ऋतुराज वसंत में प्राकृति की छटा
हेलो दोस्तों आज हम सब बात करेंगे basant ritu par chota sa nibandh कैसे लिखते है। यहाँ पर आप सभी के लिए basant ritu par nibandh को लिखने के लिए बहुत सारे टॉपिक को कवर किया गया है।
कोकिल के मधुर रस पगे कर्णप्रिय शब्द ने ऋतुराज वसन्त के आने की सूचना संसार को दी । वृक्षों ने सुन्दर सुन्दर पल्लवों से अपने शरीर को आच्छादित कर लिया है। वे प्रसन्नता में झूमते हुए दृष्टिगोचर होने लगे, मानो में ऋतुराज के आगमन के आनन्द में आनन्द विभोर हो उठे हों। शीत ने वसन्त के आगमन की खुशी में अपना प्रकोप कुछ कम कर दिया है। सरसों ने वासन्ती साड़ी धारण कर ली, पक्षी अपनी अटपटी बोलियों से वातावरण की रसमयता में वृद्धि करने लगे । आम के वृक्षों पर लदा बौर महक उठ , पवन उस भीनी एवं मधुररसपगी सुगन्ध को चारों ओर बिखराने लगा। कितना सरस एवं सुहावना मौसम है यह ! न अधिक ठण्डक और न अधिक गर्मी।
वन उपवन की सुंदरता basant ritu par chota sa nibandh
सम्पूर्ण प्रकृति एक विचित्र आभा तथा सुन्दरता से दमक उठी है । समस्त जड़ तथा चेतन में नवीन जीवन का संचार हो गया । आम के बौरों पर मधु के लोभी भँवरे बार – बार मंडराने लगे। क्षणमात्र के लिए प्रकृति की मनोहारिणी छवि का दर्शन कीजिए , कितना मनमोहक दृश्य है? आह ! कैसी चित्त को लुभाने वाली सुन्दरता है ? शीतल पवन ने तो कोकिल को इतना मस्त बना दिया है कि वह पंचम स्वर में राग आलाप कर वातावरण में मिठास घोल रही है।
मधुमक्खी इधर – उधर उड़कर मद में डूबी हुई है। विविध पक्षी संगीतज्ञ की भाँति सारे उपवन को संगीतमय बना रहे हैं। चन्द्रदेव अपनी शीतल किरणों से मन को लुभा रहे हैं। तारों की छटा अनुपम है। मुर्दादिलों में जान आ गई। वनस्थली में लाल, पीले, नीले, हरे, सफेद आदि विभिन्न रंगों के पुष्पों को देखकर मन – मयूर नृत्य करने लगा है।
पलाश ने तो लाल – लाल पुष्पों से अपने सम्पूर्ण शरीर को सजा लिया है। कितना मादक दृश्य है ? वसन्त ऋतु का महत्त्व साधारण मनुष्यों के अतरिक्त कवियों के लिए और भी अधिक है। कवि प्रकृति की मनोहर गोद में अपनी भावनाओं को मुखरित करते हैं। वसन्त ऋतु में उनकी कविता – कामिनी अपनी पूर्ण सज धज के साथ निकलती हैं। प्रकृति – वर्णन में बसन्त का ही स्थान सर्वोपरि है।
वसन्त में मनुष्य के मन में मादकता उत्पन्न करने की अद्भुत शक्ति है। इस सम्बन्ध में ठाकुर गोपालशरणसिंह की वसन्त – सुषमा की अग्र पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं। ” बदल गयी है प्रकृति , समय ने भी अब पलटा खाया है फिर से सभी वनस्पतियों में नव जीवन सा आया है। फलों के मिस लतिकाएँ सब मंद मंद मुसकाती पल्लव रूपी पाणि हिलाकर मन के भाव बताती हैं। ” हैं कितनी भावपूर्ण है यह कविता! वसन्त में ही यह अनुपम शक्ति है कि वह कवियों के मस्तिष्क में अपने सुरम्य वातावरण में नवीन नवीन कल्पनाओं का सूत्रपात करता है। कृषकों के हृदय में नवीन आशाएँ एवं उमंगें उठने लगी हैं।
सरसों के पीले रंग को देखकर उनके मन तथा प्राण पुलकित हो उठे हैं। उनकी स्त्रियाँ कोयल की कूक के साथ आम और जामुन के बगीचों में अपने सुरीले कण्ठ से लोकगीतों की सुन्दर पंक्तियों को दुहराने लगी हैं। शीतल वायु के झोकों से बौर तथा कोपलों से लदे हुए वृक्ष थिरकने लगे हैं। छोटे – छोटे शिशु अपने शरीर को शीतल करने के लिए बाहर आकर खड़े हो गये हैं।
होली का त्योहार
इसी वसन्त ऋतु (basant ritu par chota sa nibandh) बसंत ऋतु पर निबंध में हिन्दुओं का पवित्र पर्व होली का उत्सव मनाया जाता है। इस अवसर पर भाँति – भाँति के लोकगीत गाये जाते हैं। ढप , मृदंग तथा ढोलक आदि वाद्यों के साथ वृद्ध तक नाचने – कूदने लगते हैं , बालक अपनी पिचकारियों में रंग का अभाव होने पर पानी ही भरकर लोगों पर उछालने लगते हैं। वसन्त की शोभा एवं छटा तो वर्णनातीत है।
गुलाब की नई कलियों पर भौंरे मँडरा रहे हैं मानो उसकी नुकीली काँटेदार कलियों पर सहज अधिकार पाने में असमर्थ होकर वे सुरीली तान सुना रहे हैं। गुलाबों के फूल भौरों के द्वारा इतने सम्मानित होने के कारण ऐसे फूल रहे हैं कि अपने अंगों में फूले नहीं समाते।
उपसंहार
वसन्त ऋतु में प्रातःकाल घूमने से शरीर सुन्दर , बलिष्ट तथा पुष्ट होता है। जो मनुष्य प्रातःकाल वसन्त की पवन का सेवन करते हैं वे बीमारियों का शिकार नहीं हो पाते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि वसन्त ऋतु सब ऋतुओं की रानी है ।basant ritu par chota sa nibandh इस ऋतु में सभी मनुष्य आनन्द में निमग्न रहते हैं तथा सर्वत्र नवीन आभा तथा सुन्दरता के दर्शन होते हैं। यथार्थ में ऋतुओं की रानी वसन्त मादकता तथा उल्लास का संचार करने वाली है। प्राणी में नई चेतना जाग्रत करने वाली है। प्रसन्नता तथा उमंग को घोलने वाली सरस ऋतु है।