बेबस पिता की दर्द भरी कहानी | Sad Story in Hindi | sad story in hindi for life

आज के कहानी एक वेवस पिता और माता पर आधारित हैं। जीसको सुनकर हर वो आँखे रो पड़ेगा जो वाकई अपने माँ बाप से  मोहब्बत करते है। sad story in hindi कहानी को पूरा पढ़िए बहुत ज़बरदस्त कहानी है। ये कहानी कोई काल्पनिक नहीं हैं बल्कि हकीकत की कहानी हैं।

सुमैया मेहमूद एक आम आदमी सा घरेलू कामो में रहा करते थे। मियां बीवी में बहुत मोहबत की चाह थी। मेरे पति महमूद बहुत अच्छी आदत के थे। लेकिन मेरी भी यही कहानी है जो अक्सर औरतों की होती है। शादी के बाद उसके ऊपर तीन बच्चों के साथ घर की जिम्मेदारी। और महमूद साहब की कम सैलरी पर गुजर बसर करना। मेरे लिए बड़ा मुश्किल काम था। जबकि कोई घरेलू मददगार भी न था।

ऐसे हालात से मेरी तरह और भी बहुत सी औरतें गुजरती होंगी, लेकिन जो किस्सा मेरे साथ पेश आया उसने मेरी जिंदगी बदल के रख दी। यह उन दिनों की बात है जब मेरी शादी के 6 साल बीत गए थे। हर बार ऊपर वाले ने सिर्फ बेटियां ही दी थी। लेकिन तीनों बेटियों में सबका डेढ़  डेढ़  साल का ही फर्क था। उन्हें ठीक से संभाल भी नहीं पाती थी। महमूद का छोटा सा घर है। कम सैलरी ना कोई नौकर न चाकर, छोटे छोटे बच्चों के साथ मुझे अकेले घर के कामकाज संभाले नहीं संभलते थे।

महमूद भी अपने माँ बाप की इकलोते संतान हैं। अनूप रावत उनके आबा मेरे शादी से चंद साल पहले ही गुजर चूके थे और मेरी सास मेरी शादी की 1 साल बाद ही चल बसी थी। एक अकेली औरत के लिए कठिनाइयों से भरा हिस्सा में बड़ा मुश्किल होता। हालांकि वह महमूद साहब सुबह नाश्ता बनाने में मेरी मदद करते थे लेकिन जब वो अपने ऑफिस चले जाते तो मेरा पूरा दिन घनचक्कर बने गुजरा  करना पड़ता था।

दिन बड़ी मुश्किल से गुजर रहे थे। घर पर मेरे आलावा कोई नहीं था जो मेरी बात सुनता है। महमूद शाम को घर लौटते तो वो भी आते ही बच्चों में लग जाते थे। और रात का खाना खाते ही हम दोनों अपनी जिम्मेदारियों से इस कदर थके मारे होते थे कि लेटते ही सो जाते थे। एक तो बच्चों की थका देने वाली जिम्मेदारी उस पर घर की साफ सफाई, खाना दारी ये दिन मुझ पर बड़े कठिन गुजर रहे थे।

लेकिन फिर 1 दिन महमूद एक बड़ी सी उम्र के शख्स को अपने साथ घर ले आये और फिर मुझसे बोले की लो बेगम साहिबा, तुम्हारा मसला ऊपर वाले ने हल करवा दिया है। आज से नौकर तुम्हारे सारे काम कर दिया करेगा और बच्चों को भी संभाल लेगा। जो काम कहोगे ये इनकार नहीं करेगा। वह शाम को 7:00 बजे के बाद वापस चला जाया करेगा।

महमूद मुझसे कहने लगे कि ये बुजुर्ग मेरे ऑफिस के बॉस  के घर के नौकर हैं। वो लोग कुछ नहीं ने के लिए दुबई घूमने फिरने गए हैं और यह उनका कोई करीबी रिश्तेदार भी नहीं है। इसलिए उन्होंने कहा है कि मैं उन्हें अपने साथ ले जाऊ। जो भी कामकाज हो तो बता देना।

देखने में वो अच्छे खासे अधेड़ उम्र के थे। चेहरे पर शर्मिंदगी ही छाई हुई थी, शर के सारे बाल सफेद थे। नज़रें झुकाए खड़े थे। मैंने सोचा कोई औरत होती तो मुझे कुछ सुकून भी होता। यह बुजुर्ग आदमी भला मेरी क्या मदद कर सकते हैं? लेकिन महमूद के बॉस का हुक्म था तो इसीलिए हम कुछ कह नहीं सकते थे। वे सुबह 8:00 बजे तक घर पहुँच जाते थे और शाम को 7:00 बजे के बाद वापस चले जाते थे।

sad story in hindi

Sad Story in Hindi sad story in hindi for life

घर का कामकाज मैं उनसे क्या करवा सकती थी? हाँ उनके आने से  एक जरूर काम आसान हुआ था। बच्चे उनके साथ घुल मिल  गए थे और फिर वो छोटे मोटे काम कर देते थे। वो मुझे बिटिया कहकर पुकारते थे। मैं किचन में बिज़ी होती तो खुद भी किचन में आ जाते और कहने लगते। दे दिया। मुझे चाय बनानी आती है और सब्जी भी अच्छे काट लेता हूँ। कोई काम हो तो बिना झिझक कह दिया करो।

पुराना साल लिबास पहने हुए रुमाल अटकाए। वह गर्मी में माथे का पसीना पूछते हुए मेरा एहसास करने आ जाते। वो मेरे पिता की उम्र के थे, मुझे उन्हें काम करते हुए भी शर्म आती थी। बड़े मियाँ आप रहने दे हम कौन सा अमीर है? जो हमारा हुक्मपुरा करना आप पर जरूरी है। बस आप बच्चों को संभाल लिया करे और बाजार से सामान ला लिया करे।

मुझे उनके आ जाने से बड़ी सहूलियत अच्छी हो गयी थी। बाजार की चीजों में उनसे मंगवा लेती थी और सात बजते ही वो आपसी के लिए तैयार खड़े होते थे। फिर मुझसे इजाजत मांगते बिटिया मैं जाऊं। जब मैं कहती हाँ जाए तो कह दें कि मुझे 10 रूपये दे दे। ऐसी है तो मेरे पास अक्सर होती ही थे। मैं रोज़ 10 रुपये उनके मांगने पर उन्हें दे देती थी।

एक बार मैंने उन्हें सौ का नोट दिया कि रख लें लेकिन बड़े मियां ने वापस कर दिया। कहने लगे बेटा सिर्फ 10 रुपया ही लूँगा, मैंने बहुत कहा की मैं अपनी खुशी से सौ रुपए दे रही हूँ, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। कहने लगे। बस 10 रुपया ही लूँगा। मुझे उनकी ये बात कुछ अजीब सी लगी। दो महीने गुजर गए थे इसलिए मैं अब उन बड़े मियाँ से अच्छी खासी गुल मिल गई थी।

किचन में मैं  जब खाना बना रही होती, तो बर्तन धोने लगते और कभी सब्जी बना देते, जब मैं उनकी मौजूदगी में किचन में काम करने लगी थी, तब वो मेरे से बच्चों के बारे में बात कर लेते थे। कभी सब्जी काटते हुए खाने की रेसिपी पूछने लगते। मुझे अब उनसे किसी भी चीज़ की चर्चा करने में सर्मिंदगी सी महसूस नहीं होती थी। एक बार मैंने उनसे उनके घरवालों के बारे में पूछा तो कदम से उनके चेहरे की मुस्कराहट गायब हो गई थी। चेहरा टेढ़ा सा होने लगा और फिर मुझे गुस्से से देखने लगे।

पहली बार मुझे उनसे डर सा महसूस हुआ था। मैं उनसे नज़रें चुरा ली । लेकिन उन्होंने मुझे कोई जवाब नहीं दिया। बस वे खामोशी से किचन से बाहर निकल गए। पहले तो मैंने सोचा कि मुझे क्या पड़ी थी उनसे उनके घरवालों के बारे में पूछने के लिए। बेहतर है कि अपने काम से काम रखो। खैर, अगले दिन उनका व्यवहार पहले जैसा था, फिर बातों ही बातों में वो अपने मालिक के किस्से सुनाने लगे थे।

मैंने एक बार एक और सवाल पूछी की बड़े मियां असलम साहब की बीवी का तो कभी आपने जिक्र ही नहीं किया वह कैसी है? मैं किचन में सलाद काटते हुए पूछने लगी, वो भी वही बैठे थे, एक ठंडी गहरी सांस ली। फिर कहने लगे मिज़ाज की तेज हैं, लेकिन अच्छी है, अब क्या करे? नौकर है तो नखरा क्या हमें तो बस काम से मतलब है। वो लापरवाही भी खाने लगे। बड़े मियां असलम साहब आपके तनख्वाह क्या देते है? नहीं नहीं, सलाद पलेट में सजाते हुए पूछा। वो कुछ पल के लिए मुझे ज़ोर से देखने लगे। चेहरे का रंग फिर से बदल गया और इस बार भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

बस बात को टाल दिए। मैं ज़रा बच्चों को देख लू। फिर वो किचन से बाहर निकल गए, एक बार वो बर्तन धो रहे थे। गर्मियाँ अपने जोर पर थी, इसलिए उन्होंने अपनी आस्तीनें ऊपर चढ़ाकर आटा गूंद रहे थे। जब मेरी नजर उसके हाथ पर पड़ी तो गहरे गहरे जख्मों के निशान थे। लग रहा था कि जैसा बुरी तरह से हाथ जला हो। बड़े मियाँ ये कैसे जला हुआ था? वे सुनकर हड़बड़ा गए। मेरा उनके हाथ को देखकर दिल दहल गया था। हड़बड़ाहट के मारे उनके हाथ से प्लेट छूटकर सिंख के में गिर गई। फिर उन्होंने जल्दी से अपनी आस्तीनें नीचे की ओर किये और  फिर से बर्तन धोने लगे।

लेकिन चेहरे पर एक ही घाटा सी छाईं हुई थी। ना जाने क्यों मुझे उन पर कुछ ऐसा शख्स होने लगा था। शाम के सात बजते ही उन्हें बस वापसी की जल्दी होती थी। कई बार महमूद ने उनसे कहा भी था कि हमारे घर में एक कमरा मेहमानों के लिए खाली है, आप वहाँ आराम कर लिया करें या कुछ देर और रुक जाए। लेकिन नहीं। जल्दबाजी दिखाते। जैसे कोई उनका इंतजार कर रहा हो। एक बार खुद ही बातों बातों वो अपनी बीवी का जिक्र करने लगे। बड़ा ख्याल रखती हैं वो, जैसे तुम मेहमूद मियां को रखती हो

अल्लाह तुम दोनों की जोड़ी सलामत रखे जो गुजियों। सौदा सलामत रहो। बड़े मियाँ, आपको बड़ी आमा से बड़ी मोहब्बत है तभी तो 7 बजते ही आपको जाने की जल्दी होती है वो इंतज़ार में रहती होगी। मेरी बात एक उलझन से उनके चेहरे पर छा गई। किसी गहरी सोच में डूब कर बोले। ठीक कहती हो बेटियां मेरे इंतजार में ही होती है कि मैं ज़रा भी लेट हो जाऊं तो दरवाजे पर फिक्र मंदी से खड़ी राह ताकने लगती है।

घर जाता हूँ तो उसके पास बैठता हूँ।  पोतियां आकर गले लग जाती हैं, हाथ झूमते है, दादा अब्बा कहकर मेरे दायें बाएं बैठ जाती है, बहु आकर सिर पर प्यार लेती है, पानी का गिलास लेकर देती हैं। बाबा मियां खाना घरम है कहिये तो लगा दुगु लेकिन एक तुम हो की खाना खिलाये बिना जाने ही नहीं देती।

मुझे उसे रोज़ इनकार करते हुए शर्म आती है। फिर रात को बेटा घंटों टांगें दबाता रहता है। मैं कहता हूँ कि तुम खुद थके मारने आते हो, फिर मुझे क्यों दबाने आ गए?  मैं भी दिन भर करता ही क्या हूँ मैमूद मिया और सुमैया मुझे काम कहाँ करने देते हैं। मेरा बड़ा ख्याल रखते हैं लेकिन कहता है अब्बा मियां। जब तक आप की सेवा न कर दूँ तो मुझे नींद नहीं आती यह उनकी बातें सुनकर मैंने कहा बहुत हैं जो माँ बाप की इतनी सेवा करती है।

फिर बड़े मियाँ बोले असलम की माँ जब तक दिनभर की सारी बातें मुझे न बता ले, उसे कहा चयन पड़ता है, बस उसकी बाते ही खत्म नहीं होती। आंख लग जाती है। ये कहकर वह हंसने लगे मैं कहता हूँ उम्र गुजर गई जमीली पर तुम्हारी मोहब्बत अब भी वैसी ही है। फिर वो बड़े मियाँ मुस्कुराते हुए आँखों में आई नमी स्थापित करने लगे, जो शायद उनकी हंसना अब आँखों में आंसू भर आयी थी। असल मोहब्बत तो बड़े मियाँ वही है जो बड़ी करती है औरत की मोहब्त कहा पुरानी होती है।

वो तो बात गुज़रने के साथ साथ और भी ज्यादा मजबूत होती चली जाती है। मेरी बात पर वो मुझे दूर से देखने लगे, तुम बिल्कुल जमीला की तरह बातें करती हो, सोचता हूँ अगर मेरी कोई बेटी होती तो बिलकुल तुम जैसी होती। हूँ। मुस्कुराते हुए बोले आप नौकरी क्यों करते हैं? बड़े मियाँ मेरे सवाल पर वो फिर से रुख बदल गए थे। अजीब सा मिज़ाज था उनका कभी बात करने पर आती तो कई घंटों तक अपने घरवालों को किस्से सुनाते रहते थे। कभी किसी सवाल पर बिना जवाब दिए ही उठकर चले जाते। तब भी बिना जवाब दिए ही उठकर चले गए थे।

फिर मुझे एहसास हुआ कि शायद उन्हें पैसों की जरूरत होगी। बेटे की सैलरी ज्यादा नहीं होगी तभी तो इस उम्र में मेहनत कर रहे हैं। नहीं नहीं। महमूद से कहा कि आप का बॉस बड़े मियाँ को महीने की सैलरी तो देता ही होगा, जिससे उसका गुजर बसर तो हो ही जाता होगा, लेकिन अब आपके बॉस यहाँ नहीं है तो बड़े मियां के घर वालों का खर्च में बड़ी मुश्किल होती होंगी। आप उन्हें और पैसा दे  दिया करे  ताकि वह अपने घर को अच्छी तरह से चला सके, महबूब साहब बोले की वो लें तब ना हर बार इनकार कर देते हैं बेटा सुमैया दे देती है यही मेरे गुजारे के लिए। काफी है।

महमूद की बात सुनकर उस बार मैंने ठान ली थी कि बड़े मियाँ से पूछूंगी जरूर कि 10 रुपये के नोट से आखिर होता क्या है? अगले रोज़ मैंने बड़े मियाँ को 10 रुपये का नोट देते हुए पूछ ही लिया कि उन्हें मिलता क्या है? इस बार वो खामोशी से बाहर नहीं गए थे बल्कि मुझसे कहने लगे मेरे घर आना और सब अपनी आँखों से देख लेना।

अगले दिन जब मैं उनके घर गई तो मेरे पांव तले से जमीन निकल गयी। मैं और महमूद दोनों ही बड़े मियां के साथ उनके घर गए थे। एक पुराना सा इलाका था। छोटी छोटी गलियां थी। तंग सा माहौल था। एक गली में दाखिल होते ही दो चार घरो के बाद गली बंद थी। आखिरी मकान के सामने हम बड़े मियां के साथ खड़े हो गए लेकिन दरवाजा बंद नहीं था। हल्के से धक्के से ही खुल गया था। मैंने और महमूद ने एक दूसरे को हैरत से देखा। फिर हम अंदर दाखिल हो गए। घर बिल्कुल विरान सा था। घर के अंदर दाखिल होते ही बड़ा सा आँगन था और सामने तीन कमरे थे।

हर कमरे के दो लकड़ी के दरवाजे थे। आंगन में लगे पेड़ सूख चूके थे। हरचीज मिट्टी का ढेर थी। आंगन के एक कोने में एक कब्र देखकर मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई थी, जिसकी मिट्टी गिरी हुई थी। घर में कोई और मौजूद नहीं था। वीरानी का राज़ था। बड़े नियत की चारपाई भी उस कब्र के बाईं तरफ बिछी हुई थी। करीब ही मिट्टी का घड़ा रखा हुआ था और उस पर स्टील का गिलास जो उल्टा रखा था।

बड़े मियाँ सबसे पहले उस कब्र पर गए। जमीला देखो तो सही कौन आया है? अरे तुम को बताया तो था की बेटियां आने की जिद कर रही है, बहाने बनाकर तुम लोगो के बारे में पूछती रहती है, इसलिए इस बार साथ ले आया। मेरे कदम तो यह सब देखकर वहीं जम गए थे। महमूद की हालत भी मुझसे कुछ अलग थी बड़े मियाँ ने अपने जेब से अगरबत्ती निकाली। और माचिस से जलकर कब्र पर लगा दी।

sad story in hindi for life

Sad Story in Hindi sad story in hindi for life

फिर पलटकर हमें देखने लगे तुम दोनों क्यों रुक गए? अरे आओ न तुम पूछती हो की मैं 10 रुपये क्यों लेता हूँ? जमीला को अगरबत्ती की खुशबू बड़ी पसंद है इसलिए उसके लिए ले आता हूँ। खुश हो जाती हैं बेचारी चलो तुम्हें अपनी बहू से मिलवाता हूँ। बावर्ची खाने में होगी। वो मेरे लिए खाना तैयार करके रखती है। ये अब्बा मियां को आते ही भूख लगी होगी। ये कहकर वो मेरे पास आए राह हाथ थामकर अपने बावर्ची खाने ले गए।

जहाँ के हालत भी बाकी घर जैसे ही है। काली बावर्ची खाना था, चंद स्टील के बर्तन थे, वो भी मिट्टी से सने हुए। मुझे लगा शायद उनकी फैमिली किसी हादसे का शिकार हो गई है। सभी शायद दुनिया छोड़ चूके हैं इसलिए। कार है, उसी से बचने के लिए बिना सैलरी के काम करते हैं। फिर वो मुझे और महमूद को अपने बेटे के कमरे में ले गए। हालांकि कमरे में कोई नहीं था लेकिन दीवार पर लगी तस्वीर देखकर महमूद और मेरे होश उड़ गए थे। खौफ की नजर से हमने बड़े मियाँ को देखा था। तस्वीर में बड़े मियाँ अपने बेटे और बहू के साथ खड़े मुस्करा रहे थे।

बेटा जवान 21 या 22 साल का लग रहा था और बहु शायद 19 या 20 साल की होगी। महमूद की आंखें फैली हुई थी। ये तो असलम सर है। महमूद ने तस्वीर के सामने। उस नौजवान की तरफ ऊँगली उठाकर हैरत से कहा, उनके मुँह से यह सुनकर अब मैं निठुर सी होकर रह गई थी, मेरे आज तक महमूद के बॉस को नहीं देखा था, बस जिक्र ही सुना था। बड़े मियाँ, आप असलम सर के बाबा हैं? महमूद की आवाज़ हैरत के मारे कापते हुए निकल रही थी, बड़े मिया की आंखो से आंसू निकलना सुरु हो गए थे। बड़े मिया ने बोले नहीं बेटा मैं तो उसका नौकर हूँ। अब वो फूट फूटकर रोने लगे थे।

महमूद ने आगे बढ़कर उन्हें गले से लगा लिया। अब वो महमूद के गले लगाकर फूट फूट कर रो रहे थे। मेरी आँखें ये सब देखकर पथरा सी गयी थी मेरा घर बार मेरा सब कुछ बर्बाद हो गया है बेटा मैं तो आज तक ये नहीं समझ पाया। ही मेरा कसूर क्या था? मैंने तो हमेशा अपने माँ बाप की सेवा की थी। बेटे की अच्छी परवरिश की खातिर उसे अच्छी शिक्षा दिलवाने की खातिर खुद के नींद चैन सब हराम कर लिया थे। शुरू से ही रफ़ी साहब के घर नौकर था। उस वक्त मुझे रोज़ 10 रूपये मिलते थे, उससे मेरा घर अच्छा चल रहा था।

सुबह से डिपटी रात 8:00 बजे तक की थी। असलम छोटा था मेरी बीवी पूरा दिन मेरे माँ बाप की सेवा में गुजार देती थी, कभी इतनी हिम्मत भी नहीं कर पाई, कि मेरी माँ के किसी काम को इनकार कर दे या मेरे बाप को आंख उठाकर देखती बस सिर झुकाए दिन रात सास ससुर की सेवा में गुजार दिए। मैं 9:00 बजे तक घर लौटता था, अपने बाबा की टांगें दबाकर माँ की दिल की बातें सुन  सुनकर बीवी के पास जाने की बारी आती थी। बस वही एक 2 घंटे की हमारी अपनी जिंदगी थी, हम हस्ते थे, बाते करते थे।

असलम के जन्म होने के बाद हमने खुद को पूरी तरह से बदल लिया था। हमने सोचा कि हम तो अनपढ़ है। इसलिए लोगों की नौकरी करके उनके झूठे  खाने खाने पर मजबूर है। बेटा पढ़ लिख जायेगा तो हमारे भी दिन बदल जाएंगे वक्त आगे बढ़ता रहा। मेरे माँ बाप भी एक के बाद एक दुनिया से चले गए। कब जमीला ने अम्मा की जगह ले ली, कभी खबर भी न हुई। हमारे से यह बाल खूबसूरत जवानी, आश्रम की परवरिश और ख्वाहिशात के सामान इकट्ठे करते करते बुढ़ापे की दहलीज पर पहुँच गई।

असलम अब नौकरी पर लग चुका था। मैंने अपने सेठ रफ़ी साहब से कहकर असलम की उनके ऑफिस में नौकरी लगवा दी, वो भी मेरी बात मान गए क्योंकि मैंने सारी जवानी उनके घर की सेवा में गुजारी थी। बस रोज़ के 10 रुपया की सैलरी पर, बाकी वो अपने घर का बचा खाना और जूते कपड़े दे देते थे, जिन्हें पहनकर मैंने और जमीला के वक्त गुज़ारा करता था। साहब की एक ही बेटी थी जिसका नाम गुलनाज हैं यह भी इकलौती हैं इसलिए घमंडी और बदतमीज भी हैं । मुझे तो नौकर कहकर पुकारतीं थी, लेकिन बहरहाल जब मैं नौकर था तो नखरे क्या दिखाता?

बात यही तक रहती तो तकलीफ न देती। असलम की सैलरी अच्छी लग रही थी। मैंने सोचा अब हम दोनों बूढ़े बूढी की दिन बदल जाएंगे। मैं भी अब नौकरी छोड़ घर बैठ जाऊंगा। जो वक्त मैं जवानी में बीवी को दे नहीं पाया, वह हम दोनों बुढ़ापे में साथ गुजार लेंगे। सोच तो यही थी कि जैसी सेवा जमीला ने मेरे माँ बाप की की है, बहु भी वैसी ही हमारे भी करेगी।

असलम की पहली सैलरी मिलने पर मैंने रफ़ी साहब से कहा। की मुझे अब नौकरी से छूटी चाहिए, वो भी खुशी से मान गए। चंद महीने घर पर रहकर ही गुजारे थे कि 1 दिन रफ़ी साहब मेरे घर आए और गुलनाज के लिए असलम का रिश्ता मांगा। मैं तो हैरान रह गया। कहा असलम और कहा, गुलनाज। असलम खूबसूरत था और मेहनती भी था। रफ़ी साहब को और क्या चाहिए था? सारी जिंदगी मेरी तो गुलामी में रह गई थी, अब उन्हें आश्रम की गुलामी चाहिए थी।

sad love story in hindi

नाराज बेटी अगर किसी दूसरे घर विदा होकर जाती तो 4 दिन न रह पाती। इसलिए असलम को फंसा लिया और मेरा बेटा भी दौलत देखकर हवा में उड़ने लगा। मेरे लाख समझाने पर भी उससे शादी करने पर वो डटा रहा। बहरहाल, मुझे ही आखिर में बेटे की ख्वाहिश के सामने शर झुकाना पड़ा। गुलनाज चंद दिन ही हमारे घर की जीनत बनी फिर असलम को भी अपने साथ ले गयी।

जमीला बहुत दुखी हुई थी। लेकिन मैंने उसे समझाया कि बेटे की अपनी जिंदगी है, उसे गुजारने दो? वो कहने लगी कि मैंने भी तो अपनी जवाबी अपनी ख्वाहिशात पर मिट्टी डालकर असलम की ख्वाहिशात को पूरा करने में उम्र गुजार दी। क्या ये दिन देखने के लिए? मैंने कहा वो हमारा फर्ज था, वो रोने लगी, कहने लगी उसका कोई फर्ज नहीं है? मैंने उसे बहुत बहलाया लेकिन वो बीमार रहने लगी थी। असलम पहले पहिल तो हफ्ते में एक बार चेहरा दिखा जाता था। घर के खर्चे के लिए पैसे भी दे जाता था, लेकिन फिर उसका आना जाना कम हो गया।

मैंने जब, तब देखा कि बेटा अब खर्च भी नहीं देता तो किसी और घर में नौकरी कर ली। जमीला की जवानी भी मेरा इंतज़ार करते करते गुजरी थी और बुढ़ापा भी इंतज़ार की नजर हो गया। मुझे अगर ज़रा देर हो जाती तो दरवाजे की दहलीज पर खड़ी मेरा इंतज़ार करती रहती थी और यही इंतज़ार उसे 1 दिन कब्र में बदल दिया। मुझे अपने घर से बड़ा प्यार था, इसलिए मैंने जमीरा को कहीं नहीं जाने दिया और यही ऐसी आँगन की जमीन में दफना दिया। असलम मुझे जबरदस्ती अपने साथ ले गया।

मैं दिन वहाँ गुजारता था। लेकिन रात को मुझे लगता था कि जमीला अकेली है, इसलिए वापस घर पर ही रात गुजारता था। असलम कभी मुझे अपना बाप समझा ही नहीं। आज तक मुझे नौकर कहकर पुकारता हैं। मेरे लड़के के भी बच्चे अपने माँ के नक्शे कदम पर चल निकले हैं, इसलिए मेरी हैसियत उस घर में वही है। जो पहले होती थी।

अब भी मैं वंहा नौकरी करता हूँ। बस फर्क ये है कि अब रफ़ी साहब के बजाए रुपए नौकरी के गुलसेर बड़े हक से मांगता हूँ क्योंकि वो मेरी मेहनत की कमाई होती है। जमीला को अगरबत्ती की खुशबू बहुत पसंद है इसलिए 10 रुपये रुपए की अगरबत्ती ले आता हूँ। सोचता हूँ सारी जिंदगी जीस औलाद की ख्वाहिश पूरी करते करते गुजार दी। उसके पास दो वक्त के रोटी मुझे देने के लिए नहीं है। हमारे मेहमानों के सामने भी मुझे नौकर कहकर पुकारता है, मुझे दुख नहीं होता, क्योंकि जिंदगी नौकरी करते ही गुजरी है।

फिर नौकर कहलाने में कहा की शर्म/ अब जमीरा को वक्त देने का वक्त आया तो उसका वक्त पूरा हो चुका है। लेकिन फिर भी उसके पास मौजूद हूँ। बाते करता हूँ अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं मुझे।  बड़े मिया की बातें हम दोनों मियां बीवी ने आंसू बहाते हुए सुन रहे थे। रो रोकर मेरी हिचकी बन गयी थी। ये कैसा जुल्म था और कैसी अंधी नगरी थी? इतने बड़े घर के नौकरों कि कौन सी कमी थी जो एक ससुर की सेवा नहीं की जा सकती थी।

आज भी हम सभी के समज में इस तरह के घटना हो रहा हैं बेटे अपने माता पिता को उम्र गिराने पर देखभाल भी नहीं कर पा रहा हैं। यही बहुत ही सर्मिंदगी की बात हैं की जिसे माता पाता ने अपने बचे के लिए सबकुछ कुरबान कर देते हैं वही बच्चा एक अपने माँ बाप का दुशमन बन जाता हैं। आज की दर्द भरी कहानी आप सभी को कैसा लगा आप सब जरूर बताइये। धन्यबाद

long emotional story hindi

दर्द भरी मासूम लड़की की कहानी

BEST 5 SAD STORY IN HINDI

टॉप 100+ खतरनाक शायरी

Udtagyani.Com provides information and education. There is an effort toward learning politics, entertainment, health, economics, computers, IT, and science. It is a free platform to learn analytics and make effective decisions

Leave a Comment