ई – अधिगम (E – Learning in Hindi)
कम्प्यूटरों की अद्भुत कार्यक्षमता तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सम्प्रेषण तकनीकी में होने वाली आश्चर्यजनक प्रगति ने आज हमें ऐसी शक्तियाँ,योग्यताएँ तथा क्षमताएँ प्रदान कर दी हैं कि हम इस दुनिया में ऐसा सब कुछ कर सकने का दम भरने लगते हैं जिनकी हम कुछ दिन पहले कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
शिक्षण और अधिगम का क्षेत्र भी जो कुछ दिन पहले कक्षा शिक्षण के सीमित दायरे में बँधा हुआ था, आज तकनीकी प्रगति से पूरी तरह अनुप्रेरित एवं प्रभावित है। कम्प्यूटर तथा उससे जन्मी नेटवर्किंग तथा वेब तकनीकी ने शिक्षण अधिगम की दुनिया में बहुत बड़ी क्रान्ति सी ला दी है।
शिक्षकों द्वारा दिये जाने वाले अनुदेशन तथा पाठ्य – पुस्तकों और अन्य मुद्रित सामग्री की विषय – सामग्री पर रहने की अपेक्षा आज का विद्यार्थी कम्प्यूटर के संग्रह भण्डारण में स्थित विषय – सामग्री तथा नेट प्रणाली से उपलब्ध विस्तृत ज्ञान भण्डार को केवल अपने ज्ञान एवं सूचना हेतु ही काम में नहीं लाता बल्कि उसे इनके माध्यम से ही ऐसी सभी अन्तर्क्रिया सम्बन्धी सुविधाएँ भी प्राप्त होती हैं जैसी कि वह वास्तविक कक्षा – कक्ष शिक्षण के दौरान प्राप्त कर सकता है।
इसलिए यह कहने में अब कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि आज की शिक्षा का भविष्य और कल की कक्षा अनुदेशन व्यवस्था बहुत कुछ सीमा तक ई – लर्निंग E learning in Hindi तथा अवास्तविक कक्षा – कक्षों की अवधारणा और कार्य पद्धति पर ही निर्भर होने जा रही है।
ई लर्निंग का अर्थ Meaning of learninig
ई – लर्निंग , इलेक्ट्रॉनिक लर्निंग पद का संक्षिप्तीकरण है। इलेक्ट्रॉनिक लर्निंग या अधिगम पद का सरल शाब्दिक अर्थ है, ऐसी लर्निंग या अधिगम जिसे किसी एक या अधिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, माध्यमों अथवा संसाधनों की सहायता लेकर सम्पादित किया जाता है।
ई – लर्निंग पद का यह काफी विस्तृत अर्थ है। अपने इस अर्थ में ऐसी किसी भी प्रकार की लर्निंग या अधिगम जिसे किसी भी एक या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और उपकरण जैसे माइक्रोफोन और श्रवण यन्त्रों अथवा आडियो – वीडियो टेप्स की सहायता से सम्पादित किया जाता है, ई – लर्निंग की संज्ञा दी जा सकती है। परन्तु अपने व्यवहारात्मक रूप में ई – लर्निंग को इतने अधिक व्यापक अर्थ में प्रस्तुत नहीं किया जाता बल्कि इसके प्रयोग क्षेत्र को आधुनिक शिक्षण – अधिगम तकनीकी (जिसमें कम्प्यूटर, नेटवर्किंग तथा मल्टीमीडिया टेक्नोलॉजी का सहयोग रहता है) के उपयोग तक ही सीमित रखा जाता है।
अपने इस रूप में ई – लर्निंग में सभी प्रकार के आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक सूचना एवं सम्प्रेषण माध्यम एवं साधनों (जैसे-सी. डी. रोम, डी.वी.डी, टेलीकान्फ्रेसिंग या चैटिंग इण्टरनेट तथा वेब सुविधाओं, ऑन लाइन लर्निंग , वेबसाइट पर उपलब्ध पाठ्य – पुस्तक, सहायक पुस्तक तथा सन्दर्भ सामग्री , वीडियो गेम पद्धति पर आधारित अनुरूपण सुविधाएँ, पूरी तरह नियोजित एवं संरचित ई-लर्निंग पाठ्यक्रमों तथा वेब ब्लोग्स आदि का सहयोगकर उपयोगी शिक्षण एवं अधिगम कार्य सम्पन्न किया जा सकता है।
इस तरह अपने इस व्यवहारात्मक एवं प्रयोगात्मक रूप में ई – लर्निंग को एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक जन्य लर्निंग या अधिगम का दर्जा दिया जा सकता है जिसमें मुख्य रूप से कम्प्यूटर और उनके द्वारा सुलभ नेटवर्किंग तथा वेब टेक्नोलॉजी और मल्टीमीडिया शामिल हैं।
यहाँ अब एक प्रश्न खड़ा हो सकता है कि क्या रिकॉर्ड किये गये ऑडियो और वीडियो टेप्स , सीडी और डीवीडी से प्राप्त अधिगम सुविधाओं को भी ई – लर्निंग की कटेगरी में रखा जा सकता है या नहीं?
इस प्रश्न का उत्तर ई – लर्निंग की ठोस अवधारणा में निहित है जिसमें इसका प्रयोग व्यावहारिक तौर पर आयेदिन हमारे द्वारा किया जाता है।इस तरह के व्यावहारिक प्रयोग के रूप में हम ई – लर्निंग के अन्तर्गत ई – मेल , ई – बैंकिंग , ई – बुकिंग तथा ई – कॉमर्स आदि शब्दावली का प्रयोग अपने जीवन के विविध क्षेत्रों में कर रहे हैं। अगर यह विचार करें कि इन सभी शब्दावलियों में उनकी प्रकृति और उपयोग को लेकर क्या कुछ समानताएँ हैं तो निम्न बातें निष्कर्ष के रूप में प्राप्त हो सकती हैं।
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1. सभी के पास कम्प्यूटर तथा लैपटॉप हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर सामग्री तथा उसे चलाने की आवश्यक कुशलतायें होनी चाहिए।
2. इण्टरनेट तथा वेब टेक्नॉलॉजी द्वारा प्रदत्त सुविधाओं से लाभ उठाने की अपेक्षित कुशलता होनी चाहिए।
इस प्रकार की ई – लर्निंग E learning in Hindi युक्त अधिगम सुविधाओं के सन्दर्भ में ही रोजेनबर्ग (2001) ने ई – लर्निंग पद को इस प्रकार परिभाषित किया ” ई – लर्निंग से तात्पर्य इण्टरनेट तकनीकियों के ऐसे उपयोग से है जिनसे विविध प्रकार के ऐसे रास्ते खुलें जिनके द्वारा ज्ञान और कार्यक्षमताओं में वृद्धि की जा सके।
(E – learning refers to the use of internet teppchnologies to deliver a broad array of solution that enhance knowledge and performance) इस प्रकार अगर ई – लर्निंग पद को हमारी दिन – प्रतिदिन की जिन्दगी में इसके उपयोग को लेकर कुछ व्यापक अर्थों में समझने का प्रयत्न किया जाए तो हम यह भली – भाँति कह सकते हैं कि ई – लर्निंग एक ऐसी आधुनिक तकनीक तथा सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का ऐसा रूप है जिसके अन्तर्गत कम्प्यूटर द्वारा प्रदत्त इन्टरनेट तथा वेब तकनीकी सेवाओं का उपयोग विद्यार्थियों को उसी तरह ऑनलाइन अधिगम अनुभव प्रदान करने के लिए किया जाता है। जैसा कि हमारी आम जिन्दगी में इन सेवाओं का उपयोग हमें ई मेल, ई- बैंकिंग, ई कॉमर्स, ई – बुकिंग के रूप में देखने को मिलता है।
ई – लर्निंग की प्रकृति एवं विशेषताएँ (Nature and Characteristics of E – Learning in Hindi)
ई – लर्निंग के वर्तमान स्वरूप के आधार पर इसकी प्रकृति एवं विशेषताएँ इस प्रकार हैं।
1. ई – लर्निंग या इलेक्ट्रॉनिक अधिगम पद का सम्बन्ध इस प्रकार के अधिगम से है जिसके सम्पादन में कम्प्यूटर सेवाओं की अनिवार्य रूप से आवश्यकता पड़ती है ।
2. ई – लर्निंग शब्दावली का प्रयोग कम्प्यूटर विज्ञान की इण्टरनेट तथा वेब तकनीकी पर आधारित ऑन लाइन लर्निंग तक ही सीमित रखा जाना चाहिए।
3. कम्प्यूटर आधारित अधिगम या कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की तुलना में ई – लर्निंग की अवधारणा कुछ अधिक व्यापक मानी जानी चाहिए।
4 , ई – लर्निंग की अवधारणा कुछ अन्य समरूप पदावलियों जैसे ऑन लाइन लर्निंग तथा ऑन लाइन एजूकेशन से कुछ अधिक व्यापक मानी जानी चाहिए क्योंकि इन दोनों का सम्बन्ध पूरी तरह से केवल मात्र वेब आधारित लर्निंग या अधिगम से है जबकि ई – लर्निंग में इस कार्य से कुछ आगे बढ़कर अनुवर्ती कार्य तथा अध्यापक और छात्रों के बीच आवश्यक सम्प्रेषण एवं अन्तः क्रिया बनाये रखने पर ध्यान दिया जाता है।
5. ई – लर्निंग या अधिगम को दृश्य – श्रव्य अधिगम , दूरवर्ती शिक्षा या दूरवर्ती अधिगम का पर्याय नहीं माना जाना चाहिए। यह सही है कि आज के दिन दृश्य – श्रव्य तथा बहुमाध्य तकनीकी तथा दूरवर्ती शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम कम्प्यूटर द्वारा सुलभ इण्टरनेट तथा वेव सेवाओं पर बहुत कुछ निर्भर है परन्तु इससे उन्हें ई – लर्निंग का पर्याय न मानकर ई – लर्निंग में सहायक परिस्थितियों या ई – लर्निंग प्रणाली की उप – प्रणालियों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
ई – लर्निंग पदावली का प्रयोग सभी प्रकार से ऐसी लर्निंग या अधिगम के लिए किया जाना चाहिए जिसे वेब आधारित अनुदेशन या इण्टरनेट आधारित सम्प्रेषण , जैसे – ई – मेल , ऑडियो एवं वीडियो कान्फ्रेंसिंग , मेल लिस्ट , लाइव चैट्स तथा टेलीफोन सेवाओं द्वारा सम्पादित किया जाता है । इस दृष्टि से किसी भी प्रकार की इण्टरनेट तथा वेब तकनीकी विहीन लर्निंग या अधिगम को ई – लर्निंग के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए । इस सन्दर्भ में सन्थीश कुमार एवं सागी जोहन ने लिखा है।
“यद्यपि कम्प्यूटर का उपयोग अनुदेशन तथा अधिगम हेतु किया जाता है फिर भी जिस अधिगम में वेब तकनीकी का उपयोग नहीं होता उसे ई – लर्निंग की संज्ञा नहीं दी जा सकती। सभी प्रकार के कम्प्यूटर आधारित अनुदेशन, जैसे- कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन, कम्प्यूटर प्रबन्धित अनुदेशन, समन्वित अधिगम प्रणाली, मल्टीमीडिया, इण्टरएक्टिव वीडियो, वरच्युअल रियलिटी, आटीफिसियल इंटैजीलैंस आदि जिन्हें इण्टरनेट द्वारा प्रदान नहीं किया जाता परन्तु अधिगम और अनुदेशन हेतु प्रयोग में लाया जाता है, किसी भी प्रकार से ई-लर्निंग में शामिल नहीं किये जा सकते हैं परन्तु इन सभी को अगर इण्टरनेट की सेवाओं का उपयोग कर अनुदेशन एवं अधिगम हेतु प्रयुक्त किया जाए तो फिर ये ई – लर्निंग का रूप ले सकते हैं।
ई – लर्निंग की आधुनिक अवधारणा (Modern Concept of E – Learning in Hindi)
अब तक यह स्पष्ट हो चुका है कि ई – लर्निंग की अवधारणा और प्रक्रिया का सम्बन्ध कम्प्यूटर तथा लैपटॉप द्वारा इण्टरनेट और वेब टेक्नॉलोजी के माध्यम से अधिगमकर्ताओं को अधिगम अनुभव प्राप्त करने से है। परन्तु अभी भी कुछ बातों में अस्पष्टता या शंका बनी रह सकती है, जैसे— अपने अधिगम हेतु कई बार अधिगमकर्ताओं द्वारा सीडी और डीवीडी का उपयोग किया जाता है जिनमें रिकॉर्ड की गई अधिगम सामग्री स्पष्ट होती है और जिसे सीडी या डीवीडी प्लेयर्स अथवा कम्प्यूटर की सहायता से चलाकर अधिगम के काम में लाया जाता है।
इसे ई – लर्निंग में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं ? आजकल मोबाइल लर्निंग (M learning ) का भी चलन है। इस तरह की लर्निंग में मोबाइल फोन, पीडीए (पाम डिवाइस असिस्टेंट) तथा एमपी -3 प्लेयर्स (जैसे आई पॉड एवं पॉड कास्टिंग) का प्रयोग किया जाता है। परिणामस्वरूप आज हम इस मोबाइल सर्विसेज की अति आधुनिक तकनीक का उपयोग ई – बैकिंग , ई – कॉमर्स तथा ई – लर्निंग में उसी तरह कर सकते हैं जैसे कि कम्प्यूटरों द्वारा सुलभ इण्टरनेट तथा वेब टेक्नॉलोजी द्वारा करते हैं।
क्या M – learning को भी ई – लर्निंग में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं?
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि सीडी तथा डीवीडी युक्त रिकॉर्ड की गई अध्ययन सामग्री का उपयोग जहाँ ई – लर्निंग तकनीक के प्रादुर्भाव से सम्बन्धित प्रथम अवस्था की ओर संकेत करता है तो मोबाइल लर्निंग तकनीक का उपयोग आगे की अवस्था की ओर संकेत करता है। इस प्रकार एक ई – लर्निंग का भूत है तो दूसरा उसका भविष्य।
नौलेज कोशेंट एजूकेशन ( Unknowledge Quotent Education ) के डाइरेक्टर भूमा कृष्णन ( 2007 ) ने ई – लर्निंग की चार अवस्थाएँ बतायी हैं— (1) मल्टीमीडिया काल ( 1984-1993 ) (2) वेब प्रारम्भिक काल ( 1994-99 ) (3) वेब तकनीक का नया दौर ( 2000-2005 ) तथा (4) वर्तमान समय में उपलब्ध मोबाइल लर्निंग। इस तरह संक्रमण कालों से गुजरती हुई ई – लर्निंग में वर्तमान समय में अनेक प्रारूप नजर आते हैं। जैसे—
1. सीडी और डीवीडी में निहित रिकॉर्ड की गई अधिगम सामग्री को इण्टरनेट और वेब टेक्नॉलोजी को काम में लाते हुए प्रयोग में लाना।
2. कम्प्यूटर तथा लैपटॉप के माध्यम से इण्टरनेट और वेब तकनीकी सेवाओं का पूरा फायदा उठाना।
3. आधुनिकतम मोबाइल लर्निंग टेक्नॉलोजी का वेब टीवी , सेल फोन, पेजर्स , पर्सनल डिजीटल असिस्टेंट , पाम तथा आईपॉड (Palm and i – pods) आदि के रूप में उपयोग करना।
अतः ई – लर्निंग को ऐसी लर्निंग या अधिगम की संज्ञा दे सकते हैं जिसे विकसित मल्टीमीडया एवं मोबाइल उपकरणों तथा इण्टरनेट एवं वेब तकनीकी दोनों प्रकार की सुविधाओं द्वारा कम्प्यूटर, लैपटॉप एवं मोबाइल उपकरणों के माध्यम से अधिगमकर्ताओं को भली – भाँति सुलभ कराया जा रहा है।
ई – लर्निंग के विभिन्न प्रकार के प्रारूप एवं शैलियाँ (Modes and Stages of E – Learning in Hindi)
ई – लर्निंग के विभिन्न प्रारूप इस प्रकार हैं……..
अवलम्ब अधिगम (Support Learning)
इस प्रकार के ई – लर्निंग प्रारूप का उपयोग शिक्षक और छात्र दोनों ही अपने – अपने शिक्षण और ई – लर्निंग कार्यों को बेहतर बनाने हेतु कर सकते हैं।
मिश्रित अधिगम (Balanced Learning)
ई – लर्निंग के इस प्रारूप में परम्परागत तथा सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी पर आधारित दोनों ही प्रकार की तकनीकियों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता है । इस प्रारूप को अपनाने में कार्यक्रम और गतिविधियों को इस प्रकार नियोजित और क्रियान्वित किया जाता है कि परम्परागत कक्षा शिक्षण और ई – लर्निंग आधारित अनुदेशन दोनों को उचित प्रतिनिधित्व देकर दोनों के ही लाभ शिक्षण – अधिगम हेतु भली – भाँति उठाये जा सकें ।
पूर्णरूपेण ई – लर्निंग (Complete e – learning in Hindi)
इस प्रकार के अधिगम प्रारूप में परम्परागत विद्यालय शिक्षा की तरह कक्षा – कक्षों , विद्यालय तथा उनमें मिलने वाले सजीव पारस्परिक अन्तः क्रिया युक्त शिक्षण अधिगम वातावरण का कोई अस्तित्व नहीं होता । विद्यार्थियों के सामने पूरी तरह संरचित एवं निर्मित ई – लर्निंग कोर्स तथा अधिगम सामग्री होती है जिन्हें वे स्वतन्त्र रूप से अपनी – अपनी अधिगम गति से ग्रहण करने का प्रयत्न करते हैं । उनकी बहुत सारी अधिगम गतिविधियाँ ‘ ऑन लाइन ‘ ही सम्पन्न होती हैं । परन्तु वे अपनी आवश्यकतानुसार उन सीडी रोम तथा डीवीडी की भी सहायता ले सकते हैं जिनमें वांछित अधिगम सामग्री उचित सूचनाओं या अधिगम पैकेज के रूप में संग्रहीत की गई हों । इस प्रकार की ई – लर्निंग मुख्य रूप से दो सम्प्रेषण शैलियों का उपयोग करती हैं—
एसेंक्रोनस सम्प्रेषण शैली (Aynchronous Communication Style)
इस प्रकार की सम्प्रेषण प्रणाली में अधिगम कोर्स सम्बन्धी सूचनाएँ तथा अधिगम अनुभव अधिगमकर्ता को ई – मेल द्वारा प्रेषित किये जाते हैं या उसे वेब पेज , ब्लोग्स , विकीज और रिकॉर्ड किये गये सीडी रोम एवं डीवीडी के रूप में उपलब्ध रहती है । इस प्रकार के सम्प्रेषण हेतु अध्यापक और छात्र की समय विशेष में एक साथ उपस्थिति आवश्यक नहीं होती । अध्ययन सामग्री पहले से ही मौजूद रहती है ।
इसे छात्र अपनी इच्छानुसार किसी भी समय अपनी स्वगति से अध्ययन करने हेतु काम में लाते हैं । इसमें शिक्षक छात्र के मध्य प्रत्यक्ष अन्तः क्रियात्मक सम्प्रेषण शैली का अभाव रहता है और learningसीडी तथा डीवीडी के रूप में संकलित अध्ययन सामग्री पर आधारित ई – लर्निंग में तो उस अप्रत्यक्ष अन्तःक्रिया का भी अभाव रहता है जो इण्टरनेट द्वारा छात्र और अध्यापक के बीच अपनी सुविधानुसार अलग अलग समय में सम्प्रेषण करते हुए पायी जाती है।
सेंक्रोनेस सम्प्रेषण शैली (Synchronous Style)
इस प्रकार के सम्प्रेषण शैली में शिक्षण अधिगम हेतु आवश्यक सीधा शिक्षक – शिक्षार्थी सम्प्रेषण इन्टरनेट पर ऑन लाइन चैटिंग तथा ऑडियो – वीडियो कान्फ्रेंसिंग के रूप में होता रहता है । इस कार्य हेतु शिक्षक और शिक्षार्थों दोनों को ही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के सम्पादन हेतु आवश्यक सम्प्रेषण करने के लिए एक समय विशेष में एक साथ इन्टरनेट पर उपस्थित रहना होता है।
इस प्रकार के सम्प्रेषण में परम्परागत कक्षा शिक्षण की भाँति प्रत्यक्ष अन्तः क्रिया करने के यथोचित प्रयत्न किये जाते हैं । यह आमने – सामने चल रही कक्षा शिक्षण जैसी अन्तः क्रिया न कर पाने के बावजूद इन्टरनेट सेवाओं की मदद से किया जाने वाला सेंक्रोनस सम्प्रेषण काफी सीमा तक शिक्षक और शिक्षार्थी को अप्रत्यक्ष रूप से एक साथ एक – दूसरे को आमने – सामने लाकर शिक्षण अधिगम गतिविधियों में सम्पन्न रखने का बेहतर प्रयास करता है।
इस प्रकार की ई – लर्निंग द्वारा अपने विभिन्न प्रारूपों और शैलियों के माध्यम से ! परम्परागत कक्षा शिक्षण में सहायक बनने, भागीदारी करने तथा उसका विकल्प प्रस्तुत करने सम्बन्धी कई प्रकार की भूमिकाएँ निभाई जा सकती हैं।
ई – लर्निंग की उपयोगिता (Advantage of E – Learning in Hindi)
ई – लर्निंग व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों स्तरों पर अधिगमकर्ताओं के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती है, जैसे-
1. जिन अधिगमकर्ताओं के पास परम्परागत कक्षा शिक्षण से लाभ उठाने हेतु न तो हो सकता है । अपने व्यवसाय को करते हुए आसानी से किसी भी प्रकार का अध्ययन किया जा सकता है । यहाँ समय तथा दूरी बाधा नहीं बनती है।
2. ई – लर्निंग अधिगमकर्ताओं को अपनी जरूरतों , स्थानीय आवश्यकताओं , दक्षता तथा मानसिक स्तर के अनुरूप अनुदेशन तथा अधिगम अनुभव प्रदान करने का सामर्थ्य रखती है।
3. ई – लर्निंग द्वारा उसी प्रकार की बेहतर अध्ययन सामग्री छात्रों को प्रदान की जा सकती है जैसी कि परम्परागत कक्षा शिक्षण में संलग्न छात्रों को प्राप्त होती है । दुनिया की सबसे बेहतर अध्ययन सामग्री, ज्ञान भण्डार तथा ज्ञानार्जन के अवसर जितनी अच्छी तरह से अनगिनत अधिगमकर्ताओं को एक साथ ई – लर्निंग के माध्यम से प्राप्त हो सकते हैं उतने किसी भी सुसंगठित एवं औपचारिक शिक्षा प्रणाली से प्राप्त नहीं हो सकते।
4. ई – लर्निंग E learning in Hindi के माध्यम से सभी अधिगमकर्ताओं को समान अधिगम एवं प्रशिक्षण के अवसर प्राप्त हो सकते हैं चाहे वे किसी भी स्थान , प्रदेश , संस्कृति , प्रान्त तथा देश से अपना सम्बन्ध रखते हों और उनके अधिगम ग्रहण करने का तरीका चाहे जो भी हो।
5. देश और दुनिया के किसी कोने में बैठे हुए अनगिनत अधिगमकर्ताओं को ई – लर्निंग उच्च कोटि का अनुदेशन तथा अधिगम अनुभव प्रदान करने की क्षमता रखती है और इस कार्य हेतु किसी भी प्रकार के अभाव जैसे प्रशिक्षित तथा अनुभवी अध्यापकों का उपयुक्त संख्या में उपस्थित न रहना, छात्रों के कक्षा शिक्षण हेतु विद्यालयों एवं संसाधनों की कमी आदि का यह कभी शिकार नहीं होती।
6. ई – लर्निंग का मुख्य आकर्षण तथा विशेषता उसके लचीलेपन को लेकर है। यह किसी भी प्रकार के माध्यम (कम्प्यूटर , सीडी , डीवीडी , मोबाइल फोन) , पाठ्यक्रम ( मॉड्यूल या छोटे – छोटे पदों में संग्रहीत विषय – वस्तु ) तथा ग्रहण करने के तरीके ( जिस समय शिक्षक द्वारा दी जा रही हो अथवा सुविधानुसार कभी भी ) द्वारा छात्रों को उचित रूप से उपलब्ध हो सकती है।
7. ई – लर्निंग का उपयोग छात्रों की रुचि और अभिप्रेरणा को उनके अधिगम में अच्छी तरह बनाये रखने में काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है क्योंकि ई – लर्निंग उनके अधिगम अनुभव प्राप्त करने के अवसरों में पर्याप्त विभिन्नता ला सकती है।
8. ई – लर्निंग अपने विविध प्रारूपों तथा प्रदान करने के विभिन्न तरीकों को लेकर अध्यापक और छात्र के बीच ऑन – लाइन, ऑफ – लाइन तथा प्रत्यक्ष अन्तःक्रिया सम्पन्न करने की क्षमता रखती है और इस दृष्टि से परम्परागत कक्षा शिक्षण का उचित विकल्प प्रस्तुत करने में इसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता।
9. ई – लर्निंग अपनी ऑडियो – वीडियो रिकॉर्डिंग टेक्नोलॉजी के उपयोग को लेकर छात्रों के सामने ऐसे अवसर उपस्थित करती है कि वे अपनी किसी भी रिकॉर्ड की गई अधिगमसामग्री की अपनी इच्छानुसार कितनी भी बार पुनरावृत्ति करें , किसी भी अंश पर अपनी रुकें या न रुकें । इच्छानुसार
10. ई – लर्निंग में छात्रों द्वारा किये गये अधिगम की उपयुक्त जाँच और मूल्यांकन करने के उपयुक्त अवसर प्रदान करने का समुचित प्रावधान रहता है । यह जाँच स्वयं अधिगमकर्ता द्वारा भी की जा सकती है और अध्यापकों तथा साथी छात्रों द्वारा भी समय पर उचित पृष्ठपोषण प्राप्त होते रहना भी ई – लर्निंग में अच्छी तरह सम्भव है । यह उन्हें समुचित निदानात्मक तथा उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करने में भी काफी सहायक सिद्ध हो सकती है।
11. गेमिंग तकनीक तथा अनुरूपित शिक्षण के अपने विशेष प्रारूपों के माध्यम से ई लर्निंग e learning in Hindi शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया को ऐसा जीवन्त रूप प्रदान करने की क्षमता रखती है जिसकी झलक हमें प्रायः परम्परागत कक्षा शिक्षण में ‘ करके सीखना’ , ‘खेल – खेल में शिक्षा’ आदि शिक्षण सूत्रों को अपनाने में प्राप्त होती है।
ई – लर्निंग के दोष (Disadvantages of E – Learning in Hindi)
ई – लर्निंग की कमियों को निम्न प्रकार से उल्लेखित किया जा सकता है जिसके कारण ई – लर्निंग की आलोचना की जाती है
1. ई – लर्निंग में छात्रों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे कम्प्यूटर , इन्टरनेट आदि का उपयोग करने में कुशल हों । अपेक्षित कुशलता के अभाव में ई – लर्निंग द्वारा छात्रों को वांछित लाभ प्राप्त नहीं हो सकता।
2. ई – लर्निंग के लिए यह आवश्यक है कि उसके सभी अधिगमकर्ताओं को कम्प्यूटर, लैपटॉप, इन्टरनेट तथा वेब सुविधाओं को इच्छानुसार उपयोग में लाने की सुविधा उनके अधिगम स्थानों पर प्राप्त हो। इस प्रकार की सुविधाओं का व्यक्तिगत तौर पर ही नहीं अपितु विद्यालय स्तर पर भी अभाव रहने के कारण ई – लर्निंग को प्रयोग में लाने की कठिनाइयाँ नजर आती हैं।
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3. हमारे अधिकतर विद्यालयों में न तो पर्याप्त रूप में ऐसे साधन ही हैं करने के लिए वे उचित रूप से तैयार ही हैं जिनसे ई – लर्निंग के माध्यम से उपयुक्त अनुदेशन तथा अधिगम की व्यवस्था की जा सके । ऐसी अवस्था में वर्तमान विद्यालय व्यवस्था में ई लर्निंग के प्रतिष्ठित होने के बारे में सोचा ही कैसे जा सकता है।
4. ई – लर्निंग से अवगत होने और उसके उपयोग हेतु आवश्यक कुशलताएँ अर्जित करने हेतु शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों (पूर्व सेवाकालीन या सेवाकालीन) में कोई उचित प्रावधान नहीं है। फलस्वरूप शिक्षक वर्ग में ई – लर्निंग को प्रयुक्त करने का ने तो दिखता है न उसको काम में लाने के लिए आवश्यक उत्साह तथा रुचि ही दिखती है।
5. ई – लर्निंग में छात्रों को अन्तः क्रिया के अवसर नहीं मिलते इसलिए ये छात्रों के उचित व्यक्तिगत विकास में अपेक्षित सहयोग नहीं कर पाता।
6. छात्रों, अध्यापकों, माता – पिता तथा समाज के अन्य व्यक्तियों एवं वर्गों ने ई – लर्निंग के प्रति जो नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया हुआ है वह भी ई – लर्निंग के प्रसार एवं आयोजन लाने वालों की संख्या अधिक हो। इसके अभाव में बेहतर सामग्री एवं प्रदान करने के बेहतर में बाधा है। कम खर्चे में बेहतर अधिगम व्यवस्था तभी बन सकती है जबकि इसे उपयोग में साधनों का सही आयोजन नहीं किया जा सकता।
आज हम सब शिक्षा का सार्वभौमिककरण कर सबके लिए शिक्षा का नाम बुलंद करते है तथा सभी को शिक्षा के समान अवसरों की बात करते है, तो इस बात मे भी पूरी सच्चाई है कि इसके लिए ई लर्निंग जैसा सशक्त माध्यम चाहिए जो नियमित कक्षा शिक्षण और परंपरागत विद्यालयों व्यवस्था का उचित विकल्प बन सके।
भारत जैसे विकासशील देशों के लिए तो इस प्रकार की वैकल्पिक व्यवस्था की नितान्त आवश्यकता है। परंतु अधिक समझदारी इस बात मे है कि हम सब दोनों प्रकार की अव्यवस्थाओं, परंपरागत तथा ई लर्निंग आधारित शिक्षा को साथ साथ एक दूसरे को सहयोगी बनाकर काम में लाने का प्रयत्न करे ताकि दोनों व्यवस्थाओं की अच्छाईयों से पूरा पूरा फायदा लिया जा सके।
अवास्तविक कक्षा (Virtual Classroom) E learning in Hindi
ई लर्निंग एक ऐसे सामर्थ्यवान अधिगम प्रणाली का प्रतिनिधित्व करती है जिसे परंपरागत कक्षा अनुदेशन का विकल्प माना जाता है। परंतु वास्तविकता यह है कि इ लर्निंग वास्तविक कक्षा अनुदेशन व्यवस्था का पूर्ण रूप विकल्प नहीं हो सकती हैं। क्योंकि इसमें उन वास्तविक अनुभव का नितांत अभाव रहता है जो औपचारिक शिक्षण अधिगम के दौरान प्राप्त होते हैं, इस अभाव की पूर्ति हेतु एक और नवाचार द्वारा पूरी की जा सकती है जिससे वास्तविक कक्षा कक्षाओं की व्यवस्था का नाम दिया जाता है।
अवास्तविक कक्षा क्या है? (What are Virtual classroom)
वास्तविक कक्षा कक्ष एक ऐसा वेब आधरित माध्यम या शिक्षण अधिगम वातावरण है। जो गंतव्य स्थान पर जाए बिना ही आपको वहां चल रहे प्रशिक्षण संबंधित गतिविधियों में भागीदारी निभाने में सक्षम बनाता है। आप व्याख्यान सुनते हो, प्रयोगशाला संबंधित कार्यों में हिस्सा लेते, हो प्रश्न पूछते हो, तथा ठीक वैसे ही बदले में पृष्ठ पोषण प्राप्त करते हो, जैसे कि मानव आश्रम प्राकृत कक्षा कक्ष में बैठकर अनुदेशन ग्रहण कर रहे हो।
अंतर केवल इतना होता है कि यहां पर आप अपनी सुविधा अनुसार उस जगह डेक्सटॉप पर विराजमान होकर यह सब कुछ करते है। जहां आपको इंटरनेट तथा फोन कनेक्शन की सुविधाएं प्राप्त हो इससे आपके प्रशिक्षण स्थल तक जाने से संबंधित समय तथा पैसे जैसे सभी बातों की पर्याप्त बचत होती है।
अतः अवास्तविक कक्षा कक्ष से अभिप्राय ऐसा कक्षा कक्षाओं से है जिसमें आधुनिक कंप्यूटर तथा संप्रेषण टेक्नोलॉजी उक्त संसाधनों जैसे इंटरनेट, ईमेल, ऑनलाइन चैटिंग, वर्ल्ड वाइड वेब, सीडी रोम, डीवीडी, टेली कॉन्फ्रेंसिंग, तथा वीडियो ऑन कॉन्फ्रेंसिंग इत्यादि का प्रयोग करके नियमित कक्षाओं की परंपरागत शैक्षिक मूल्यांकन तथा प्रशासनिक गतिविधियों का आंशिक या पूर्ण रूप से स्थान लेने का प्रयत्न किया जाता है।
Conclusion
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