उपभोक्ता के समस्याएं Problems of Consumer’s in Hindi (upbhokta ke samasya)
आइए जानते हैं कि उपभोक्ता की समस्याएं कौन कौन से है? या उपभोक्ता के समस्या का हल क्या? ईन सारी पहलू पर हम सब ध्यान देंगे और इसको विस्तृत रूप से समझेंगे। ताकि आसानी से समझ में आ जाए कि ग्राहक के कौन कौन से समस्या होता है। और इससे निजात पाने का क्या उपाय है।
उपभोक्ता के समस्या |
उपभोग जिवन के अस्तित्व के लिए एक आवश्यक क्रिया है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ती उपभोक्ता है। तकनीकी अर्थ में सेवा या वस्तुओं का क्रय कर अथवा किराये पर लेकर उपभोग करने वाले व्यक्ती को उपभोक्ता माना जाता है। इस अर्थ में भी आज लगभग सभी व्यक्ती उपभोक्ता की श्रेणी में सम्मलित है। आदिम युग में व्यक्ती पूर्णतया आत्मनिर्भर था और वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करने मे सक्षम था, किन्तु मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ एक और जहॉं व्यक्ती की आवश्यकताओं निरंतर बढ़ती गयी वही दूसरी ओर ज्ञान विज्ञान के विस्तार ने नित नूतन उपभोक्ता सामग्री का अविष्कार कर मानव के उपभोग हेतु असंख्य वस्तुएँ उपलब्ध करा दी।
उद्योग, व्यापार और बाजार के निरंतर विस्तार ने उत्पादक और उपभोक्ता के बीच प्रत्यक्ष सम्बंध नगण्य हो गए। भौतिकवाद ने लोगों के बीच उचित अनुचित मार्ग का का विचार ला दिया और प्रत्येक व्यक्ति को कुछ कार्य करके धन अर्जित करने के लिए प्रेरित किया। ईन सब परिस्थितियों में उत्पादक एवं व्यापारी जो उपभोक्ता को उपभोग सामग्री एवं सेवाएं उपलब्ध कराता है, वह भी बिना उचित अनुचित का विचार किए धन अर्जन मे लिप्त हो गया। इस प्रकार उपभोक्ता के शोषण और उसके साथ धोखाधड़ी एवं कूट व्यावहारो (Mal Practices) की गतिविधियों को बल मिला।
आज उपभोक्ता अनेक प्रकार के कूट व्यावहारो का शिकार बन चुका है। उपभोक्ता की संप्रभुता के विपरित ‘उपभोक्ता की निरीहता’ की स्थिति अर्थव्यवस्था में व्याप्त है। उपभोक्ता की स्थिति सर्वत्र दयनीय है। उसे उचित मूल्य पर सही माप तौल की वस्तुएँ हर जगह उपलब्ध नहीं होती है। झूठे एवं आकर्षक विज्ञापनों एवं सूचनाओं द्वारा उसे गुमराह किया जाता है। बाजार में अनेक हथकंडे द्वारा उसे ठगा जाता है और अनेक रूपों में उसका शोषण किया जाता है। अधिक मूल्य, मिलावट, गलत माप तौल, जमाखोरी, भ्रामक विज्ञापन, नकली वस्तुएँ जैसी अनेक समस्याओं का उपभोक्ता को सामना करना पड़ रहा है।
उपभोक्ता की समस्याएं
Problems of Consumer’s upbhokta ki samsya
उपभोक्ता के समक्ष उपस्थित प्रमुख समस्याओं की विवेचना इस प्रकार की जा सकती है। जिससे उपभोक्ता (Consumer) का परेशानी का कारण बना रहता है। तो आइये जानते हैं कि ओ कौन सा कारण है जिसे ग्राहक यानी उपभोक्ता की समस्या Problems of Consumers होता रहता है।
उपभोक्ता के समस्या |
दोषयुक्त भार एवं माप (Faulty Weight and Measurement)
माप तौल की गडबड़ी व्यापरियों का पुराना हथकंडा है। अनेक लोक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं में माप तौल की धोखाधड़ी सुनने को मिलती है। आज उपभोक्ताओं के समक्ष यह एक प्रमुख समस्या बन गयी है। मैट्रिक पास प्रणाली लागू होने के पूर्व देश के विभिन्न भागों में अलग अलग माप इकाई प्रचलित थी। कुछ स्थानों पर मन, छटांक सेर था, तो कहीं कच्चा मन, कच्चा सेर, पक्का मन, पक्का सेर, पसेरी आदि प्रचालित था। बॉंटो का कोई मानकीकरण एवं एकरुपता नहीं थी, कहीं इट के कही पत्थर के और कहीं लोहे के बाँट प्रचालित थे।
तराजू के रूप में लकड़ी के डण्डी प्रचलित थी और कपड़े के माप के लिए कपड़े का गज, फीता। द्रव पदार्थों की माप के लिए मिट्टी के पाव, आधा पाव आदि प्रचलित थे। माप तौल में सुधार लाने के लिए 1939 में स्टेंडर्ड आफ़ वेट एक्ट (Standard of Weight Act) पारित हुआ, किन्तु इसकी प्रभावी क्रियाशील 1952 के बाद ही हो सकी।
बाँट, मीटर, लीटर एवं तराजू आदि का मानकीकरण होने के बाद भी आज माप तौल की व्यापक धांधलियॉं हो रही है.।आज शायद ही किसी वस्तु की माप उचित रूप से पूर्ण माप मे प्राप्त हो, अन्यथा प्रत्येक वस्तु घटौली का शिकार है। पेट्रोल पम्पो जहां पूर्णतया कंप्यूटराइज प्रणाली है वहाँ भी व्यापक धोखाधड़ी की जाती है। कपड़ा व्यापारी पूरा कपड़ा भी देता है। किराना वाला का गलत माप एक समान्य बात है, ग्रामीणों क्षेत्र में आज भी ईंट पत्थर के बाँट प्रचालित है। मिठाई विक्रेताओं द्वारा डिब्बा भी मिठाई के साथ तौलना आम बात है। स्वर्ण व्यापरियों की माप पहले से ही संदिग्ध है। इस प्रकार दोषयुक्त माप तौल की समस्या उपभोक्ता के साथ आज सर्वत्र व्याप्त है।
बढ़ते हुए अधिक मूल्य (Encreasing Excess Prices)
मूल्य वृद्धि एवं व्यापरियों द्वारा निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य वसूल करना उपभोक्ता के समक्ष एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है। यहां पर मूल्य वृद्धि का आशय समान्य उपभोक्ता सूचकांक में वृद्धि से है। अर्थार्त उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्य में निरंतर वृद्धि दर ही मूल्य वृद्धि की समस्या है। मूल्य वृद्धि की मुख्य समस्या कुछ इस प्रकार से है।
जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि, मुद्रा प्रसार, आवश्यकताओं में वृद्धि, पूर्ति की तुलना में माँग से अधिक वृद्धि, घाटे का बजट, जमाखोरी आदि कारणों से मूल्यों में वृद्धि की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई जो निरंतर संचयी होती गयी। बढ़ती हुई कीमतों का सीधा प्रभाव उपभोक्ता की जेब पर पड़ता है। कीमतों में बढ़ोतरी के साथ उपभोक्ता के कष्टों मे वृध्दि होती है।
मूल्य वृद्धि के साथ साथ एक और समस्या उपभोक्ता को झेलनी पड़ती है। यह समस्या है निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य वसूल करना। प्रायः दुकानदार उत्पादन कंपनी द्वारा निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य पर वस्तुए बेचकर उपभोक्ता का शोषण करता हैं।
मिलावट करना (To Adulterated)
खाद पदार्थों, दवाओं एवं उपभोक्ता वस्तुओं मे मिलावट एक प्रमुख समस्या है। दैनिक उपयोग के प्रत्येक वस्तु मे मिलावट पायी जाती है। धनिया मे लकड़ी का बुरादा, लाल मिर्च मे पीसी ईंट का पाउडर, काली मिर्च मे पपीते का बीज,जीरा मे सौंफ, देशी घी मे डालडा, अरहर की दाल में खेसारी का दाल, सरसों का तेल मे अर्जीमोन का तेल आदि परंपरागत मिलावट के उदाहरण है। 1956 से 1996 तक बड़े पैमाने पर सिंथेटिक दूध पकड़ा गया था जिसमें जिसमें यूरिया और साबुन की झाग मिलाकर दूध बनाया जाता था। वह आज भी बड़े पैमाने पर हो रहा है।
विभिन्न अध्ययन एवं सर्वेक्षणों ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि जब बाजार तेजी से बढ़ते हैं तो मिलावट की घटनायें बढ़ जाती है। आज कल बड़े पैमाने पर दवाइयों मे भी मिलावट पायी जाती है, जिससे प्राणघात भी हो जाता है। इस प्रकार मिलावट एक गंभीर समस्या है, जो आर्थिक दृष्टी से हानिकर ही नहीं ब्लकि यह स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक एवं घातक गतिविधि है।
भ्रामक विज्ञापन (False Advertisement)
विज्ञान का उद्देश्य उपभोक्ता को अपने उत्पादन की जानकारी देना होता है। यह ऐसी कला है जिसके द्वारा उपभोक्ता के मन मस्तिष्क को प्रभावित कर किसी वस्तु विशेष के उपयोग हेतु प्रेरित किया जाता है।
स्वच्छ एवँ सही विज्ञान व्यापार वृद्धि एवँ उपभोक्ता दोनों के लिए उपयोगी होते हैं। किंतु आज कल विज्ञापन उपभोक्ता को भ्रमित करने का कला बन चुका है। एक ही वस्तु के लिए अनेक उत्पादक विज्ञापनों के माध्यम से अपने उत्पादन को सर्वश्रेष्ट होने का दावा करती है। इससे उपभोक्ता भ्रमित हो जाता है और गलत वस्तु का चुनाव कर लेता है।
विज्ञापन न केवल भ्रम उत्पन्न करता है, बल्कि वस्तुएँ की मूल्य वृद्धि भी उत्तरदायी होते हैं। उत्पादक के द्वारा भारी भरकम खर्च करके लिए गए विज्ञापन का खर्च उत्पाद के मूल्य में जोड़कर उपभोक्ता से वसूल करता है
निम्न स्तर की वस्तुएँ (Sub Standard Goods)
उपभोक्ता के समस्या |
उपभोक्ता के समक्ष एक अन्य प्रमुख समस्या य़ह है कि गुणवत्ता रहित एवं निम्न स्तर की वस्तुएँ की आपूर्ति की जाती है। बाजार में ऐसी बहुत सारी वस्तुएँ है जो निर्धारित मानकों को पुरा नहीं करती हैं। जिससे उपभोक्ता के जिवन का खतरा बना रहता है। इसमे घरेलु, हो या इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिक, किचन या खाने वाले सामान ऐसी बहुत सारी वस्तुएँ है जो मार्केट में धड़ल्ले से बिक रही है। जिनसे मानव को हर वक्त खतरा बना रहता है।
दूसरे का ब्रांड लेवल का इस्तेमाल करना (Using another’s brand level)
किसी दूसरे ब्रांड का लेवल चिन्ह प्रयोग आज अधिकाधिक मात्रा में किया जा रहा है। कोई उत्पादक जब अधिक लोकप्रिय हो जाता है तब उसका कोई गलत प्रयोग करने लगता है। और नकली सामान उनके ब्रांड लेवल कम्पनी के नाम पर मार्केट में बेचने लगता है। इससे यह होता है कि उपभोक्ता अच्छी कम्पनी के उत्पादक का मूल्य देता है, लेकिन उसके स्थान पर निकली वस्तु खरीद लेता है। इससे आर्थिक क्षति के साथ साथ जिवन को भी क्षति पहुंचती है।
वस्तुओ की कम आपूर्ति (Shortage of Goods)
बाजार मे उपभोक्ता के समक्ष कभी कभी कम आपूर्ति की समस्याएं उत्पन्न होती है। इस प्रकार की स्थिति में वस्तुओं के दाम बढ़ जाते हैं। जिससे हर कोई को सामान नहीं मिल पाता है। वस्तुओं की दाम इतना बढ़ जाता है कि गरीब और कम आय वाले उपभोक्ता को ऐसी स्थिति में बहुत ज्यादा कष्ट होता है। व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लालच में माल के स्टॉक को दबा (Under Ground) लेते है जिससे बाजार में वस्तु के अभाव उत्पन हो जाते हैं। और वे अधिक मूल्य वसूलने लगते हैं।
युद्धकाल, बाढ़, सूखा, दंगा आदि की स्थिति में व्यापारी इस प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं। जिससे वस्तुएँ की दामों में इतना वृध्दि हो जाता है कि उसको खरीदा पाना बहुत मुस्किल होता है। यही हाल अभी श्रीलंका में हुआ है। ‘श्रीलंका की आर्थिक स्थिति’ बहुत ज्यादा नीचे गिर गई है। जिसे वहां पर वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं, और लोग भूखमरी का शिकार हो रहे हैं।
उपभोक्ता के साथ व्यापरियों का असभ्य व्यवहार (Disrespectful behavior of merchants with consumers)
व्यापरियों के लिए ग्राहक ईश्वर स्वरूप होता है, किंतु अनेक व्यापारी ग्राहक के साथ उचित व्यवहार नहीं करता है।प्रायः ऐसा देखा जाता है कि जो ग्राहक कम पढ़े लिखे और निर्धन होते हैं तो व्यापारी उनके साथ असभ्य व्यवहार करता है। ग्राहक की वेशभूषा देखकर व्यापारी कह देता है “चलो चलो आगे बढ़ो तुम यहाँ सामान नहीं खरीद पाओगे ।
कभी कभी जब ग्राहक व्यापारी के पास गलत सामान की शिकायत करने जाता है तो दुकानदार अवशिष्ट व्यवहार करता है। भले ही शिकायत उनकी विक्री शर्तें के अनुकूल हों। वस्तु के विक्री के पश्च्यात सेवाओं के मामले में प्रायः व्यापारी असभ्य हो जाता है और ठीक से वह बात नहीं करता है। इस प्रकार व्यापरियों का असभ्य व्यवहार भी उपभोक्ता के लिए एक समस्या है।
करों का गलत इस्तेमाल (misappropriation of taxes)
वर्तमान समय में सरकारे व्यापरियों एवं उत्पादों पर अनेक प्रकार के कर लगाती है। ये कर डायरेक्ट और इनडायरेक्ट कर होते हैं। डायरेक्ट कर मे सरकार इस नियत से कर लगाती है कि उसकी वसूली ग्राहक से होगी। किंतु ईन करो का विवर्तनि समस्या नहीं है। अनेक बार दुकानदार एवं व्यापारी केंद्र सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय संस्थाओ द्वारा लगाए गए ऐसे करों को भी ग्राहक पर जोड़ लेते है, जो व्यापरियों को नहीं देना होता है। ऐसा करने से ग्राहक पर अन्य आवश्यक भार पड़ता है।
इस प्रकार उपभोक्ता (consumer) के पास अनेक समस्या विधमान है, जिसके कारण उपभोक्ता का शोषण होता रहता है। इस समस्या का मुख्य कारण उपभोक्ता की अशिक्षा, उदासीनता, और असंगठित होना है। सरकार ने भी ग्राहक को शोषण से बचाने के लिए कुछ उपाय किए हैं, किन्तु उपभोक्ता जागरुकता के अभाव में उनका कोई खास लाभ नहीं मिल पा रहा है। अतः उपभोक्ता के समक्ष विधान समस्याओं का हल उपभोक्ता संगठन एवं शिक्षा में दबा हुआ है।