्वसनीय/अनिश्चित प्रभाव वे हैं जिन्हें वित्तीय तथा आर्थिक शर्तों में सन्तोषजनक रूप से निश्चित न किया जा सके।
भूकम्प ( Earthquake ) प्राकृतिक कारण से धरती का कम्पन करना भूकम्प कहलाता है। भूगर्भ में चट्टानों के अपने स्थान से विस्थापित होने के कारण हलचल पैदा होती है जिसे रिक्टर पैमाने पर मापा जा सकता है। भूकम्प की शुरूआत इसके केन्द्र से होती है और दूरी बढ़ने के साथ – साथ भूकम्प की तीव्रता कम होती जाती है। वैसे तो भूकम्प एवं प्राकृतिक आपदा है लेकिन कभी – कभी बड़े – बड़े बाँधों के निर्माण से उत्पन्न असन्तुलन भी इसका कारण बनता है।
आपदा से होने वाले प्रभाव
(1) जन – धन की भारी हानि।
(2) पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव ।
(3) नदियों का मार्ग बदल जाना ।
( 4 ) जमीन धँसना या दरारें पड़ना ।
( 5 ) बाँधों के टूटने से बाढ़ का प्रकोप ।
( 6 ) वनस्पति का विनाश ।
भूकम्प नियन्त्रण के उपाय-
( 1 ) भूकम्प की पूर्व से सूचना देने के लिए भूकम्प सूचना केन्द्र की स्थापना की जानी चाहिए । जहाँ अनेक प्रकार के यन्त्रों की सहायता से भूकम्प का पूर्वानुमान लगाकर जनसाधारण को सूचित किया जा सके ।
( 2 ) भूकम्प की सम्भावना वाले क्षेत्रों में विशेष तकनीक वाले मकानों का निर्माण किया जाना चाहिए।
( 3 ) भूकम्प प्रभावित क्षेत्र में बाँध का निर्माण या खनन का कार्य नहीं करना चाहिए ।
( 4 ) भूकम्प आने पर उठाने वाले कदमों की जानकारी लोगों तक पहुँचानी चाहिए।
( 5 ) ऐसे क्षेत्रों में बहुमंजिली इमारतें नहीं बनानी चाहिए ।
क्या आप जानना चाहते हैं? की पर्यावरण के परिभाषा क्या होता है?
भूस्खलन (Landslide)
यह एक प्राकृतिक विपदा है । इसमें भूमि काएक भाग टूटकर या खिसक कर अलग हो जाता है । यह क्रिया गुरुत्वाकर्षण द्वारा प्राकृतिक रूप में भी होती रहती है और इसमें मानवीय कारक भी होता है । अधिकांशतः यह क्रिया पर्वतीय ढालों पर ज्यादा होती है । स्थेलर के अनुसार , ” पर्वतीय ढाल की कोई भी चट्टान गुरुत्व के कारण नीचे की ओर खिसकती है तो उसे भूस्खलन कहते हैं । ” यदि ऊपरी परत का यह खिसकाव मन्द एवं सीमित होता है तो इसे मृदा खिसकाव कहते हैं । जब बड़े – बड़े खण्डों या ब्लॉक के रूप में खिसकाव होता है तो इसे भूस्खलन कहते हैं । ज्यादातर भूस्खलन हानिकारक होते हैं और इनसे न सिर्फ जान – माल की हानि होती है बल्कि पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
भूस्खलन विश्व के विभिन्न भागों में होता रहता है । यह नये पर्वतीय प्रदेशों , अतिवर्षा के क्षेत्रों में ज्यादा होता है । भूस्खलन अनेक कारणों से होता है । इनमें पृथ्वी की आन्तरिक हलचल , भू – सन्तुलन का बिगड़ना , जल द्वारा आन्तरिक भूमि का कटाव , भूमिगत जल द्वाराभूमि को खोखला कर देना , जलीय या ऊपरी ढलाव से तथा भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रियाओं को सम्मिलित किया जा सकता है।
कभी – कभी खनन , वन – विनाश जैसी मानवीय क्रियाएँ भी इसके लिए जिम्मेदार होती हैं । भूस्खलन की समस्या विश्व के सभी भागों में है । भारत में हिमालय की तलहटी वाले भागों में यह अधिक होता है । जम्मू – कश्मीर में भूस्खलन की गम्भीर समस्या है जिसके कारण जम्मू – श्रीनगर मार्ग वर्ष में अनेक बार बन्द हो जाता है । हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के उत्तराखण्ड में भी यही समस्या है ।
अन्य कारक जो भूस्खलन को प्रभावित करते हैं— आपदा प्रबन्धन (Disaster Management in hindi)
( 1 ) भूकम्प और कम्पन
( 2 ) चट्टानों की हलचल
( 3 ) अवसादों में जल की बहुलता ।
भूस्खलन को कम करने के लिए निम्न उपाय किया जा सकता है ताकि भूस्खलन के समस्या को समाधान किया जा सके
( 1 ) पहाड़ी ढलानों पर कंक्रीट के खण्ड बनाकर स्खलन रोकना ।
( 2 ) सतही एवं भूमिगत जल की उचित निकासी ।
( 3 ) तार और पत्थरों द्वारा अपरदन और स्खलन कम करना ।
समुद्री तूफान ( Sea Storm )
उष्ण कटिबंधीय तटीय प्रदेशों में समुद्री तूफान एक आम विषय है । उष्ण कटिबंधीय तूफान उच्च तापमान व आर्द्रता के कारण उत्पन्न होते हैं । समुद्री तूफान के लिए यह जरूरी है कि समुद्र का सतही तापमान 26 ° C से ज्यादा हो । यह तूफान चक्रवात के रूप में 10-30 किमी . की रफ्तार से बढ़ता है । इनका व्यास 100-1500 किमी . तक हो सकता है और ये सप्ताह तक रहते हैं । इन तूफानों को एटलांटिक महासागर में हरीकेन , कैरीबिया और उत्तर पूर्वी प्रशान्त महासागर में टाईफून और अन्ध महासागर में ‘ बिली विलीज ‘ का नाम दिया गया है ।
अरब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी में ज्यादा तूफान आते हैं । वर्षभर में आने वाले 5-6 तूफानों में 50 % विनाशक होते हैं । हरीकेन की धाराएँ ( 74 मील प्रति घंटा ) अक्सर पूरे क्षेत्र को प्रभावित करती हैं । ज्वार के समय यह तबाही और भी अधिक होती है । समुद्र का खारा जल भी तटीय प्रदेशों में अन्दर तक प्रवेश कर जाता है । प्रबन्धन — तूफानों पर नियन्त्रण पाना मनुष्य के बस की बात नहीं हो सकती परन्तु पुराने प्रबन्धीय तरीके ही इनसे होने वाली हानि को कम कर सकते हैं । ऐसे तरीके हैं — वृक्षारोपण , तटीय क्षेत्रों में बाँधों का निर्माण , डाईकों का निर्माण , समुचित जल निकास इत्यादि ।
चक्रवात (Cyclone)
वायुमण्डलीय दशाओं में हुए अचानक परिवर्तन के परिणामस्वरूप तूफान आदि आते हैं जो पर्यावरण के सन्तुलन में बाधक होते हैं । • प्राय : उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में चक्रवात आते हैं जिन्हें हरीकेन या टाईफून भी कहते हैं । जिनसे हवा की गति 120-200 किमी प्रति घंटा होती है और साथ ही तेज वर्षा होती है । ये ये मुख्य रूप से 8-15 उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों में आते हैं । ये वृत्ताकार रूप में चलते हैं । जब समुद्री क्षेत्र से तट की और आते हैं तो समुद्री जल दूर – दू हैंजिससे भारी जन – धन की हानि होती है ।
इससे होने वाली हानि का उदाहरण बांगला देश है । जहाँ इनके द्वारा भारी हानि होती रहती है । चक्रवात से समुद्रतटीय क्षेत्रों तथा द्वीपों के निवासियों को खतरे का भय बना रहता है । तेज हवा से वनस्पति व उन पर पल रहे जीव – जन्तुओं की सबसे ज्यादा हानि होती है । समुद्र का जल निकटवर्ती क्षेत्रों में पहुँच दलदल में वृद्धि करता है व उनमें बीमारियों को फैलाता है । चक्रवातों की सूचना मौसम विभाग पहले भी दे सकता है । परन्तु फिर भी एक बार आया ये तूफान पर्यावरण की दशाओं में अचानक परिवर्तन ला देते हैं ।
बाढ़ (Flood)
बाढ़ एक प्राकृतिक विपदा है जिनका सम्बन्ध जल वर्षा से है । किसी प्रदेश में वर्षा ज्यादा होने पर नदियों में बहाव आ जाता है और बाढ़ का प्रकोप हो जाता है जिससे पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । ज्यादा वर्षा अथवा अतिरिक्त जल के कारण नदी में पानी बढ़ जाता है और विस्तृत क्षेत्र में बाढ़ का पानी फैल जाता है । यह कहीं – कहीं नियमित रूप से आती है तो कहीं अचानक । बाढ़ की हानि जल के विस्तार तथा गति पर निर्भर करती है । साधारणत : बाढ़ से जन – धन की हानि होती है लेकिन कभी – कभी बाढ़ लाभदायक होती है । इससे उपजाऊ मिट्टी का विस्तार भी होता है ।
सेन के शब्दों में , “ बाढ़ की आपदा एक क्षेत्र के पर्यावरण के लिए गम्भीर समस्याओं को जन्म देती है , चूँकि इससे अनेक प्राकृतिक क्रियाओं में एकाएक परिवर्तन आ जाता है ; यथा— अपरदन में वृद्धि हो जाती है , परिवहन क्रिया ज्यादा होती है साथ में जमाव ( निपेक्ष ) ज्यादा होने से मृदा की संरचना एवं पर्यावरण के अन्य पक्षों पर प्रभाव पड़ता है । ” मानव – जनित कारणों से भी बाढ़ आने की दर में वृद्धि हुई है ; जैसे — वनों के कटने से , खनन से , औद्योगीकरण से तथा विश्व स्तर पर तापमान के बढ़ने से । बाढ़ से लगातार प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ के पानी को अनेक प्रकार की फसलों को उगाने में उपयोग किया जाता । परन्तु फिर भी इन बाढ़ों से आर्थिक नुकसान के साथ – साथ मनुष्य व पशु – जीवन की भी भारी हानि होती है । बाढ़ व सूखे की समस्या से निपटने के लिए हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न नदियों का जाल बनाने की सम्भावना पर कार्य चल रहा है ।
बाढ़ प्राकृतिक आपदा की एक बड़ी समस्या है इस समस्या से हजारों लोगों की मौत हर साल हो जाती है। जो बहुत ही सुखद बात है इससे होने वाले नुकसान को भरपाई करने में आम लोगों को सालो सालो लग जाते हैं फिर भी वह पहले जैसा रिकवर नहीं हो पाते है। इस प्रकृति आपदा में उनका सब कुछ खत्म हो जाता है और उनका कोई सहारा नहीं बचता है। तो आइये जानते है कि बाढ़ आने का मुख्य कारण कौन कौन सा है जिससे ज्यादा नुकसान होता है।
बाढ़ आने के अनेक कारण इस प्रकार हैं Disaster management in Hindi
( 1 ) मौसम की विशेष दशाओं के कारण जब ज्यादा वर्षा हो जाती है । यह चक्रवात द्वारा , मौसमी तूफान द्वारा या बादल फटने के द्वारा हो सकती है ।
( 2 ) बाँध का टूट जाना या एकाएक अतिरिक्त पानी की निकासी ।
( 3 ) भूकम्प द्वारा ।
( 4 ) नदियों के उद्भव क्षेत्र में वनों का विनाश होना ।
( 5 ) अत्यधिक शहरीकरण ।
ये मुख्य समस्या है जिसमें बाढ़ आने के खतरा ज्यादा बान रहता है और इसी कारण से बाढ़ ज्यादा आता है
बाढ़ की रोकथाम – बाढ़ रोकने के अनेक उपाय इस प्रकार हैं, जिससे बाढ़ को कम किया जा सकता है।
( 1 ) सही स्थानों पर बाँधों का निर्माण किया जाये ।
( 2 ) नदियों के अलावा जल की निकासी के लिए नालियों की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए ।
( 3 ) जल ग्रहण क्षेत्र में अपरदन को रोका जाये ।
( 4 ) जल ग्रहण क्षेत्र में वनों की कटाई पर पाबन्दी लगाई जाये तथा सघन वृक्षारोपण किया जाये ।
( 5 ) छोटी नदियों व नालों पर बाँध व अवरोधक बनाकर उनका जल उपयोग में लाया जाये।
(6) बाढ़ नियन्त्रण , बाढ़ आने की पूर्व सूचना देने के लिए उचित प्रबन्धन आवश्यक है ।
( 7 ) बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में उच्च धरातल व आवास निर्मित किये जायें ।
बाढ़ की हानियाँ – बाढ़ की हानियाँ निम्न प्रकार हैं
जन – धन की ज्यादा हानि होती है ।
बाढ़ से मृदा अपरदन ज्यादा होता है ।
पुलों , सड़कों , रेलमार्गों आदि की हानि होती है ।
जल के गर्त में जमे रहने से विभिन्न प्रकार के जीवों का उद्भव होता है जो अनेक प्रकार के रोगों का कारण होते हैं ।
दलदली भाग का निर्माण हो जाता है ।
वनस्पति व जीव – जन्तुओं की हानि पहुँचाती है ।
प्राकृतिक आपदा से बंचित होना एक बड़ी चुनौती बना रहता है, क्यु की प्राकृतिक स्थिति को संतुलन में लाने के लिए बहुत सारे कार्य करना पड़ेगा। हम प्रत्येक दिन प्राकृतिक का दोहन करते रहते हैं इसी का परिणाम यह होता है कि कहीं बाढ़ आता है तो कहीं सूखा रह जाता है। आगे के आर्टिकल Disaster management in Hindi में बाढ़ के बारे में जानकारी प्राप्त किए हम सब अब जानने की कोशिश करेंगे कि प्राकृतिक आपदा में ‘सूखा Draught क्या होता है?
सूखा ( Draught ) बाढ़ के समान ही सूखा भी प्राकृतिक आपदा है जिसका सम्बन्ध जल वर्षा से है । अल्प वर्षा सूखे का कारण बन जाती है । मौसम के अनुसार यह वर्षारहित काल है जबकि जल विशेषज्ञों के अनुसार भूमिगत जल स्तर का काफी नीचे पहुँच जाता । कृषिवेत्ता इसे नमी उपलब्ध न होने के कारण कृषि विनाश का काल व्यक्त करते हैं । जबकि अर्थशास्त्री इसे आर्थिक क्रियाओं का प्रतिकूल समय बताते हैं ।
जब वर्षा सामान्य से 25-50 प्रतिशत कम होती है तो सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है लेकिन 50 प्रतिशत से ज्यादा कमी होने पर भयंकर सूखे की स्थिति आ जाती है और ज्यादा लम्बे समय तक यह स्थिति रहने पर अकाल कहलाता है । करीब 80 प्रतिशत देश विश्व में ऐसे हैं जो शुष्क एवं अर्ध – शुष्क भागों में स्थित हैं । सूखे के आक्रमणों से ये देश प्रभावित होते रहते हैं । सूखा पूरे वर्ष का भी पड़ सकता है । जब वार्षिक वर्षा वाष्पीकरण से कम होती है तो सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
यह एक विडम्बना है कि यही सूखा – पीड़ित क्षेत्र ज्यादा आबादी के क्षेत्र भी होते हैं । ज्यादा आबादी के चलते फसल उगाने , निवास बनाने, पशु चराने , आदि की माँग भी ज्यादा होती है जिसके कारण भूमि का उपयोग भी उचित ढंग से नहीं होता तथा स्थिति और ज्यादा बिगड़ जाती है । सूखा एक मौसम विज्ञान सम्बन्धी प्रक्रिया है , लेकिन बहुत – सी मानवीय गतिविधियों ; यथा — अति चराई , वन – कटाई तथा खनन के कारण कई क्षेत्र मरुस्थलों में परिवर्तित होते जा रहे हैं जिससे सूखा की समस्या गम्भीर होती जा रही है ।
सूखा Draught होने का कारण Disaster Management in Hindi
जलवायु की दशाओं व मानवीय कारकों पर सूखा पड़ना निर्भर करता है । मानसूनी हवाओं का न आना भी सूखे को पैदा करता है । मानव द्वारा वनों की ज्यादा कटाई से वायुमण्डलीय नमी में न्यूनता , अनियन्त्रित पशुचारण एवं मरुस्थलीकरण की प्रकृति बढ़ने से सूखे की समस्या में वृद्धि होती है । सन् 1899 में छप्पनिया अकाल पड़ा था जिसमें लाखों लोगों की जानें गईं और अर्थव्यवस्था भी छिन्न – भिन्न हो गई ।
सूखा पड़ने पर प्रभाव impact of drought
इसके निम्न प्रभाव हैं
( 1 ) सम्पूर्ण जनजीवन अस्त – व्यस्त हो जाता है ।
( 2 ) अकाल से जन – धन की भारी क्षति होती है ।
( 3 ) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है ।
( 4 ) वनस्पति व जीव – जन्तु अधिकाधिक नष्ट हो जाते हैं ।
( 5 ) भू – जल स्तर काफी नीचे चला जाता है ।
रोकथाम के उपाय-
इसके रोकथाम के निम्न उपाय हैं
( 1 ) नियन्त्रित पशुचारण द्वारा इसे रोका जा सकता है ।
( 2 ) जल – संसाधनों का विकास एवं समुचित उपयोग |
( 3 ) नियमित वृक्षारोपण द्वारा भी इसे रोका जा सकता है । लेकिन इसके लिए पारिस्थितिकीय जरूरतों तथा प्राकृतिक क्रियाओं को समझना आवश्यक है । नहीं तो इसका प्रभाव विपरीत भी हो सकता है ।
आपदा मे सुनामी एक बड़ी समस्या है, समुद्री के किनारे बसे देश और राज्यों को ज्यादा खतरा बना रहता है बहुत सारे ऐसे जगह है जो समुद्र के तट पर बसा हुआ है और वह सुनामी से हर साल प्रभावित होते रहते है तो आइये जाने है कि सुनामी क्या है? What is Tsunami और सुनामी से क्या आशय है Disaster management in Hindi
सुनामी ( Tsunami ) जापानी शब्द सुनामी का तात्पर्य बहुत लम्बी एवं कम कम्पन वाली समुद्री लहरों से है जो महासागरीय भूकम्प के प्रभाव से महासागरों में उत्पन्न होती हैं । ये लहरें समुद्र की सतह • के नीचे किसी भूकम्प या ज्वालामुखी विस्फोट या समुद्र के भीतर पैदा होती है । समुद्र में उठी लहरें तेजी से आगे बढ़ती हैं किन्तु उस समय इनकी गति एवं ऊँचाई बढ़ने लगती है तथा लगभग सौ किमी प्रति घंटा से अधिक रफ्तार से यह 50-100 फुट की ऊँचाई तक ऊपर उठती है । तेज गति वाली अधिक ऊँचाई वाली ये लहरें तटीय क्षेत्रों में तबाही मचा देती हैं । एशिया के एक बड़े हिस्से में कहर बरपाने वाला भूकम्प इस कदर ताकतवर था कि कई द्वीप इधर – उधर खिसक गये और नक्शे पर एशिया महाद्वीप का चेहरा हमेशा के लिए बदल गया।
इण्डोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में 26 दिसम्बर , 2004 को प्रातः हिन्द महासागर के तल के नीचे आये भीषण भूकम्प से उपजी शक्तिशाली समुद्री लहरों से भारत , इण्डोनेशिया , थाईलैण्ड , मलेशिया , बांग्लादेश , श्रीलंका एवं 11 देशों के तटीय क्षेत्रों में धन – जन की बड़ी तबाही हुई । इस आपदा में लगभग सवा लाख से अधिक लोगों में सर्वाधिक 80 हजार लोग इण्डोनेशिया में , 30 हजार लोग श्रीलंका में तथा भारत में तमिलनाडु , आन्ध्र प्रदेश , पाण्डिचेरी , केरल एवं अण्डमान – निकोबार द्वीप समूह में 15 हजार एवं थाईलैण्ड में 7 हजार लोगों से अधिक लोगों ने अपने प्राण गँवाये ।
यू.एस.ए. जियोलॉजिकल सर्वे के विशेषज्ञ केन हडनट के मुताबिक , सुमात्रा द्वीप से 250 किमी . दक्षिण – पूर्व में समुद्र की तलहटी के नीचे आये भूकम्प की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8.9 के करीब आँकी गयी।
हडनट ( Hudnut ) का कहना है कि ऐसी तीव्रता वाले भूकम्प में इतनी शक्ति होती है कि उसने कितने ही छोटे – छोटे द्वीपों को 20-20 मीटर तक इधरउधर खिसका दिया होगा । उन्होंने आशंका जतायी कि सम्भवतः सुमात्रा के इण्डोनेशिया भूभाग का उत्तर – पश्चिम अगला भाग भी करीब 36 मीटर दक्षिण – पश्चिम दिशा में खिसक गया होगा। इस भूकम्प से समुद्र के अन्दर भूमिगत प्लेटों के दो सिरों के एक – दूसरे पर खिसकने से इतनी विशाल मात्रा में ऊर्जा निकली कि धरती के घूमने की गति भी प्रभावित हो गयी।
अमेरिका के गोल्डन कोलोराडो में स्थित यू . एस . जी . एस . नेशनल अर्थक्वेक इन्फॉर्मेशन सेन्टर के अनुसार , सुमात्रा के द्वीप बगल में खिसकने की बजाय ऊपर उठे होंगे जिससे भारतीय प्लेट , बर्मा प्लेट से नीचे चली गयी जिससे द्वीपों में अधिकतर खिसकाव क्षैतिज की बजाय ऊर्ध्वाधर हुए होंगे ! सुनामी से जितनी बर्बादी हुई है , उससे बचा जा सकता था बशर्ते कि भारत पहले से ही चेतावनी प्रणाली विकसित कर लेता । लोगों को अगर अग्रिम सूचना मिलती तो वे अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर सकते थे । चेतावनी प्रणाली न होने के कारण ही लोगों को बचने का अवसर नहीं मिला।
आग (Fire) प्राकृतिक आपदाओं में आग का लगना एक ऐसी घटना है जो प्रायः घने जंगलों में उस समय घटित होती है जब वातावरण का तापक्रम अत्यधिक होता है । उस समय जंगलों के सूखे पेड़ों के एक – दूसरे से टकराने तथा रगड़ने से उनमें चिंगारी उत्पन्न होती है जिससे आग सम्पूर्ण जंगल को अपनी लपेट में ले लेती है और देखते – देखते एक बड़े क्षेत्र का जंगल जलकर राख हो जाता है । यह एक ऐसी आपदा है जिस पर नियन्त्रण कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। मानव निर्मित आपदाओं में कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं।
आतंकवाद Terrorism
आतंकवाद एक बड़ी आपदा समस्या है जो मानव जिव जात होता है यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं होता है यह हर देश की एक गंभीर और मुस्किल भरा समस्या है। इससे हर साल पूरी दुनिया में लाखो हजारों लोगों की जान चली जाती है तो चलिए जानते हैं कि आतंकवाद क्या होता है? What is terrorism? और इसका मकसद क्या है Disaster management in Hindi
आतंकवाद एक विश्वव्यापी समस्या है और भारत इससे सर्वाधिक प्रभावित देश है। यह एक ऐसी समस्या है जिस पर अंकुश लगाना असम्भव है क्योंकि जो भी सरकार सत्ता में आती है वह अपना और अपनी पार्टी का आर्थिक उत्थान करना चाहती है न कि देश का विकास और इस आन्तरिक मतभेद का लाभ बाहरी विकसित देश उठाते हैं जो देश के गद्दार लोगों के साथ मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जगह – जगह आतंकवादी हमले कराते हैं और देश की शान्ति को भंग करते हैं। अंग्रेजों ने हमेशा ही ‘फूट डालो राज करो’ की नीति अपनाई है।
जिसका लाभ वे आज भी उठा रहे हैं और भारत जैसे विशाल देश पर राज करने का स्वप्न देख रहे हैं जिसे आतंकवाद के जरिये सम्भव करने का प्रयास कर रहे हैं। इस समस्या के समाधान हेतु यह आवश्यक है कि राजनीति इसके बीच में न आये तथा जो भी सरकार सत्ता में आये वह इसके अवरोध के लिए पर्याप्त नियम बनाये जिससे सुरक्षा एजेन्सियों को सक्षम बनाया जा सके ताकि वे देश की आन्तरिक सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए तत्पर हो सकें।
(2) दंगे भारत एक ऐसा देश है जिसमें विभिन्न जातियों, धर्मों व संस्कृतियों के लोग रहते हैं । प्रायः वे सभी एक – दूसरे के साथ मित्रवत व्यवहार करते हैं और एक – दूसरे की संस्कृति का आदर – सम्मान भी करते हैं परन्तु वोट बैंक की राजनीति के कारण कुछ नेताविभिन्न धर्मों के लोगों को एक – दूसरे के प्रति हिंसात्मक व्यवहार करने पर मजबूर कर देते हैं जिससे देश में जगह – जगह पर दंगे करवाकर नेतागण स्वयं का स्वार्थसिद्ध करते हुए लोगों की मासूमियत का लाभ उठाते हैं। अतः इस तरह की घटनाओं से बचने का एकमात्र मार्ग है सभी को शिक्षित करना । जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपना उचित – अनुचित समझकर सही कदम उठा सके और उसमें अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना जाग्रत हो सके।
(3) सामाजिक हिंसा – सामाजिक हिंसा का भी कारण बहुत कुछ शिक्षा का अभाव है जिसका लाभ नेतागण वोट बैंक की राजनीति के लिए उठाते हैं। राजनीति में भी कम पढ़े लिखे लोगों को पद – भार ग्रहण कराने से वे सत्ता में आते ही सिर्फ अपने स्वार्थ को ही प्राथमिकता देते हैं और अशिक्षित व्यक्तियों का उपयोग करके समाज में हिंसा को जन्म देते हैं। लोगों के मध्य उत्पन्न हुए मतभेदों का लाभ उठाकर वोट की राजनीति करते हैं जिसकी हानि पूर्ण रूप से जनता को उठानी पड़ती है।
अतः सामाजिक हिंसा को रोकने का एकमात्र उपाय शिक्षा का प्रसार करना है तथा अशिक्षित व कम पढ़े – लिखे लोगों को राजनीति में आने से रोकना अथवा राजनीति में आने का एक निश्चित मापदण्ड निर्धारित करना हो सकता है। तभी समाज में विभिन्न धर्म, जाति व संस्कृति के लोग शान्तिपूर्वक रह सकते हैं।
आपदा प्रबन्धन के लिए उठाये गये प्रमुख कदम (Main Steps for Disaster Management)
(1) आपदा प्रबन्धन क्षमता बढ़ाने हेतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की योजना–
कुछ वर्ष पूर्व भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने आपदा जोखिम प्रबन्ध के बारे में एक कार्यक्रम शुरू किया है। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर देश के सर्वाधिक जोखिम वाले इलाकों में समुदाय आधारित और महिलाओं का खास तौर पर ध्यान रखते हुए आपदा के कुप्रभाव को कम करने के उपाय बताना है।
(2) आपदा प्रबन्धन हेतु उच्च स्तरीय समिति का गठन
आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में पिछले दशक की सबसे प्रमुख घटनाओं में से एक थी प्रधानमन्त्री की पहल पर एक उच्चस्तरीय समिति का गठन। भारत सरकार के पूर्व सचिव श्री जे . सी . पन्त की अध्यक्षता में गठित समिति को राष्ट्रीय राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रबन्धन की योजना बनाने के मुद्दों पर विचार करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
- (3) राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन समिति की स्थापना – भारतीय प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय प्रबन्धन समिति का गठन किया गया है। इस समिति में राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन केन्द्र और राज्यों के राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि भी शामिल रहते हैं । समिति को देश में वर्तमान आपदा प्रबन्धन तन्त्र को सुदृढ़ करने के उपाय सुझाने का उत्तरदायित्व सौंपा गया है।
(4) मानव संसाधन विकास – मानव संसाधन विकास क्षमता निर्माण का एक महत्वपूर्ण पहलू है जिसमें आपदा से निपटने के लिए प्रबन्धन कार्य में अलग – अलग भूमिकाएँ निभाने वाले शामिल रहते हैं । इसके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम जरूरी है। कृषि और सहकारिता विभाग ने, जो पहले आपदा प्रबन्धन का कार्य करने वाला नोडल मन्त्रालय था, 1993 में आपदा प्रबन्धन के विभिन्न पहलुओं को सम्मिलित करते हुए केन्द्रीय क्षेत्र में एक योजना प्रारम्भ की जिसमें मानव संसाधन विकास , अनुसंधान , परामर्श सेवाएँ और आपदाओं का प्रलेखन शामिल था। इस योजना के अन्तर्गत नई दिल्ली स्थित भारतीय लोक प्रशासन संस्थान में ‘ राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान ‘ की स्थापना की गयी।
(5) ई – नेटवर्किंग की दिशा में उठाये कदम – केन्द्र आपदाओं का असर कम करने और उनके प्रबन्धन के बारे में केन्द्र – राज्य सरकारों के अलग – अलग मन्त्रालयों, प्रशिक्षण संस्थानों, स्वायत्त संगठनों और विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, कार्यशालाएं, सेमिनार तथा अनुसंधान आदि गतिविधियाँ संचालित करने के लिए नेटवर्क भी बना रहा है।
(6) सूचना टेक्नोलॉजी को मजबूत बनाना – भारत में आपदा प्रबन्धन के बारे में भारत के नोडल मन्त्रालय ने प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए अनेक प्रकार की अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के उपयोग पर जोर दिया , इनमें दूर – संवेदन , भौगोलिक सूचना प्रणाली , जी . आई . एस . , ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जी.पी.एस) कम्प्यूटर मॉडलिंग तथा एक्सपर्ट सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक सूचना प्रबन्ध प्रणाली शामिल हैं।
4. SWOT विश्लेषण (SWOT Analysis)
अर्थ तथा संकल्पना (Meaning and Concept) – सकल गुणवत्ता प्रबन्धन में या किसी संगठन के प्रबन्धन में परिवर्तन करने के उद्देश्य से सर्वप्रथम उस संगठन की शक्तियों (Strengths) तथा कमजोरियों (Weaknesses) का मूल्यांकन करना आवश्यक होता है जिसके लिए अनेक प्रविधियों का उपयोग किया जाता है। SWOT विश्लेषण भी एक प्रकार की गुणात्मक प्रविधि है जो किसी संगठन (Organization) की शक्तियों (Strengths) कमजोरियों (Weakness) विकल्पों (Opportunities) तथा चुनौतियों (Threats) पर विशेष ध्यान आकर्षित करती है। SWOT विश्लेषण अपने नाम के अन्तर्गत है। अपने कार्यों को समाहित करती है।
S- Strengths (सामर्थ्य)
W – Weaknesses (कमजोरियाँ)
O – Opportunities (अवसर )
T – Threats (चुनौतियाँ)
SWOT विश्लेषण किसी संगठन के निदान की सहकारी प्रक्रिया है अर्थात् इस प्रक्रिया के अन्तर्गत समस्त व्यक्तियों के विचार – विमर्श को स्थान दिया जाता है। यह व्यक्तिगत रूप से की जाने वाली प्रक्रिया नहीं है । यह किसी संगठन की गुणात्मकता की जाँच करने के लिए चार प्रमुख क्षेत्रों को महत्व देता है।
(1) सामर्थ्य (Strengths) — इसके अन्तर्गत किसी संगठन के वे गुण आते हैं जो किसी संगठन को प्रभावशाली बनाने तथा सफल बनाने में सहायता करते हैं। इन गुणों के कारण ही संगठन की गुणात्मकता का आकलन किया जाता है । ये गुण ही संगठन को गुणात्मकता की श्रेणी में एक निश्चित स्थान प्रदान करते हैं ; जैसे— अनुभवी लोग उचित प्रबन्धन आदि।
(2) कमजोरियाँ ( Weaknesses ) – इसके अन्तर्गत किसी संगठन के वे गुण * सम्मिलित होते हैं जो उसे असफल बनाते हैं। इसके अन्तर्गत संगठन के प्रत्येक स्तर की कमियों को सूचीबद्ध किया जाता है । SWOT विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य इन कमियों का पता लगाकर उनमें उचित सुधार करना ही होता है।
आपदा प्रबंध सहायक कार्यक्रम ISRO
Conclusion
आज हम सब जाने की आपदा प्रबंधन क्या है और इसका फायदा और नुकसान क्या है? Disaster management in Hindi आपदा प्रबंधन करने से क्या क्या फायदा है और नहीं करने से कितना बड़ा नुकसान पहुंचा है। इन सारे सवालों का जबाब सायद आप सभी को मिल गया होगा। आपदा केवल प्राकृतिक ही नहीं, यह मानव जिव जात भी होता है। आपदा को हम सब समय रहते कम कर सकते है लेकिन पूर्ण रूप से इसे रोका नहीं जा सकता है। समय रहते इस पर यदि ध्यान नहीं दिया जाता है तो यह बहुत बड़ा विकराल रूप धारण कर लेता है, जिससे कि जान और माल की छती बहुत ही ज्यादा होता है। आपदा प्रबंधन होना अति आवश्यक है समय रहते हुए, समय खत्म होने के बाद किया गया कार्य विफल ही साबित होता है।यदि हमे आपदा को कम करना है तो प्राकृतिक को संतुलित रखना पड़ेगा, इसी के द्वारा हम आपदा को कम कर सकते हैं।
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