mahila sashaktikaran aur samaj par nibandh

प्राचीन काल में नारी का स्थान अत्यन्त सम्मानपूर्ण था। उन्हें पुरुषों के साथ समानता का अधिकार प्राप्त था। मनु की इस युक्ति “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय विचार धारा में नारी को कितना गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है ? हमारे देश की नारियाँ सर्वथा देश और जाति के लिए बलिदान हुई हैं। आज के समय में भी (mahila sashaktikaran aur samaj par nibandh) 

 

प्राचीन काल में भारतीय नारियाँ शिक्षित एवं विदुषी होती थीं, गार्गी, मैत्रेयी आदि के नाम इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं । परन्तु समाज बदला। जहाँ नारी को देवी तथा लक्ष्मी के समान पूजा जाता था, वहाँ अब उसे पुरुषों की भोग्य वस्तु समझा जाने लगा। आज जब हम समाज में नारी की दशा का अवलोकन करते हैं, तो हमारा मस्तक लज्जा से झुक जाता है।

 

आज की नारी अपने अंक में दासता को छिपाये हुए है, (mahila sashaktikaran aur samaj par nibandh )

उसे प्रताड़ित तथा पीड़ित किया जाता है। उसके आत्म – सम्मान को भी महत्त्व नहीं दिया जाता, पुरुष- वर्ग नारी के साथ खिलवाड़ कर रहा है। वैदिक युग के बाद नारी- समाज का इतिहास शनैः शनैः पुरुषों की बेड़ियों, सामाजिक बन्धनों में जकड़ी जाने वाली नारी का इतिहास है।

mahila sashaktikaran aur samaj par nibandh

महिला सशक्तिकरण और समाज पर निबंध के दृष्टी से देखा जाए तो समाज में आज नारी की अत्यन्त शोचनीय दशा है। अभिभावक छोटी आयु में लड़कियों का विवाह कर देते हैं। उस समय उनको विवाह का वास्तविक ज्ञान तक नहीं होता। इस प्रकार पुरुष उसके बाल्यकाल में ही उसे भोग की वस्तु बना लेते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि सन्तान दुर्बल उत्पन्न होती है जो देश और जाति का नाममात्र को भी हित नहीं कर सकती।

 

वह रुग्ण सन्तान असमय की मृत्यु के मुँह में चली जाती है । कभी – कभी तो यहाँ तक देखा जाता है कि चौदह वर्ष की कन्या का विवाह चालीस वर्ष के पुरुष के साथ कर दिया जाता है जिससे उसका जीवन नष्ट हो जाता है। प्रौढ़ पति उस अबोध वधू को छोड़कर मृत्यु की गोद में समा जाता है और वह बेकार असहाय दर – दर ठोकर खाती फिरा करती है।

 

महिला सशक्तिकरण में समाज की भूमिका के क्या बात किया जाए जहां आज भी – समाज में विधवाओं की बड़ी दुर्दशा है। उन्हें आभूषण, सुन्दर वस्त्र तक पहनने की आज्ञा अथवा स्वतन्त्रता नहीं। मुस्कराना उनके लिए अभिशाप है। उनका दर्शन तक अशुभ माना जाता है। उन्हें जीवन के समस्त आनन्द से वंचित कर दिया जाता है।

 

कितना खेद का विषय है कि पुरुष तो अपनी इच्छानुसार कितनी तथा कभी भी शादी कर सकता है परन्तु विधवा होने पर बेचारी नारी को उसी हीनावस्था में सिसकने के लिए छोड़ दिया जाता है। महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता आज भी अच्छी तरह से लागू नहीं हो पाया है।

 

वर्तमान काल में नारियो की दशा mahila sashaktikaran aur samaj par nibandh

आज नारी पुरुष की अर्द्धांगिनी न रहकर उसकी गुलाम बन गई है, उसकी प्रेमिका न रहकर उसके भोग का साधन बन गई है। उसका सारा जीवन पराधीनता में बीत रहा है। पुरुष शायद यह भूल गया है कि वह नारी को सम्मान न देकर अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रहा है।

 

हिन्दुओं में नारियों के लिए पर्दा आवश्यक है। जो स्त्रियाँ पर्दा नहीं करतीं, वे समाज में लज्जाहीन समझी जाती हैं। शोक के साथ कहना पड़ता है कि पर्दे में रहने वाली नारियाँ भीरु एवं उत्साहहीन हो जाती हैं। उनके स्वास्थ्य का हास हो जाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने अपने ‘रामचरितमानस’ नामक ग्रन्थ में नारी के विषय में कहा है कि “ढोल, गँवार एवं शूद्र, पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।

 

स्त्री के लिए उनके द्वारा इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करना तत्कालीन समय की पुकार थी क्योंकि उस समय नारी को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था। भारतीय समाज में अन्धविश्वास , कुबुद्धि एवं अशिक्षा आज भी नारी के मस्तक से पूर्णरूपेण धुले नहीं हैं। स्त्री शिक्षा आज नाममात्र के लिए रह गयी है जो शिक्षा आज दी जाती है वह भी अपने उद्देश्य की पूर्ति करने में अमसर्थ है।

 

आधुनिक शिक्षा से महिला के सम्बद्ध (mahila sashaktikaran aur samaj par nibandh)

आधुनिक शिक्षा ने नारी को गृहलक्ष्मी न बनाकर उसे फैशन की तितली बना दिया है एवं पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगकर उसने भारतीय नारी के आदर्शों को भुला दिया है। आज हमारे समाज में नारी पर प्रतिबन्ध लगाये गये हैं परन्तु इनसे किसी भी प्रकार का सुधार होना सम्भव नहीं है । गोस्वामीजी ने अपने रामचरितमानस में एक स्थान पर कहा है कि ” जिमि स्वतन्त्र होहि बिगरहिं नारी। ” इतना ही नहीं नारी को अनेक प्रकार के अवगुणों से युक्त भी बताया गया है।

कवि तुलसीदासजी ने तो नारी के अन्दर आठ अवगुण बतलाये हैं ” साहस , अनृत , चपलता, माया, भय, अविवेक, असौच, अदाया। ” परन्तु नारी के विषय में जब तक इन सभी असंगतियों को दूर नहीं किया जाएगा तब तक भारतीय नारी के जीवन को सुधारा नहीं जा सकता है।

mahila sashaktikaran aur samaj par nibandh सुधार की आवश्यकता

हिन्दू समाज में नारियों में शिक्षा (stri shiksha) का नितान्त अभाव है। कुछ लोग अब भी यह कहते सुने जाते हैं कि स्त्रियाँ पढ़ने से कुमार्गगामी हो जाती हैं । शिक्षित स्त्रियों का आचरण संदेहात्मक हो जाता है। जो शिक्षा पुरुषों की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करती है वही नारियों के लिए हानिप्रद कैसे हो सकती है? यदि हम स्त्री को बच्चों का निर्माता मानते हैं तो स्त्री शिक्षा का होना नितान्त आवश्यक हो जाता है।

समाज में बालिकाओं को आभूषण पहनने का बड़ा चाव होता है। परिवार में आये दिन नारियाँ आभूषणों के लिए अपने पति को परेशान करती हैं। चाहे खाने को भोजन की व्यवस्था न हो , परन्तु उनके लिए आभूषणों का होना उनसे अधिक आवश्यक है। उन्हें चिन्ता नहीं , चाहे उनके पुत्र शिक्षा प्राप्त करें या नहीं, उन्हें आभूषण अवश्य चाहिए।

स्त्रियों पर अनेक अत्याचार किये जाते रहे हैं। विवाह के विषय में कन्या की राय का कोई महत्त्व नहीं होता वह तो उस मूक गाय के समान है जो कसाई के हाथ कटने जाती है। पिता उसे जहाँ धकेलता है उधर ही वह चली जाती है। प्रायः बेमेल विवाहों का प्रधान कारण यही है कि विवाह के समय कन्या की सलाह नहीं ली जाती ।

पैतृक सम्पत्ति पर भी कन्या का कानूनी रूप से अधिकार होते हुए भी कन्या के विवाह के समय जो कुछ दहेज में दिया जाता है, वह एकमात्र उसका भाग समझा जाता है। इसके अतिरिक्त वह कुछ नहीं प्राप्त कर पाती। इसी का परिणाम है कि नारी अबला बनकर जीवन भर आँसू बहाती है ” अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी । आँचल में है दूध और आँखों में पानी। ” परन्तु नारी की इस दयनीय दशा का परिणाम देश को भोगना पड़ रहा है। जिस देश की नारी परतन्त्र होती है, वह देश मृतक के समान है। नारी ही नर को जन्म देने वाली जननी है।

 

आज आप सब ने क्या सीखा ?

आज हम सब ने शिखा की  हिंदी में निबंध mahila sashaktikaran aur samaj par nibandh कैसे लिखे? समाज को आगे बढ़ाने के लिए नारी की शिक्षा बहुत जरुरी होता है। ये समाज को आगे बढ़ाने में अपना अहम भुमका निभाती है आज हम सब ने hindi nibandh  के माध्यम से mahila sashaktikaran par nibandh को जाना। धन्यबाद 

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