बाजार के कार्य (Function of Market in Hindi)
बाजार वह स्थान या क्षेत्र होता है जहां खरीदने वाला (क्रेता) और विक्रेता (खरीदने वाला) के बीच निकट सम्बंध होता है।
बाजार की क्रिया को मार्केटिंग Marketing कहां जाता है। अर्थशास्त्र मे मार्केटिंग शब्द को व्यापक सन्दर्भ में लिया जाता है। और इसके अंतर्गत वस्तु के उत्पाद से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचाने के बीच की समस्त क्रियाएं शामिल हैं जैसे – यातायात, वस्तु को स्टोर करने के लिए भंडारण आदि सम्मलित किया जाता है।
बाजार के कार्य (Function of Market in Hindi) |
मार्केटिंग Marketing कार्यो पर अनेक विद्वानों ने अपना विचार दिया है
1 जोखिम मे भागीदारी (Sharing the risk)
2 माल का परिवहन (Transportation the goods)
3 विक्रय (Selling)
4 प्रमाणीकरण (Standardisation)
5 वित्त प्रबंध (Financing)
6 बाजार सूचना, ग्यान व अनुसंधान (Maket Information, Knowledge and Research)
7 अन्य कार्य (Other Functions)
1 जोखिम मे भागीदारी Sharing the risk
बाजार की विभिन्न क्रियायों मे अनेक प्रकार के जोखिम होते हैं। माल के परिवहन मे वस्तुएँ टूट फुट जाती है, वस्तु भंडारण की ज्यादा समय होने पर वस्तुए खराब हो जाता है। आग लग सकती है, समान चोरी हो सकता है। विक्रय की अवधि में बहुत से जोखिम रहते हैं अतः जोखिम उठाना sharing the risk बाजार का एक कार्य है।
2 माल का परिवहन transportation the goods
वस्तुओ के उत्पादन स्थान से विक्रय केंद्र तक पहुंचाना या लाना बाजार का परिवहन Transportation कार्य है वस्तुओ के उत्पादन कारखाने या खेते से किया जाता है लेकिन उसको बेचने के लिए उन वस्तुओ को बाज़ार (विक्रय केंद्र) तक पहुंचाया जाता है।
3 विक्रय selling
विक्रय selling बाजार कार्यो में सबसे ज्यादा केंद्रीय मह्त्व रखता है। बाजार में विक्रय क्रिया के कारण ही क्रेता और विक्रेता के बीच निकट संपर्क स्थापित होता है। निकट संपर्क स्थापित करने के लिए वे स्वयम कर सकते हैं या कोई थर्ड पार्टी यानी प्रतिनिधि के द्वारा कर सकते हैं। विक्रय कार्य एक कठिन काला है। वस्तु विक्रेता इसके लिए विभिन्न प्रकार के तरीके अपनाते हैं जिससे अधिक से अधिक उनकी वस्तु की विक्री हो सके। और उनका यह उदेश्य रहता है।
4 प्रमाणीकरण Standardisation
वस्तुओ को मानकों के आधार पर विभाजित करना प्रमाणीकरण कहा जाता है। वस्तुओ के उत्पादन के समय सभी प्रकार की वस्तुएँ एक मे ही मिश्रित होती है। इसलिए वस्तुओ को रंग, रूप, किस्म, आकार आदि के आधार पर निश्चित प्रमाणिक पर बाटना आधुनिक बाजार का महत्वपूर्ण कार्य है।वर्तमान समय में इस कार्य के मह्त्व को देखते हुए प्रमाणीकरण संस्थान certification institution स्थापित किए गए हैं। भारत में भी आई. एस. आई. (ISI) एगमार्क ऐसे ही संस्थान है।
बाजार का अर्थ एवं परिभाषा Meaning and definition of market
5 वित्त प्रबंध (Financing)
वर्तमान समय में प्रत्येक कार्य के लिए वित्त Finance की आवश्यकता होती है। बाजार के विभिन्न कार्यो के लिए जैसे माल को खरीदने, माल की भंडारण करने, यातायात, विज्ञापन करने आदि मे वित्त finance की आवश्यकता होती है।
वित्तीय प्रबंध मे सबसे बड़ी बात यह होती है कि जिसके पास जितना वित्त होगा वह उतना ज्यादा व्यपार का विस्तार करेगा। इस लिय वित्त प्रबंध Finance the Operation बाजार का महत्वपूर्ण कार्य बन गया है।
6 बाजार सूचना, ग्यान व अनुसंधान (Maket the mation, Knowledge and Research)
आधुनिक समय में बाजार का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बाजार की सूचनाओं का सर्वेक्षण, विश्लेषण एवं अध्ययन करना होता है। इसके लिए विभिन्न बाजारो में अलग अलग अनुसंधान संगठन resarch organisations स्थापित किए जाते हैं। और इन्ही अध्ययनों के आधार पर बाजार संबंधित पूर्वानुमान लगाया जाता है। यह भी सत्य है कि जिस देश एवं स्थानो मे सूचना एवं अनुसंधान तंत्र जितना ही मजबूत है, वहां की बाजार आड़ उतना ही समृद्ध एवं विकसित है।
7 अन्य कार्य Other Functions
वर्तमान समय में मार्केटिंग एक विस्तृत विचार बन गया है। जिस लिए इसके कार्य मे निरंतर वृद्धि होती जा रही है। विज्ञापन, लेबलिंग, पैकिंग, ग्रेडिंग जैसे अनेक कर्य बाजार के अंग बन चुके हैं।
बाजार के विस्तार के प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Affecting The Extent of Market in Hindi)
किसी वस्तु का बाजार सीमित होगा या विस्तृत य़ह उनके तत्व पर निर्भर करता है।
बाजार रूप छोटा या बड़ा हो सकता है। आज कल वैज्ञानिक प्रगति के साथ बाजार निरंतर विस्तृत होते जा रहे हैं।
बाजार के विस्तार के प्रभावित करने वाले तत्व
बाजार को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख तत्व है, जिसको मैं बारी बारी से आपको बता रहा हूँ।
(A) वस्तु विशेष की विशेषताएं Characteristics of Commodity) मे चार प्रकार की वस्तु विशेषताएं होती है
1 मांग की व्यापकता Wide Demand
जिन वस्तुओ की मांग अधिक व्यापक Wide होगी उनका बाजार भी व्यापक होगा या विस्तृत होगा। और इनके विपरित जिन वस्तुओं की मांग सीमित होगी उनकी विस्तार भी सीमित होगा। सोना, चांदी, गेहूं, चावल, चीनी, चाय आदि की मांग सम्पूर्ण विश्व में है। इस लिए इन वस्तुओं का बाजार विश्वव्यापी है। और इसके विपरित बात करे तो चूडियों की मांग केवल भारत मे है इस लिए इसका बाज़ार राष्ट्रीय बाजार ही है।
2 वहनीयता Portability
ऐसी वस्तुओं का बाजार विस्तृत हो जाता है जिनमे वहनीयता Portability का गुण अधिक होता है। (वहनीयता Portability का मतलब अधिक वजन वाली वस्तु के लिए किया जाता है) कर भार और अधिक मूल्य वाली वस्तुओं का बाजार विस्तृत हो जाता है। इसी गुण के कारण सोना, चांदी का बाजार विश्वव्यापी होता है। इसके विपरीत यदि हम बात करे तो जिन वस्तुओं का वजन ज्यादा हो जाता है और मूल्य कम होता है तो उनका बाजार सीमित हो जाता है।
जैसे – ईंट, बालू, कंक्रीट इत्यादि का बाजार।
3 टिकाऊपन Durability
जिन वस्तुओं में टिकाऊपन Durability का गुण होता है। उनका बाजार विस्तृत हो जाता है। इसमे मशीन, सोना, चांदी का बाजार विश्वव्यापी होता है। और इसके यदि विपरित वस्तुओं की बात करे तो इसमे शीघ्र नाशवान वस्तुओं
जैसे – बर्फ, मछली, दूध, हरा सब्जी का बाजार छोटा औऱ सीमित होता है।
4 पूर्ति की लोच Elasticity of Supply
जिस वस्तु की पूर्ति को आवश्यक्ता पड़ने पर पर्याप्त मात्रा में पूर्ति बढ़ाया जा सकता है, अर्थार्त पूर्ति में लोच होती है। उनका बाजार विस्तृत होता है। इसके विपरित यदि मांग बढ़ाने पर पूर्ति बढ़ाना संभव नहीं हो तो उनका बाजार सीमित ही रहता है।
(B) देश की आंतरिक दशाएं Country’s Internal Conditions
1 यातायात और संचार के साधन (Means of Transport Communication)
2 शांति व सुरक्षा (Peace and Security)
3 बैकिंग व्यवस्था के विकास की स्थिति (Development of Banking System)
4 सरकार की कर तथा व्यापार स्थिति (Government’s Tax and Commercial)
5 व्यापार की वैज्ञानिक रीतियां (Scientific Methods of Business)