कबीर दास भारतीय साहित्य के मशहूर संत-कवि हैं। वे 15वीं शताब्दी के मध्य में जन्मे थे और उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में निवास करते थे। कबीर दास की रचनाएं हिंदी और उर्दू भाषा में हैं और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से जनमानस को धार्मिक और सामाजिक संदेश दिए।
कबीर दास के दोहे उनकी रचनाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। आज हम आ सभी के लिए Kabir Ke Dohe In Hindi Pdf को लेकर आये हैं ये दोहे सरल भाषा में लिखे गए हैं और संतों की भावात्मक विचारधारा को प्रकट करते हैं। कबीर द्वारा उन्होंने दार्शनिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मुद्दों पर सवाल उठाए हैं और लोगों को सत्य की खोज में प्रेरित किया है। उनके दोहों में सत्य की गहराई, अंतर्मन की उद्दीपना और मानवता के मूल्यों का महत्व व्याप्त होता है।
कबीर के दोहे अपार साहित्यिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व रखते हैं। इन दोहों के माध्यम से वे धार्मिक और सामाजिक विषयों पर अपने विचार और आदर्शों को साझा करते हैं। आप इस Kabir ke Dohe in Hindi Pdf with Meaning को Dwonload कर सकते हैं। कबीर द्वारा प्रस्तुत किए गए दोहे एक सरल और सुंदर ढंग से आपस में जुड़े हुए हैं और उनका पाठकों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
कबीर के दोहों में आत्मज्ञान, सत्य, समय, मनुष्य की अनुभूति, संघर्ष, जीवन के मूल्य, धर्म, ज्ञान, वैराग्य और प्रेम जैसे मुख्य विषयों पर चर्चा की गई है। कबीर द्वारा उनके दोहों के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझाया जाता है और लोगों को उनके अंदर छिपे हुए ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया जाता है।
कबीर के दोहों का महत्व और प्रभाव हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति में बहुत बड़ा है। इन दोहों के माध्यम से वे मानवता के मूल्यों को प्रोत्साहित करते हैं और सभी को समानता, धार्मिक सहयोग और सद्भावना की ओर प्रेरित करते हैं। कबीर दास के दोहों की महानता और आदर्शों के अंदर छिपे हुए सत्य को हमेशा याद रखा जाए। तो आये आगये देखते हैं Kabir Ke Dohe Pdf Dwonload
Kabir Ke Dohe In Hindi Pdf कबीर दास के दोहे पीडीऍफ़ में अर्थ सहीत
गुरु बिन ग्यान न होत ब्रह्मा, गुरु बिन मोक्ष न होय।
गुरु बिन लखौं जप तपा, गुरु बिन न कोय।
अर्थ: ब्रह्मा बिना गुरु के ज्ञानी नहीं हो सकता, मोक्ष बिना गुरु के प्राप्त नहीं होता। लाखों जप और तप करने से कोई लाभ नहीं होता, बिना गुरु के कुछ नहीं मिलता।
जो तो करे भला बुरा, वही संसार जाने।
जो दूजे को दुख देवे, माने अपने सुख भने।
अर्थ: जो कुछ भी करे, चाहे वह भला हो या बुरा, संसार ही उसे जानता है। जो दूसरे को दुःख पहुंचाता है, वह अपने सुख को नहीं मानता है।
बांटन से बिगड़े काम, जोड़ से सुधरै।
जोड़ी कहाँ तिन की जोड़ी, जोड़ी राखे समझै।
अर्थ: जो काम बांटने से बिगड़ गए हों, उन्हें जोड़ने से सुधार किया जा सकता है। तीनों तोड़ों की जोड़ी कहाँ होती है, जोड़ी को संभाल कर रखना चाहिए।
चार कोस पर पानी बदले, छय कोस पर वाणी
राम नाम जपो बिन, बैठें मति मधुर कानि।
अर्थ: चार कोस के पास तक पानी बदल जाता है, छय कोस के पास तक वाणी बदल जाती है। राम नाम का जाप किये बिना, कोई भी व्यक्ति मन में मधुर विचार नहीं बैठा सकता।
साकत तो सोने को, ज्यों ज्वार में कोय।
चांदी मांगे ज्यों जल पिये, ब्रजबासी होय।।
अर्थ: जैसे कि सोने को सोने की जरूरत होती है, वैसे ही ज्वार को भी कोई ज्यों चांदी की आवश्यकता होती है। ज्यों जल पीने से कोई व्यक्ति ब्रजबासी नहीं बन जाता है।
गुरु मिला ताके बीनी, लूटे मोहे धन धानी।
ज्यों बैठे सो बाइठिए, लेखक मिलत न बानी।।
अर्थ: मुझे गुरु मिला और उनके द्वारा ज्ञान मिला, धनी ने मुझसे मेरे धन को लूट लिया। जैसे जैसे बैठते हैं, वैसे वैसे लोग आदमी को चिढ़ाते हैं, वह नहीं समझते।
जब लोग थोरा बोले, तब तक नर भोलै।
जब लोग काटे खोंटे, तब तक शंकर बोलै।।
अर्थ: जब लोग थोड़ा बोलते हैं, तब तक व्यक्ति भोले होते हैं। जब लोग तीखे बोलते हैं, तब तक शंकर (महादेव) बोलते हैं।
सब धर्मों में धर्म है, धर्म न चाहिए कोय।
जो धर्म न धर्म समझै, सोई धर्म सोय।
अर्थ: सभी धर्मों में धर्म है, कोई अलग धर्म नहीं चाहिए। जो धर्म को धर्म नहीं समझता है, वही असली धर्म धारी है।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तो प्रेम का, पूछे सो अबिमान।
अर्थ: साधु की जाति का पूछा न करें, ज्ञान का पूछें। मूल्य मानने के लिए प्रेम का मोल करें, उसकी अभिमान की परख न करें।
कबीरा बगीचा छोड़ गया, साधु करें बाट।
काली जो लावे ताली, उसकी ताली माट।
अर्थ: कबीर ने बगीचा छोड़ दिया, साधुओं ने वाट ली है। जो काली (मान्यता) लाती है, उसकी ताली मिट्टी ही है।
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
अर्थ: सब लोग दुख में भगवान की स्मरण करते हैं, लेकिन सुख में कोई नहीं करता।
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर
। अर्थ: कबीर बाजार में खड़ा है और सबकी भलाई की मांग करता है। उन्हें किसी से दोस्ती नहीं है, न किसी से द्वेष।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
अर्थ: कोई भी बड़ा या महत्वपूर्ण हो जाए, वह एक खजूर के समान होता है। वह यात्री के लिए आश्रय नहीं प्रदान करता और उसके फल बहुत दूर लगते हैं।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ: लोग किताबें पढ़कर मर गए, पंडित बन नहीं सके। अधूरे ज्ञान से पढ़े जाने वाले को इंसान पंडित बन जाता है।
बिना बाजे बांसुरी बजावे, वान भ्रमत भयो न कोय।
कान न बजावे, सो कागजी, जब लिखे तब दिखाय।
अर्थ: बिना बाजे फीफा बजाने वाले के यहां भ्रमण करने वाले को डर नहीं लगता। कान नहीं होने पर कागजी में लिखने पर ही दिखाई देता है।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।
अर्थ: गुरु और भगवान दोनों खड़े हैं, किसके पैरों में प्रणाम करूँ? मैं गुरु को बलिदान करता हूँ, क्योंकि वही मुझे भगवान का दर्शन कराते हैं
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जो तो करे भला गुनाह, कामना न करे छोय।
आपना तन खोया करे, आपने नहीं छोय।
अर्थ: जो भलाई करे पर उसकी अपेक्षा कोई कामना नहीं करे। वह अपने शरीर को त्याग दे और किसी की कामना नहीं करे।
रत्ना जड़ी होय नहीं, जड़ी रहे चंदन।
महीन महीन खड़ी रहे, फूलन बगीचे बंदन।
अर्थ: रत्न सदुखों में सुंदरता नहीं होती, वह चंदन की तरह रहे। वह महीने-महीने खड़ा रहे और बगीचे को सजाए रखे।
गंगा तेरे चरणों में, जो धोय और धोय।
गोबिन्द गुसाईं नहीं मिले, तो गंगा जाने न होय।
अर्थ: जो अपने पैरों को गंगा में धोता है, वह गोबिंद को नहीं मिले तो उसे गंगा से कोई फर्क नहीं पड़ता।
जहाँ न राजे राम, वहाँ न राम राजा।
ब्रह्मा विष्णु महेश एक, प्रेम रटे सब दूजा
अर्थ: जहां राम का राज्य नहीं होता है, वहां राम राजा नहीं होते। ब्रह्मा, विष्णु और महेश एक हैं, सब दूसरे के प्रेम में रत हुए हैं।
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय
राख होत ब्राम्हण की, लेखा पढ़े सब कोय।
अर्थ: बिगड़ी हुई बात ठीक नहीं होती, चाहे आप लाख बार कोशिश करें। ब्राह्मण की राख होने से ही सबका लेखा-जोखा सम्पूर्ण होता है।
ज्यों काटे सो उत्तरे, लगे त्यों फल फलोय।
ज्यों बगीचे फल खाये, त्यों रस रस रासि न होय
अर्थ: जैसे कि छत को काटने पर काटे हुए अंश जल्दी उत्पन्न होते हैं, ठीक वैसे ही फलों का विकास होता है। जैसे कि बगीचे के फलों को खाने पर उनमें रस की प्रवृत्ति नहीं होती है।
एक अन्ना मेरा सौ भला, लोहा दुसरान कोय।
एक अर्ध जौं मेरा सौ, मेरो दुसर कोय।
अर्थ: मेरे लिए एक अन्ना का दान सौ गुणा भला है, और किसी और को लोहा देना। मेरे लिए अर्ध जौं का दान सौ गुणा भला है, और दूसरों को मेरा दान करना।
एक दीपक सब जग जलाए, एक राखा सब कोय।
बिना श्रद्धा कैसे कोई, गंगा बैर न होय।
अर्थ: एक दीपक से सब जग जलता है, एक राखी सभी बंधते हैं। बिना श्रद्धा के कोई व्यक्ति कैसे हो सकता है? गंगा के प्रति किसी का द्वेष नहीं होता।
राम नाम जपना पराया माला अपनी जपो रे
यह जप के तेरे मन को ब्रह्मा का ठानो रे।
अर्थ: राम नाम का जाप करना, अपनी माला को जपो। यह जाप के तेरे मन को ब्रह्मा के समान बना देगा
माटी काहे कुम्हार से, टूक टूक आइये।
एक दिन ऐसा आएगा, मूटी गांव न जाय।
अर्थ: कुम्हार से मिट्टी क्यों चीढ़ रहे हो? एक दिन ऐसा आएगा जब तुम भी अपने गांव को छोड़कर नहीं जाओगे।
खाम्बा थळे मधुवा पेड़, तिलक बिना जिया।
यह तो सुंदर कांड बतावे, सब जग देख लिया।
अर्थ: मधुकरी पेड़ बिना तिलक के विचार किये जाए तो वह सभी को अपने सुंदर वृक्ष की कथा सुना सकता है, लेकिन सभी उसे देख लेते हैं।
बिना पानी सब सूरत बनाई, गोरा गौरी खेली खेल।
जैसे उड़त पंख पानी बिना, बह रहें उड़ उड़ जहाज।
अर्थ: सब ने पानी के बिना सौंदर्य बनाया है, गोरा गौरी खेलते हैं। ठीक वैसे ही जैसे उड़ते हुए पंखों के बिना उड़ते हुए जहाज बहते हैं।
Kabir Das ke Dohe in Hindi Pdf
पूछा लाख खीर आहार, काहे की सेठ की वाणी।
काहे के तुम जोरी लागी, जेही पाँव फल हारै
अर्थ: लाखों खीर के आहार के बारे में पूछा, एक सेठ की बात की। तुमने जब जोर लगाया, तब तुम्हारे पैर फलों को हार गए।
बागी भोला न बने, बागी बावल होय।
जो प्रेम गले मुड़िये, सोई उदार जग होय।
अर्थ: एक व्यक्ति भोला बनने की जगह बावल बन जाता है। जो अपना प्रेम दूसरों के प्रति प्रदर्शित करता है, वही सभी लोगों के लिए उदार बन जाता है।
बैरी काम न कीजिए, आपनो बैरी न होय।
जो बैरी करें भलाई की, तो राखे उन्हें सब लोय।
अर्थ: अपने दुश्मन के साथ दुश्मनी न करें, तब आपका कोई दुश्मन नहीं होगा। जो दुश्मन भलाई करें, उन्हें सभी लोग सम्मान देंगे।
कागा करी सो बतीस, खाए चूँदी चटाई।
खोया पाया अंबरी, लेखा न जाए गताई।
अर्थ: कागा (कौआ) खाते समय सो तरहीं की चूड़ियां चटाई में छिपा लेता है। खोया हुआ सामान अंबरी में मिल जाता है, उसका लेखा नहीं होता।
चिंता ऐसी डाकिनी, काटे करज लेजाए।
चिंता ऐसी डाकिनी, काटे सब आपन जाए।
अर्थ: चिंता एक ऐसी राक्षसी है, जो कर्ज काटकर ले जाती है। चिंता एक ऐसी राक्षसी है, जो सभी अपने काट लेती है।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाए।
बिन पानी बिन साबुन, निर्मल करे सुभाए।
अर्थ: निंदकों को निकट रखें, वे आपके आंगन में कुटिया बना लेंगे। बिना पानी और साबुन के उपयोग किए, वे आपको शुद्ध कर देंगे।
निंदक नियरे राखिए, अंगन कुटी छवाए।
बिन पूने पानी बिन साबुन, आप निर्मल करे सुभाए।
अर्थ: निंदकों को निकट रखें, वे आपके आंगन में कुटिया बना लेंगे। बिना ज्ञान के और समझे पानी और साबुन के, आप शुद्ध कर देंगे।
बिन पानी लावे बोरी, बिन धन लावे डोल।
जो अंधो त्यागे आपनो, तो वही सतगुरु सोल।
अर्थ: जैसे कि बिना पानी के मटकी लायी जा सकती है, और बिना धन के डोल लाया जा सकता है। जो अंधे व्यक्ति अपने आपको त्यागता है, वही सतगुरु है।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाए।
बिन पानी, साबुन बिन निर्मल करे सुभाए।
अर्थ: निंदकों को निकट रखें, वे आपके आंगन में कुटिया बना लेंगे। बिना पानी और साबुन के उपयोग किए, वे आपको शुद्ध कर देंगे।
निंदक नियरे राखिए, अंगन कुटी छवाए।
निंदक अंधे कोन, सब कोये उपजाए।
अर्थ: निंदकों को निकट रखें, वे आपके आंगन में कुटिया बना लेंगे। निंदक अंधे होते हैं, सभी उसे प्रचारित करते हैं।
बुरे का भला होता, जो मन करें चाह।
जो जाने सब कुछ, सोई सब ग्याह।
अर्थ: बुरे की भलाई होती है, जो मन करेंगे वही होगा। जो सब कुछ जानता है, वही सब कुछ जानता है।
कबीरा तेरे जैसा कोई नहीं।
जैसा तू चाहे वैसा होय।
अर्थ: कबीर, तेरे जैसा कोई और नहीं है। जैसा तू चाहता है, वैसा हो जाएगा।
ज्ञानी के होत नाहीं बिकार, ज्ञानी से बचें कोय।
ज्ञानी बिन आपन ज्ञान, अँधे घाट चार कोय।
अर्थ: ज्ञानी के अंदर कोई दोष नहीं होता, कोई उसे बचाने की कोशिश न करें। ज्ञानी के बिना आपको ज्ञान नहीं मिलता है, ऐसे ही अंधे लोगों को चारों ओर बहाने पड़ते हैं।
संसार की राज्य नहीं खाया, रहा न खेल खेल।
आपन मन की दुधिया, बैठा सब ग्यान मेल।
अर्थ: संसार की राज्य को नहीं खाया, खेलने का समय नहीं रहा। अपने मन की दुधिया (अंतरंग ज्ञान) पीकर, सब ज्ञान को आपसे मिलाया।
मुखे बोले राम नाम, बीच सब सुन्दर साथ।
तजि जोबन करि छोड़िये, मन बांच उर धारै तात।
अर्थ: मुख से राम नाम का जाप करें, सब के सामने सुंदर बातें करें। युवाओं को छोड़कर अपने बुढ़ापे में मन को पकड़ कर रखें, उसे ही अपना सत्य धारण करें।
जब मैल नहीं राम नाम का, तो फिर कहे क्या साथ।
जब राम नाम का मैल है, तो काया के तेरे नात।
अर्थ: जब राम नाम की पवित्रता नहीं है, तो फिर बाकी सब कहने का क्या महत्व। जब राम नाम में दोष है, तो तेरे शरीर के क्या नाते हैं।
बिन घाट तो बिरखोए बैठा, कर कैसे जो जीव।
जो जीव बिना त्रिपुणी ज्ञान, सोई घाटी घाट सरीर।
अर्थ: जो व्यक्ति त्रिपुणी ज्ञान (तीनों गुणों का ज्ञान) के बिना है, वह शरीर में एक घाट (उपादि, प्राण, मन) के बिना बैठा हुआ है।
अँधे की बाट, कौन टारे?
जो बिन विद्या सों न्यारे।
अर्थ: अंधे की बाट कौन टांग सकता है? वे व्यक्ति न्यारे हैं जो विद्या के बिना हैं।
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चांदी का बरतन रात को राखूं, दिन में जगदीश देखूं।
यह तो जग जीवन अजब खेल, किसके होंठ न सेहूं।
अर्थ: चांदी के बरतन को रात में रखता हूं, दिन में जगदीश को देखता हूं। यह सभी जगत का अजीब खेल है, जिसके होंठों पर नहीं सहूं।
मनुष्य नाम अनमोल रे, ज्ञान भली करै साथ।
ज्ञान बिना बुद्धि नहीं रे, सब जगत तोय खाथ।
अर्थ: मनुष्य का नाम अनमोल है, ज्ञान के साथ उसकी बुद्धि में सुधार होता है। बिना ज्ञान के, सभी जगत तबाही को जाते हैं।
बारिशा बरसे तानी घाट, उत्पत भरे बैठ।
जब जोर लगावै घड़ी, तो ढहै न गिरै छात।
अर्थ: बारिश होने पर घाट भर जाते हैं, जब जोर से बारिश होती है, तब छाता नहीं गिरता है।
बारिश बिन पानी बाटे, छाया न लागै छात।
जो नर जीवत रहै, सो बहुरि ज्ञानी मात।
अर्थ: बिना बारिश के पानी के, छाता तो छाया नहीं दे सकती। जो व्यक्ति जीवित रहता है, वह बार-बार ज्ञानी बनता है।
बिन पानी ज्ञान कैसे पावैं, जो नर अंध होए।
बिन पानी ज्ञान बाटे बिन, कैसे तरस लगाए।
अर्थ: जो व्यक्ति अंधा हो जाता है, वह बिना ज्ञान के कैसे प्राप्त कर सकता है। बिना ज्ञान के ज्ञान को कैसे समझ सकता है।
ज्ञानी के होत नहीं बिकार, तेल नहीं बैरी कोय।
ज्ञानी ज्ञान समझे विचार, निज घाट चार सोय।
अर्थ: ज्ञानी के अंदर कोई दोष नहीं होता, ऐसे कोई बिकारी नहीं होता। ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान को समझता है और अपनी चारों धाराओं (उपादि, प्राण, मन, बुद्धि) को समझता है।
ज्ञानी गुरु को अमर होता, ज्ञानी का साथ।
ज्ञानी को गुरु नहीं मिले, विचार न चांगे साथ।
अर्थ: ज्ञानी व्यक्ति के लिए गुरु अमर होता है, गुरु का संग होना ज्ञानी के लिए आवश्यक है। जब तक ज्ञानी को गुरु नहीं मिलता है, उसके विचार और साथी नहीं बदलते हैं।
ज्ञान का नैन कहा बतावैं, ज्ञानी को न देखैं कोय।
ज्ञानी ज्ञानी ही जानैं, ज्ञानी को सब होय।
अर्थ: ज्ञान के आंखों की जगह कहाँ बताएँ, कोई ज्ञानी को देख नहीं सकता। ज्ञानी को सिर्फ दूसरे ज्ञानी ही समझ सकते हैं, ज्ञानी को सब कुछ हो जाता है।
ज्ञान के सागर में बहें, बहे ज्ञानी नाव।
ज्ञानी समुद्र में बहें, तब होय सर्वनाथ।
अर्थ: ज्ञान के सागर में बहने वाले, वे हैं ज्ञानी नाव (ज्ञानी व्यक्ति)। जब ज्ञानी समुद्र में बहते हैं, तब वे सर्वश्रेष्ठ होते हैं।
ज्ञानी की ज्यों बत्ती, बुझें सब आपात।
ज्ञानी का अंधकार मिटे, जग में होय प्रकाशमान।
अर्थ: ज्ञानी की ज्योति के जैसे, सभी आपदाओं का समाधान हो जाता है। जब ज्ञानी का अंधकार दूर होता है, तब वह जगत में प्रकाशित होता है।
ज्ञानी को नर न कहावैं, ज्ञानी ब्रह्म सोय।
ज्ञानी ज्ञानी सो कहवैं, नर बहुरि ज्ञान खोय।
अर्थ: ज्ञानी को मनुष्य नहीं कहांगा, ज्ञानी ब्रह्म (आत्मा) हैं। ज्ञानी को ज्ञानी ही कहा जाता है, मनुष्य बार-बार ज्ञान को खो देते हैं।
ज्ञानी ज्ञानी जानैं, बिन विचार जाने।
ज्ञानी ज्ञानी सोय जान, ज्ञान छुवैं कोय।
अर्थ: ज्ञानी ही ज्ञान को समझता है, बिना सोचे-समझे ही। ज्ञानी को ज्ञानी ही ज्ञात होता है, ज्ञान को कोई छू नहीं सकता।
ज्ञानी ज्ञानी सब ठाय, ज्ञानी को न डरैं कोय।
ज्ञानी ज्ञान को छोड़ैं, ज्ञानी ज्ञान मिटाएं सब जग कोय।
अर्थ: ज्ञानी सबको समझता है, कोई ज्ञानी का भय नहीं करता। ज्ञानी ज्ञान को छोड़ देता है, ज्ञानी ही सभी जगत के ज्ञान को मिटा देता है।
ज्ञानी को रहैं अकुल रे, ज्ञानी सबको सुख।
ज्ञानी ज्ञान निज देहा, बिन सब काज सुख।
अर्थ: ज्ञानी शांत रहता है, ज्ञानी सभी को सुख प्रदान करता है। ज्ञानी को ज्ञान ही अपना शरीर होता है, उसके बिना सभी कार्य सुखद नहीं होते।
ज्ञानी को ज्ञान दिखाए, ज्ञानी को बुद्धि भाए।
ज्ञानी ज्ञान से बढ़कर, ज्ञानी जग को सुखदाए।
अर्थ: ज्ञानी को ज्ञान प्रदान करें, ज्ञानी को समझ बढ़ाएं। ज्ञानी ज्ञान के माध्यम से आगे बढ़कर, जगत को सुख प्रदान करता है।
ज्ञानी के सम ज्ञान है, ज्ञानी को जग के पास।
ज्ञानी के पास कोई नहीं, ज्ञानी सबके उपास।
अर्थ: ज्ञानी का सम ही ज्ञान है, ज्ञानी जगत के पास है। ज्ञानी के पास कोई और नहीं होता, ज्ञानी को सभी लोग पूजते हैं।
ज्ञानी को जग जानत है, ज्ञानी को सब कुछ ज्ञात।
ज्ञानी का नाम सदा है, ज्ञानी ज्ञान के भात।
अर्थ: ज्ञानी को जगत जानता है, ज्ञानी को सब कुछ ज्ञात होता है। ज्ञानी का नाम हमेशा रहता है, ज्ञानी ज्ञान के भागी होता है।
ज्ञानी ज्ञान का आधार, ज्ञानी ब्रह्म के नाम।
ज्ञानी ज्ञान से पूर्ण, ज्ञानी सबको शान।
अर्थ: ज्ञानी ज्ञान का आधार होता है, ज्ञानी ब्रह्म (आत्मा) के नाम से ज्ञात होता है। ज्ञानी ज्ञान से पूर्ण होता है, ज्ञानी सबको गर्व महसूस कराता है।
ज्ञानी का दिल शांत रे, ज्ञानी को सब सुख।
ज्ञानी को जगत में रहैं, ज्ञानी का बस्तु चुक।
अर्थ: ज्ञानी का मन शांत होता है, ज्ञानी को सभी सुख प्राप्त होते हैं। ज्ञानी जगत में रहता है, ज्ञानी का बस्तुस्थान सर्वत्र होता है।
ज्ञानी का सब कुछ सोय, ज्ञानी को किसको काम।
ज्ञानी के सम ज्ञान है, ज्ञानी जग को नाम।
अर्थ: ज्ञानी का सब कुछ आत्मा में समाया हुआ है, ज्ञानी को किसी के लिए कोई काम नहीं होता। ज्ञानी का सम ही ज्ञान है, ज्ञानी जगत के लिए एक पहचान है।
ज्ञानी के चरण धोयें, ज्ञानी की ज्योति जलाएं।
ज्ञानी के सत्संग में, आत्मा प्रभु रंग धराएं।
अर्थ: ज्ञानी के पाद धोएं, ज्ञानी की ज्योति जलाएं। ज्ञानी के सत्संग (सत्संगति) में, आत्मा ईश्वर के रंग में रंग लें।
ज्ञानी जगत के नेता, ज्ञानी को सब आप।
ज्ञानी ज्ञान के मार्ग पर, ज्ञानी का रहे संग।
अर्थ: ज्ञानी जगत के नेता हैं, ज्ञानी सभी के आप होते हैं। ज्ञानी ज्ञान के मार्ग पर चलते हैं, ज्ञानी का संग बना रहना चाहिए।
ज्ञानी ज्ञान का वारी, ज्ञानी की वाणी प्रभु की बाणी।
ज्ञानी को सब समर्पित, ज्ञानी का अद्भुत ज्ञानी।
अर्थ: ज्ञानी ज्ञान की वाहकी हैं, ज्ञानी की वाणी ईश्वर की वाणी है। ज्ञानी को सब कुछ समर्पित होता है, ज्ञानी का ज्ञान अद्भुत होता है।
ज्ञानी ज्ञान सुनावें, ज्ञानी को जग राखूं।
ज्ञानी का नाम सुनते, भाग्य बदल जाए।
अर्थ: ज्ञानी ज्ञान सुनाते हैं, ज्ञानी को जगत में समर्पित रखता हूं। ज्ञानी के नाम को सुनकर, भाग्य बदल जाता है।
ज्ञानी का स्वभाव सदा भला, ज्ञानी को आप जाने।
ज्ञानी की वाणी सुनते, सब जग में आपन राम बने।
अर्थ: ज्ञानी का स्वभाव हमेशा भला होता है, ज्ञानी को आप (ईश्वर) ही जानते हैं। ज्ञानी की वाणी को सुनते हुए, सभी जगत में आपको राम (ईश्वर) माना जाता है।
Conclusion
संक्षेप में कहें तो, कबीर दास के Kabir ke Dohe in Hindi Pdf साहित्य के महत्वपूर्ण अंश हैं। उनके द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाएं आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक विषयों पर अपने आदर्शों को प्रकट करती हैं। इन दोहों का महत्व भारतीय संस्कृति और मानवता के लिए अनमोल है। कबीर दास ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को सत्य की खोज में प्रेरित किया और मानवीय मूल्यों को समझाने का कार्य किया। Kabir ke Dohe को ध्यान से पढ़कर हमें जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का अनुभव होता है।
और हमें एक बेहतर और समग्र जीवन जीने के लिए अनुभव करते हैं। kabeer daas ke dohe हमारे समाज में समरसता, तालमेल, धार्मिक सहयोग और सद्भावना के मूल्यों को स्थापित करने में मदद करते हैं। इसलिए, हमें ये दोहे न सिर्फ पढ़ने के लिए बल्कि उनके आदर्शों को अपने जीवन में अमल करने के लिए भी याद रखने चाहिए।