हैलो दोस्तों भारतीय संविधान पर निबंध (Essay on Indian Constitution in Hindi) के बारे में आज के आर्टिकल में बता रहे हैं। यदि आप भी संबिधान से जुड़े कुछ जानकारी पाने के लिए सर्च कर रहे हैं तो आप इस आर्टिकल को शुरू से लास्ट तक पढ़ सकते हैं। इसमें आपके मन पसंद जनकारी जरूर मिलेगी। तो चलिए स्टार्ट करते हैं। भारतीय संविधान पर निबंध हिंदी में।
भारतबर्ष सदियों तक गुलामी के बंधनो में जकड़ा रह। एक पश्चात एक शासक एवं लुटेरे ने इसकी बहुमूलय निधि को लुटा एंव आंधी झोंको के सामान आय तथा चले गया। भारतवर्ष की धरती प्रारंन्भ से ही ऋषि मुनियों की तपो – भूमि रही है। इसलिए विदेशियों के आगमन के फलस्वरूप यहां अशान्ति का माहौल उपस्थित होना बेशकम्भावी था। इस अशान्ति के माहौल ने धीरे-धीरे गम्भीर रूप धारण कर लिया। यही नहीं प्राचीन काल में ‘सोने की चिड़िया‘ कहा जाने वाला हमारा देश विदेशियों ने खोखला कर दिया था। गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई है मानवता का करुण चीत्कार जन – जन के हृदय को विदीर्ण कर रहा था।
भारतीय – शासन ब्रिटिश संसद के अधिकार में चल रहा था एवं इंग्लैंड की सरकार इसमें समय – समय पर अपनी रिपोर्ट एवं संशोधन कर सकती थी। इस प्रकार के विषम निर्दिष्ट में हमारे देश के कर्णधार भी हाथ पर धारित नहीं थे अपितु देश को स्वतन्त्र करने एवं विदेशियों को भारत प्रस्थान जाने हेतु अहिंसा के आन्दोलनों को चला रहे थे। यही नहीं सालों से छेड़ा गया स्वतन्त्रता आन्दोलन एवं अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों के सपने साकार हुए एवं देश का कोना – कोना खुशी के माहौल से आप पूरित हो गए।
शताब्दियों के पश्चात 15 अगस्त सन् 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और देश के संविधान (Constitution) के निर्माण का श्रीगणेश हुआ। विधान परिषद ने लगभग 3 वर्ष का समय लगाकर 64 लाख रुपये का व्यय कर स्वतंत्र भारत का संविधान indian constitution तैयार किया और यह संविधान 26 जनवरी सन् 1950 से संपूर्ण भारत में प्रभावी कर दिया।
नये विधान के अनुसार हमारे राष्ट्र को संपूर्ण संपन्न जनतंत्र गणराज्य का स्वरूप प्रदान किया गया है। इसमें कुल 397 धाराएँ हैं। इसका संबंध संघीय है जिसमें एक केंद्रीय और उसकी दूसरी राज्यों की दूसरी व्यवस्था है।
इस संविधान के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को सामाजिक, आर्थिक शास्त्रीय विचार, उपासना की स्वतन्त्रता, विकास के समान अवसर और राष्ट्रीय एकता का विश्वास दिया गया है। 21 साल से ऊपर की उम्र वाले व्यक्ति को मत देने का अधिकार है। वे ही विधान-सभाओं में अपने प्रतिनिधि भेजेंगे। देश की संपूर्ण शासन व्यवस्था की बागडोर जनता द्वारा चुने गए इन प्रतिनिधियों के हाथ में ही होगा। इस देश में जन्म लिए, पाकिस्तान से आए हुए तथा विदेश में बसे भारतीयों को अपना नागरिक स्वीकार किया।
भारत के संविधान के कुछ सिद्धांतों को अधिकार मानकर इसे स्वीकार किया गया है। वे इस प्रकार हैं-
(1) समानता का अधिकार (right to equality)- न्याय की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति को समान समझा गया है। जाति, धर्म, लिंग भेद तथा जन्म स्थान के आधार पर उनमें कोई भेद नहीं किया जाएगा। किसी भी नागरिक पर किसी भी सार्वजनिक स्थान में जाने तथा सरकारी नौकरी के संबंध में कोई प्रतिबन्ध नहीं होगा। वादाछूट का अंत कर दिया गया है।
(2) स्वतन्त्रता का अधिकार ( right to freedom) – प्रत्येक नागरिक को भाषण तथा लेखन की स्वतन्त्रता, सामूहिक होने, सभा करने, देश के किसी हिस्से में आने तथा बसने एवं व्यवसाय खरीदने, बेचने और रखने तथा कोई भी करने का व्यापार की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की गई है।
(3) शोषण से मुक्ति (freedome from exploitation)- दास – प्रथा, बेगार और अन्य अनावश्यक श्रम का शोषण समाप्त हो गया है।
(4) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार ( right to religious freedom)- हमारा देश धर्म – निरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ पर प्रत्येक व्यक्ति को किसी धर्म के पालन की संपूर्ण सुविधा और स्वतन्त्रता है।
(5) सांस्कृतिक एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार ( rights related to culture and education) – संविधान की अल्पजात जातियों के सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषा संबंधी संबंध तथा अपने शिक्षण संस्थानों की स्थापना करने के अधिकार की रक्षा का भी अधिकार दिया गया है।
( 6 ) सम्पति का अधिकार(property rights)- किसी व्यक्ति का अधिकार किसी व्यक्ति के अवैध रूप से किसी व्यक्ति से विनीत नहीं होगा।
(7) वैधानिक न्यायप्राप्ति का अधिकार (right to get legal justice)– किसी भी व्यक्ति के अधिकारों पर किसी प्रकार का आघात किया जाता है तो उसका बचाव करने के लिए राष्ट्र के सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने का अधिकार है।
विधान में जहां जनता के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान दिया गया है वहां राज्य के मार्ग दर्शन के लिए कुछ सिद्धांतों की भी व्यवस्था की गई है। इन सिद्धांतों का पालन करना और कानून बनाना समय इनका ध्यान रखना राज्य का परम कर्तव्य होगा। इन सिद्धांतों के अनुसार न्यायपूर्ण समाज व्यवस्था का निर्माण, प्रत्येक नागरिक को जीविका का समान अवसर प्रदान करना, शराब खोरी को बंद करना, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करना, ग्राम पंचायतों का संगठन करना और अंतरिक सुख शान्ति को स्थायी प्रमुख राज्य का प्रमुख उत्तरदायित्व है।
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संविधान की रूपरेखा
राष्ट्रपति-संविधान (Constitution ) के अनुसार राष्ट्र के सर्वोच्च अधिकारी राष्ट्रपति होंगे जो संसद में दोनों सदनों के फिर से सदस्य और प्रान्तीय व्यवस्थापिका सदनों के चुने हुए सदस्यों द्वारा 5 वर्ष की अवधि के लिए निर्वाचित होते हैं। इसकी आयु कम से कम 35 वर्ष होगी। कोई भी व्यक्ति दो बार से अधिक इस पद पर नहीं चुना जा सकता।
वह देश के समस्त सेनाओ का सेना अध्यक्ष होगा। तथा केंद्रीय सरकार के सभी कार्यों उनके नाम नाम किये जायेंगे। उसको परामर्श देने के लिए एक मंत्रिमण्डल होगा जो राजकीय मामलों पर उसे उचित परामर्श देगा। उन्हें मन्त्रीमण्डल के निर्माण, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नियुक्ति करने के अधिकार भी प्राप्त हैं। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया कोई भी राष्ट्रपति की अनुमति के बिना कोई कानून नहीं बन सकता।
उपराष्ट्रपति – राष्ट्रपति की सहायता के लिए एक उपराष्ट्रपति भी होगा। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उनके रिक्त स्थान की पूर्ति और राज्य सभा के अधिवेशन की अध्यक्षता ही उनका मुख्य कार्य है। इसकी उम्र भी 35 साल से कम नहीं होनी चाहिए और संसद के दोनों सदस्यों की संयुक्त बैठक में 5 साल के लिए इस पद के लिए चुनाव होता है।
मन्त्रीमण्डल-राष्ट्रपति परामर्शी और शासन का संचालन करने के लिए मन्त्रीपरिषद् जिसका अध्यक्ष प्रधानमन्त्री कहलायेगा। संसद में जिस दल का बहुमत होगा। उस दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधान मंत्री चुना जाएगा। संपूर्ण मन्त्रीमण्डल महासभा के प्रति उत्तरदायी होंगे।
संसद – यह केंद्र सरकार का मुख्य अंग है। इसके दो सदन होंगे- (1) लोकसभा , (2) राज्य परिषद्। दोनों सदनों की वर्ष में कम से कम दो बैठकें होनी आवश्यक है।
लोकसभा- लोकसभा में व्यसक मताधिकार के आधार पर चुने 545 तक सदस्य होंगे। सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जायेंगे। इसका कार्यकाल 5 वर्ष होगा। केन्द्रीय शासन के संबंध में कथन बनाने का पूर्ण अधिकार होगा। राज्य-परिषद के 250 सदस्य होंगे जिनमें से एक-तिहाई सदस्य प्रतिवर्ष अवकाश ग्रहण किया करेंगे। इसके अलावा 12 सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाएगी ।
राज्य शासन – संपूर्ण भारत को शासन की सुविधा की दृष्टि से कई राज्यों को विभाजित किया गया है। मुख्य अधिकारी का नाम राज्यपाल होता है, जिसका नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होगा। प्रत्येक राज्य की अपनी अलग स्थिति – विधान सभाएं होती हैं। कुछ राज्यों में केवल एक ही और कुछ में सदन होंगे- (1) विधान – सभा, (2) विधान परिषद्।
विधान सभा का चुनाव वयस्क मताधिकार सिद्धांतों के अनुसार होता है। विधान परिषद के चुनाव में वोट देने का अधिकार नगरपालिका, जिला बोर्ड के सदस्यों, शिक्षकों और विधान सभा के सदस्यों का ही होगा।
देश में 600 छोटी-छोटी रियासतों को मिलाकर 9 बड़े राज्यों का निर्माण किया गया है। इसके मुख्य अधिकारी को राज्यपाल का नाम देकर ‘राज-प्रमुख’ का नाम दिया गया है।
न्याय शासन – भारत का सर्वोच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय होगा। इस न्यायालय का एक प्रधान और उसके सहायक अधिकाधिक 17 अन्य न्यायाधीश होंगे। इसके मुख्य तीन कार्य होंगे-
( 1 ) संविधान के व्याख्यात्मक सम्बन्धी प्रश्न का निर्णय करना
( 2 ) संघ तथा राज्य के परस्पर लिंक का निर्णय करना।
(3) राज्य के उच्च न्यायालय से प्रेषित अपीलों को सुन्ना।
लोक सेवा – प्रत्येक राज्य और केंद्र में राजकीय अधिकारियों की भर्ती के लिए लोक सेवा आयोगों की स्थापना की गई है।
राज्य भाषा – देवनागरी लिपी में लिखी गई हिंदी को संघ की राज्य भाषा स्वीकार किया गया है। राजकीय कार्यों में हिंदी में राज्य द्वारा अंग्रेजी के परिवर्तन के लिए 15 वर्ष की अवधि निश्चित की गई है।
विधान में संशोधन – संसद के दोनों सदनों के दो – बहुसंख्यक सदस्यों और राष्ट्रपति की स्वीकृति से संविधान में आवश्यक परिवर्तन हो सकते हैं।
निष्कर्ष
इस विधान के निर्माण का मुख्य श्रेय डॉ0 अम्बेडकर को जाता है जो उस समय न्यायमंत्री के पद पर थे। विधान की अच्छाई और बुराई के संबंध में विशेषण – विशेषण लोगों के विशेषण – विशेषण मत हैं। उसके संविधान की सफलता उसके सुन्दर शब्दों में नहीं परंतु उसके क्रियात्मक उपयोग में है। स्वतन्त्र भारत के संविधान indian constitution का सम्मान करना प्रत्येक भारतीय का परम पवित्र कर्त्तव्य है और कथन की सफलता उसकी अपनी सफलता है। किसी कवि के शब्दों में- “तुम मुझ में अपनी छवि देखो, मैं तुम में निज साधना अचल।।”