उपभोक्ता अर्थशास्त्र एवं गृह विज्ञान में पारस्परिक संबंध
(Relationships Between Consumer Economic and Home science )
उपभोक्ता अर्थशास्त्र एवं गृह विज्ञान के बीच घनिष्ठसंबंध है। दोनों के संबंध को समझने के लिए इसके परिभाषा को पढ़ना होगा।
उपभोक्ता अर्थशास्त्र से आप क्या समझते है? उपभोक्ता अर्थशास्त्र के महत्व पर प्रकाश डालिए।
लेडी इरविन कॉलेज के गृह विज्ञान संस्थान द्वारा प्रस्तुत परिभाषा के अनुसार
“गृह विज्ञान वह व्यवहार ज्ञान है जो अपने अध्ययन कर्ताओं को सफल परिवारिक जीवन व्यतीत करने, सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को हल करने व सुखमय जीवन यापन कराने का ज्ञान कराती है।”
इस प्रकार गृह विज्ञान परिवारिक साधनों के उचित प्रयोग एवं व्यवस्थापन द्वारा अधिकतम सब जीवन स्तर की प्राप्ति का विज्ञान है
उपभोक्ता अर्थशास्त्र का महत्व Upbhokta Arthshastra ka mahatva, (importance of consumer economic)
उपभोक्ता अर्थशास्त्र क्या है? Upbhogta Arthshastra kya hai (what is Consumer’s economic)
अर्थशास्त्र की परिभाषा के अनुसार-“
उपभोक्ता अर्थशास्त्र अर्थशास्त्र की वह शाखा है जो भोक्ता के सीमित साधनों द्वारा असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्राप्त करता है।”
उपभोग एवं उपभोक्ता upbhog aur upbhokta consumption and consumer
सामान्य उपभोग शब्द का प्रयोग खाने-पीने के अर्थ में किया जाता है, किंतु अर्थशास्त्र में उपभोग शब्द का प्रयोग अधिक व्यापक विस्तृत एवं तकनीकी रूप से किया जाता है। अर्थशास्त्र में उपभोग को एक मानवीय क्रिया, महत्वपूर्ण आर्थिक क्रिया तथा अर्थशास्त्र के एक विभाग के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। जेबन्स ने उपभोग को सभी आर्थिक क्रियाओं का आधार कहां है!
उपभोग की परिभाषाएं meaning of conjunction Upbhog ki paribhasay
उपभोग शब्द एवं उपभोग की अवधारणा को विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। इनमें से कुछ परिभाषा इस प्रकार से दी गई है…
तो जानते हैं कि विद्वानों की मत क्या है?
🔹एली के अनुसार – “विस्तृत अर्थ में उपभोग मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए आर्थिक वस्तुओं तथा व्यक्तिगत सेवाओं का उपयोग है।”
मेयरस के – “अनुसार मनुष्य की संतुष्टि के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रत्यक्ष अथवा अंतिम प्रयोग ही उपभोग है।”
पेन्सन के अनुसार-“आर्थिक दृष्टि से आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन के उपयोग को उपभोग कहते हैं।”
उपभोग के तत्व या विशेषताएं elements of futures of conjunction
उपभोग के सिद्धांत
उपभोग के पर्यावाची
उपभोग के प्रकार बताए
उपभोग के अर्थ
उपभोग को कहते हैं
उपभोग की परिभाषाओं के ध्यान से उपभोग के निम्नलिखित तत्व (विशेषताएं) प्रकट होते है-
1मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि
उपभोग माननीय आवश्यकताओं की संतुष्टि से जुड़ा विचार हैं। उपभोग के लिए मानवीय आवश्यकताओं का होना आवश्यक है। उपभोग करने से मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि होती है। पानी का उपभोग तब माना जाएगा जब उससे प्यास, स्नान या वस्त्र की धुलाई आदि आवश्यकता पूरी हो। पानी लेकर गिरा देने से पानी का उपभोग नहीं होगा।
बाजार का अध्ययन Bajar ka adhyayan (study of market)
2 प्रत्यक्ष आवश्यकता संतुष्टि या अंतिम उपभोग करना direct satisfaction of wants
रोग का अंतिम प्रयोग से हैं मर्द भर्ती उपभोग से नहीं है किसी उत्पादक द्वारा कच्चे माल मशीन आदि का प्रयोग उपयोग नहीं होता है खुदा मिठाई बनाने वाला चीनी खरीद कर उसका प्रयोग करता है, तो यह उद्योग नहीं होगा।
किंतु यदि एक व्यक्ति चीनी खरीद कर चाय में प्रयोग कर चाय पीता है तो यह उपभोग होगा। या यहां पर चीनी का उपभोग अंतिम रूप में हुआ है। इसे प्रत्यक्ष माननीय आवश्यकता की संतुष्टि भी कह सकते हैं यहां पर मानव के द्वारा चीनी को अंतिम रूप में अपने द्वारा खत्म कर दिया गया है।
3 उपभोग द्वारा उपयोगिता का नष्ट होना
End of utility through consumption upbhog dwara upyogita ka nasht hona
वस्तु में उपयोगिता अर्थात सकतासंतुष्टि की शक्ति होती है सोने से वस्तु की उपयोगिता नष्ट हो जाती है किंतु इस संबंध में निम्नलिखित बातें का ध्यान रखने योग्य है –
🔹 पदार्थ का नष्ट होना…
उपभोग के कारण वास्तु का केवल उपयोगिता नष्ट होती है यानी वास्तु का केवल रूप परिवर्तन होता है वास्तु नहीं।
जब व्यक्ती किसी खाद सामाग्री का उपभोग कर्ता है, तो वह पेट में पहुँचकर शरीरिक (पाचन) क्रिया द्वारा रक्त, मांस, मल आदि के रूप मे परिवर्तित हो जाता है।
🔹उपयोगिता का तेज गति या स्लो गति का नष्ट होना
किसी वस्तु के उपभोग से उसकी उपयोगिता शीघ्र नष्ट हो सकती है या धीरे धीरे भी नष्ट हो सकता है।
उदाहरण के लिए… भोज्य पदार्थ, पानी, जलाने वाले लकड़ी के उपभोग करने पर उपयोगिता तुरंत नष्ट हो जाती है, जबकि फ्रिज, स्कूटर, कर, टेलिविजन, आदि का उपभोग लंबे समय तक किया जाता है और उसकी उपयोगिता धीरे धीरे नष्ट होती है। इसी आधर पर वस्तुओं श्रेणी में विभाजित किया जाता है यानी टिकाउ वास्तु (Durable commodities) और तुरंत खत्म होने वाला (perishae goods)
🔹सेवाओं का उपभोग (services consumed as well)
वस्तुओ के ही भाँति सेवाओं का भी उपभोग किया जाता है।
उदाहरणार्थ :- चिकित्सक से परामर्श लेना एवं दवा लेना चिकित्सक की सेवा का उपभोग करना है। यह उपभोग प्रत्यक्ष और जल्दी होता है। क्युकी चिकित्सक को दिखाने के बाद उस सेवा को रोक नहीं जा सकता, दूसरे मरीज़ को स्वयं ही चिकित्सक से इलाज करना पड़ता है।
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उपभोग तथा विनाश मे अंतर (DIFFERENCE BETWEEN CONSUMPTION AND WASTAGE)
Upbhog ttha vinash me antar
उपभोग और विनाश शब्दों में प्रायः भ्रम हो जाता है क्युकी उपभोग और विनाश दोनों के केस में उपयोगिता का नाश होता है, किन्तु ये दोनों शब्द अलग अलग है और दोनों के अर्थ मे मौलिक अन्तर है। विनाश या नष्ट होने की प्रक्रिया में मे वस्तु के साथ ही उपयोगिता भी व्यर्थ हो जाती है और उससे किसी मानवीय आवश्यकता की संतुष्टि नहीं होती है
ईन दोनों के उदाहरणों द्वारा अस्पष्ट किया जा सकता है. बीमार होने पर दावा का पीना उपभोग है, किन्तु दवा की शीशी टूट जाने पर दवा का नुकशान हो जाता है।
इसी प्रकार ईंधन योग्य लकड़ी से खाना पकाना लकड़ी का उपभोग है, किन्तु लकड़ी के स्टाल मे आग लगने से लकड़ी से जलना विनाश है। संक्षेप में कहा जाए तो उपभोग मानवीय दृष्टी से सार्थक क्रिया है, जबकि विनाश एक निरर्थक क्रिया है।
उपभोग के प्रकार (KINDS OF CONSUMPTION) upbhog ke prakar
उपभोग का प्रकार कई प्रकार का होता है, व्यावहारिक एवं अर्थशास्त्रीय दृष्टी से उपभोग को निम्नलिखित रूपों में व्यकत किया जा सकता है।
1 उत्पादक उपभोग एवं अंतिम उपभोग (productive and final Consumption)
Utpadak upbhog avam antim upbhog
जब किसी वस्तु का प्रयोग दुसरी वस्तु के उत्पादन के निमित किया जाता है तो उसे उत्पादक उपभोग productive and final Consumption) या मध्यवर्ती उपभोग (Intermediate Consumption) कहा जाता है।
और इसके बिपरीत जब वस्तु का प्रयोग करने पर मानवीय आवश्यकता संतुष्टि होती है। तो उसे अंतिम उपभोग(filan Consumption) कहा जाता है।
उदाहरण के लिए.. जब किसी वस्त्र निर्माता द्वारा रुई का प्रयोग उत्पादक या मध्यवर्ती उपभोग होगा, जबकि किसी व्यक्ति द्वारा पहने के लिए वस्त्रों का प्रयोग अंतिम उपभोग है।
2 शीघ्र तथा मंद उपभोग (Raipid and slow consumption)
Shighra ttha mand upbhog
अनेक वस्तुएँ इस प्रकार की होती है कि उनका प्रयोग एक हो बार मे कर लिया जाता है। अर्थार्त एक बार उसको इस्तेमाल करने पर उसकी उपयोगिता नष्ट हो जाती है और वे पुनः उपभोग योग्य नहीं रह जाती है। ऐसी वस्तु को शीघ्र या तात्कालिक उपभोग (fast consumption) कहा जाता है। पानी, भोजन, दूध,को ईंधन आदि का उपभोग इसी प्रकार का उपभोग है…
इसके विपरित यदि हम बात करे तो कुछ वस्तुओ की प्राकृत ऐसी होती है कि उनकी उपयोगिता धीरे धीरे नष्ट होती है और उन्हें लंबे समय तक उपभोग मे लाया जाता है।
ऐसे उपभोग को टिकाऊ या मंद उपभोग ((Durable slow Consumption) कहां जाता है..
इसका उदाहरण कुछ इस प्रकार से
टिकाऊ वस्तु जैसेः कार, टी वी, फ्रिज, मकान, स्टील अलमारी, आदि का उपभोग मंद उपभोग श्रेणी मे आता है।
उपभोक्ता अर्थशास्त्र की परिभाषा
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