rail yatra par nibandh in hindi मेरी रेल यात्रा पर निबंध हिंदी में

भारतीय रेल दुनिया की सबसे बड़ी रेल लाइन्स मेसे एक हैं, यहाँ पर करोडो लोग प्रत्येक दिन यात्रा करते हैं। रेल यात्रा लब्मी दुरी के साथ नजदीक में भी करना उतना ही आसान होता है। रेल यात्रा आरामदायक और सुबिधाजनक भी होता है। क्यों की इसमें किसी भी तरह का दिकत नहीं होता है। यात्रा करने के दौरान खाने से लेकर सोने तक का सुबिधा होता है। आज हम रेल यात्रा पर निबंध (rail yatra par nibandh in hindi) के जानकारी आपको देंगे।

 

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परीक्षाएँ समाप्त हो चुकी थीं। एक दिन प्रातःकाल अपने छोटे भाई राजू कुमार राज के साथ ऊपर वाले कमरे में बैठा हुआ मैं रामचरितमानस का आनन्द ले रहा था तभी द्वार पर किसी व्यक्ति ने आवाज दी और नीचे आकर मैंने देखा मेरा मित्र पल्लव खड़ा है। उसके हाथ में एक पत्र है और वह बहुत ही प्रसन्न है। उस पत्र को हाथ में थमाता हुआ बोला- देहरादून से भाई साहब का बुलावा आया है, चलोगे? ” और उसकी इस बात को सुनकर मैं आनन्दित हो उठा।

पत्र को पढ़कर मैंने देखा, उसमें लिखा था अब तुम्हारी छुट्टियाँ हैं, तुम मित्र को अपने साथ लेकर मेरे पास देहरादून चले आओ। “पत्र की इन पंक्तियों को पढ़कर मेरा मन आनन्द से झूम उठा, स्वीकृति स्वरूप ‘ हाँ ‘ मेरे मुख से सहसा ही निकल गया। मेरी इस ‘ हाँ ‘ को सुनकर मेरा से मित्र अपने घर लौटा और मैं ऊपर अपने कमरे में । पल्लव के भाई देहरादून में एक उच्च सरकारी पद पर थे। सोचा , देहरादून की यात्रा आनन्दप्रद रहेगी। इससे पूर्व देहरादून मैंने कभी देखा भी न था।

यथार्थ में उस समय मेरी प्रसन्नता का कोई ठिकाना न था। इसलिए दूसरे दिन सायंकाल ‘ देहरादून एक्सप्रेस ‘ से यात्रा करने का मैंने निश्चय किया और रजनीकान्त को पल्लव के घर भेज अपने इस निर्णय से भी अवगत करा दिया।

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रजनीकान्त के द्वारा अपने मित्र की स्वीकृति पाकर अपने लिए आवश्यक सामान मैंने एक बक्स में सजाया। देहरादून जाने की प्रसन्नता में फूला नहीं समा रहा था। उस दिन की रात मैंने यात्रा के स्वप्न देखते ही में इधर – उधर और व्यतीत की और दूसरे दिन की संध्या तक का समय शहर चहलकदमी करके बिताया। ठीक छः बजे मैं और पल्लव स्टेशन जा पहुँचे। वहाँ पहुँचकर हमने देखा, टिकट खरीदने वालों की एक लम्बी कतार हम दोनों ठगे से रह गये।

हमारे मन में निराशा के भाव उमड़ने लगे। उस समय हम यह सोच रहे थे, शायद हम लोगों को टिकट न मिल सकेगा, मगर किसी प्रकार जब हमें टिकट मिल गया तो हमारा मन – मयूर नाथ उठा। उस समय प्लेटफॉर्म पर अपार भीड़ थी। चारों ओर रंग – बिरंगे कपड़ों में सुसज्जित यात्री दृष्टिगोचर हो रहे थे। वृद्ध – बालक , स्त्री – पुरुष सभी गाड़ी की प्रतीक्षा में थे।

वास्तव में उस समय प्लेटफॉर्म का दृश्य बहुत रोचक था। लोग प्रतिपल गाड़ी के विषय में सोच रहे थे। स्टेशन, फल, अखबार, पान, बीड़ी, बेचने वालों तथा यात्रियों की तरह – तरह की आवाजों से गूंज रहा था।

 

विविध फैशन वाले स्त्री – पुरुषों की वहाँ पर भीड़ थी। ऊँची ऐड़ी की सैण्डिल पहने अनेक स्त्रियाँ अपने – अपने पतियों के साथ इधर – उधर घूम रही थीं। ग्रामीण स्त्रियाँ हाथ भर का घूँघट निकाले चुपचाप बैठी थीं। कुछ लोग सिगरेट का धुआँ उड़ा रहे थे, कुछ ग्रामीण अपना चिलम में ही आनन्द ले रहे थे, कोई अखबार पढ़ रहा था, कोई पान खा रहा था तथा कोई बिस्तर पर लेटा हुआ था। कुछ ही देर पश्चात् गाड़ी आने की घण्टी बजी। सब लोग तुरन्त चौफन्त्रे हो गये। दो तीन मिनट बाद ही गाड़ी भक – भक करती हुई प्लेटफॉर्म पर आ गई। गाड़ी के आते ही सब लोगों में भगदड़ सी मच गई।

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यात्रियों का गाड़ी में घुसना और उससे बाहर निकलना आरम्भ हुआ उतरने वाले यात्री में अभी उत्तर भी नहीं पाये थे कि लोग उन्हें पीछे ढकेलते हुए डिब्बों में प्रवेश करने लगे। rail yatra par nibandh in hindi  शक्तिशाली लोग निर्बलों को ढकेलते हुए अधिक स्थान प्राप्त करने के प्रयास में लगे थे। कुछ बेचारे गठरी बने हुए थोड़ी जगह में बैठ गये थे। हमको यह देखकर अत्यन्त ही दुःख हुआ। हमने सोचा क्या समाज गरीबों और कमजोरों को इसी प्रकार अत्याचार की चक्की में पीसता रहेगा। क्या समाज में इन लोगों को कोई स्थान प्राप्त नहीं है ?

प्रभु की इच्छा एवं अत्यधिक संघर्ष से हमें भी डिब्बे में खड़े होने भर को जगह मिल गई। गाड़ी जब चलने लगी तो लोग खिड़कियों से झाँक – झोंक कर बाहर का दृश्य देखने लगे। हम कभी बाइर की छटा का आनन्द लेते थे और कभी मनुष्यों के समूह को निहारते थे । उनमें कुछ प्रसन्न थे और कुछ उदास कोई अपने प्रियजनों से मिलने जा रहा था तथा कोई उनसे बिछुड़ रहा था। इस समय यात्रियों के मन में से ऊँच – नीच का भाव निकल कर उनसे बहुत दूर जाकर खड़ा हो गया था।

गाड़ी सभी बड़े स्टेशनों पर रुकती हुई जा रही थी और इन स्टेशनों पर बिकने वाली विविध वस्तुओं का रसास्वादन करते हुए हम भी गाड़ी में बैठें प्रतिपल देहरादून की ओर अग्रसर हो रहे थे। हम उन स्टेशनों एवं नगरों को भौगोलिक स्थिति से भी परिचित होते जा रहे थे। उनमें से कुछ नगर अधिक प्रसिद्ध थे और कुछ कम प्रसिद्ध। गाड़ी बरेली, मुरादाबाद, हरिद्वार आदि अनेक प्रसिद्ध नगरों एवं तीर्थों को पार करती हुई अपने लक्ष्य देहरादून की ओर बढ़ रही थी।

मार्ग में पहाड़ों की अनेक गुफायें भी हमने देखीं। इन प्राकृतिक दृश्यों को देखकर हम बहुत प्रसन्न थे और अन्त में देहरादून के स्टेशन पर पहुँचकर तो हमारी प्रसन्नता का पारावार न रहा। यहीं पर हमारी यात्रा का अन्त था। जब हम गाड़ी से उतरे तो हमारे आनन्द की कोई सीमा न थी। वहाँ की मनोहारिणो प्राकृतिक छटा के दर्शन हमें स्टेशन पर ही हो रहे थे और घर की ओर जाते हम सोच रहे थे प्रकृति के सौन्दर्य के सम्बन्ध में, जो देहरादून में सर्वत्र ही बिखरा पड़ा है।

उपसंहार 

आज भी इस यात्रा के मधुर संस्मरण मुझे आनन्द विभोर कर देते हैं तथा सहसा ही निम्न ध्वनि मुख से निकल पड़ती है — rail yatra par nibandh in hindi  “सैर कर दुनियाँ की गाफिल जिन्दगानी फिर कहाँ। यथार्थ में सुख – दुःख से भरपूर यात्रा मानव जीवन के विकास तथा उत्थान के लिए अपेक्षित है। यात्रा से नवीन अनुभव, ज्ञान एवं विश्व का सौन्दर्य बोध होता है।

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